स्वार्थ का ही सगा है
स्वार्थ का ही सगा है, जमाना प्रभो।
आप भी मत मुझे, भूल जाना प्रभो॥
नाथ जिनके लिये जिन्दगी काट दी,
नाथ उनने भी दो टुक बात की।
कौन सुनता है, गम का तराना प्रभो॥
खींचता था जिन्हें रूप यौवन कभी,
पास जब सम्पदा थी सगे थे सभी।
लुट गया जिन्दगी का खजाना प्रभो॥
मन मलिन हैं बहुत मानता ही नहीं,
और अच्छा बुरा जानता ही नहीं।
कब कहाँ पर छले, क्या ठिकाना प्रभो॥
आज तक बहुत अपने लिये जी लिया,
विष विषय वासना का बहुत पी लिया।
लोक सेवा- सुधा अब पिलाना प्रभो॥
आपकी शान का है सभी को पता,
और सब जानते नाथ मेरी खता।
मत मुझे,शान को तो निभाना प्रभो॥