न कोई दे पाये साथ
न कोई दे पाये साथ तो भी, चलो अकेले कदम बढ़ाते।
युगों से सूरज निकल रहे हैं, निपट अकेले ही चल रहे हैं॥
थका न हारा कभी गगन में, चलें सभी को सदा जगाते॥
गला हिमालय सदा अकेला, न कोई संगत न कोई मेला॥
मगर रुके न प्रवाह उसका, रहा उमर भर तृषा जलाते॥
है बात यह है कि जो चलेगा, उसे परम प्रभु का बल मिलेगा॥
सदा रहे लक्ष्य लोकमंगल, चले कदम से कदम मिलाते॥
पुनः जगायेंगे देव संस्कृति, मिटायेंगे जड़ से पूर्ण विकृति॥
यही सद्उद्देश्य है हमारे, चलो सभी को यही सिखाते॥