एक अनुरोध मतदाताओं से

दो शब्द अपने आत्मीयों से

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>
वर्तमान काल में राजनीति का प्रचंड प्रभाव सर्वत्र दिखलाई पड़ रहा है। जीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जो राजनीति के प्रभाव से अछूता बचा हो। राजनीति के इसी व्यापक प्रभाव को ध्यान में रखकर हम दो संकलन प्रकाशित कर रहे हैं।

‘हम राजनीति में भाग क्यों नहीं लेते’ शीर्षक से प्रकाशित प्रथम पुस्तक में पं. पू. गुरुदेव के उन लेखों का संग्रह है जो उन्होंने विशेष रूप से अपने परिजनों को ध्यान में रखकर लिखे हैं। अतः इस संकलन को प्रत्येक परिजनों का ध्यान में रखकर लिखे हैं। अतः इस संकलन को प्रत्येक परिजन अवश्य पढ़ें और उसमें व्यक्त विचारों पर चिंतन-मनन करते हुए उन्हें हृदयंगम करने का प्रयास करें। वर्तमान भ्रमित करने वाले वातावरण में उसके दूषित प्रभाव से अपने को मुक्त रखने के लिए यह आवश्यक प्रतीत होता है।

प्रस्तुत दूसरा संकलन जन सामान्य के लिए है। अपने देश में प्रजातंत्रीय शासन पद्धति है। प्रजातंत्र का मेरुदंड सामान्य वोटर होता है। इसकी सफलता-असफलता सामान्य वोटर की विवेकशीलता पर निर्भर करती है। अतः वोटर की विवेकशीलता को जगाया जाना हमारा परम पुनीत राष्ट्रीय कर्त्तव्य है। वोटर की विवेकशीलता को जाग्रत करने के उद्देश्य से ही इस संकलन को तैयार किया गया है।

अतः अनुयाज प्रक्रिया के ‘राष्ट्र सेवा मंदिर’ कार्यक्रम के अंतर्गत यह पुस्तक घर-घर पहुंचाई जाए। शिक्षितों को इसे पढ़ने और समझने के लिए प्रेरित किया जाए। अशिक्षितों को इसमें व्यक्त विचारों से अवगत कराकर उनमें अपने वोट रूपी अधिकार का उचित एवं विवेकपूर्ण प्रयोग करने का भाव जगाया जाए। प्रजातंत्र में अपने मताधिकार का प्रयोग भय-प्रलोभन आदि से मुक्त होकर न करना अथवा अपने इस संविधान प्रदत्त अधिकार का प्रयोग ही न करना—दोनों ही अक्षम्य राष्ट्रीय नैतिक अपराध हैं। इस अपराध से मुक्त राष्ट्रीय समाज की रचना करने की दिशा में हमारे सभी परिजनों के पग बढ़ें यही हमारी उनसे अपेक्षा है।
—पं. लीलापत शर्मा
<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: