प्राणघातक व्यसन

हमारी सभ्यता का कलंक नैतिक चरित्रहीनता

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आज की दुनिया में शराब, गाँजा, सिगरेट, पान इत्यादि तो गजब ढा ही रहे हैं, किंतु उससे भी महा भयंकर समस्या मानसिक और नैतिक चरित्रहीनता की है । नशा पीकर बुद्धि विकारग्रस्त होती है तथा मनुष्य मानसिक व्यभिचार में प्रवृत्त होता है । वासनामूलक कल्पनाओं के वायुमंडल में फँसा रहने से प्रत्यक्ष व्यभिचार की ओर दुष्प्रवृत्ति होती है । व्यभिचार हमारी सभ्यता का कलंक है, जिस पर जितना लिखा जाए कम है । व्यभिचार एक ऐसी सामाजिक बुराई है, जिससे मनुष्य का शारीरिक, सामाजिक और नैतिक पतन होता है । परिवारों का धन, संपदा, स्वास्थ्य नष्ट हो जाते हैं, बडे़-बडे़ राष्ट्र विस्मृति के गर्त में डूब जाते हैं । परिताप का विषय है कि नाना रूपों में फैलकर व्यभिचार की यह महाव्याधि हमारे नागरिकों, समाज, गृहस्थ एवं राष्ट्रीय जीवन का अध पतन कर रही है । इसके परिणामों का उल्लेख करते हुए हृदय काँप जाता है ।

आज की पत्र-पत्रिकाओं, समाचारपत्रों में छपने वाले विज्ञापनों को देखिए । आज के समाज का आइना आपके समक्ष आ जाएगा । नामर्दी, नपुंसकता, वीर्यपात, स्वप्नदोष, गर्भपात करने, स्तंभन वृद्धि, बर्थ कंट्रोल के साधन, नग्न तसवीरें, सौंदर्य वृद्धि, सिनेमा संबंधी अनेक प्रकार के दूषित विज्ञापन पतनोन्मुख समाज का खाका हमारे सामने प्रस्तुत कर देते हैं ।

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