सूर्य की पहली किरण
सूर्य की पहली किरण, दीप अन्तर का जलाकर।
फिर मिलो सबसे, सभी के दीप में वह ज्योति ढालो॥
लग रहा है स्नेह हमारे, दीपकों का चुक गया है।
प्यार का चिर स्रोत ही, जैसे कहीं पर रुक गया है॥
प्रेम की गंगा बनो, बाती सिरे तक जल चुकी है।
विश्व मानव का हृदय, मरुभूमि होने से बचालो॥
आएगा आलोक तो फिर, कमल आस्था के खिलेंगे।
त्याग कर दूरी सभी, विश्वास के नभ में मिलेंगे॥
बहुत ही प्यारा मधुर, आकाश मानव प्रेम का है।
रोशनी के अब इसे, दीपावली सा जगमगा लो॥
बीज बो दो रोशनी के, काम कल आते रहेंगे।
फूल कल के प्राण, ऊर्जा चेतना पाते रहेंगे॥
बाँटकर जीवन सुनहरा, यों भविष्यत् के चमन को।
प्रिय! मनुज तन धारने का,फर्ज तुम अपना निभालो॥