प्राणघातक व्यसन

बीडी़, सिगरेट, हुक्का पीने से हानियाँ

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>
पीने के तंबाकू का कुत्सित प्रभाव नेत्रों के रोगों में विशेष रूप से प्रकट होता है । तंबाकू के विष से न केवल फेंफडे़, हृदय या मस्तिष्क, प्रत्युत नेत्रों को भी हानि पहुँचती है । यदि आप नेत्र चिकित्सकों से सम्मति लें तो वे एक स्वर से यह निर्देश करेंगे कि तंबाकू से मनुष्य की दृष्टि निर्बल पड़ जाती है । श्री बैजनाथ महोदय के अनुसार, ''तंबाकू के भक्तों में अंधापन आ जाता है । वे विभिन्न रंगों को पहचान नहीं पाते । जर्मनी और बेल्जियम में तंबाकूजनित नेत्र रोगों की अधिकता है ।''

तंबाकू कामोद्दीपक पदार्थ है । इसकी उत्तेजना में मनुष्य की पाशविक प्रवृत्तियाँ उत्तेजित हो उठती हैं और मनुष्य व्यभिचार, अशिष्टता, अनीति की ओर प्रवृत्त होता है । तंबाकू पीने से चरित्रहीनता आती है ।

चरित्रभ्रष्टता के साथ नपुंसकता आती है । डॉ. फूट लिखते हैं- ''मैंने देखा है, कि तंबाकू नपुंसकता के कारणों में एक मुख्य कारण है और जब मेरे पास ऐसे लोग चिकित्सा के लिए आते हैं तो मैं उनसे कहता हूँ कि तुम्हें दो में से एक बात पसंद करनी होगी, विषय सुख या तंबाकू ।'' तंबाकू से प्रेम हो तो सांसारिक सुख से निराश हो जाओ । वास्तव में तंबाकू से शरीर की संपूर्ण नसें ढीली पड़ जाती हैं, पर कभी-कभी सारे शरीर पर इसका दुष्परिणाम देर से प्रकट होता है । सबसे पहले इसका विषैला प्रभाव शरीर के सबसे अधिक कमजोर अंग पर ही होता है और चूँकि पुरुष अपनी जननेन्द्रिय का बहुत दुरुपयोग करता है । तंबाकू का विष इस दुर्बल और दलित अंग को सबसे पहले धर दबाता है ।

हमारे धार्मिक ग्रंथों में भी तंबाकू का सेवन अत्यंत निंदनीय बतलाया गया है । विष्णु पुराण में तंबाकू पीने से गरीबी, दु:ख, तामसवृत्ति की उत्पत्ति होने का निर्देश है । एक स्थान पर कहा गया है -

''तमाल भक्षितयेन संगच्छेनरकार्णवे''
पद्म पुराण में कहा गया है-
धूम्रपानरतं विप्र दानं कुर्वन्ति ये नरा: । दातारो नरकं यान्ति ब्राह्मणो ग्रामशूकर: । ।

अर्थात- जो मनुष्य धूम्रपान करने वाले ब्राह्मण को दान देते हैं तो वे नरक में जाते हैं और ब्राह्मण शूकर की योनि पाता है ।

तंबाकू से दाँत खराब होकर उनका रंग पीला और मटमैला हो जाता है । एक डॉक्टर ने लिखा है कि तंबाकू पीने वालों के पेट के भीतर की कोमल त्वचा पर गोल- गोल दाग पड़ जाते हैं । रक्त पतला होकर कमजोर हो जाता है । फेफड़े निर्बल हो जाते हैं और हृदय की स्वाभाविक, धड़कन में विकार उत्पन्न होकर एक प्रकार का कंपन शुरू हो जाता है ।

इस प्रकार तंबाकू मनुष्य के स्वाभाविक स्वास्थ्य को नष्ट करके शरीर में तरह-तरह के विकार उत्पन्न कर देता है । यह मनुष्य के शरीर के लिए एक विजातीय द्रव्य है, इसलिए शरीर इसे किसी दशा में अपने भीतर नहीं रख सकता और इसी से तंबाकू खाने वालों को जगह-जगह थूकते रहने की घृणित आदत पड़ जाती है । तंबाकू के व्यवहार से मनुष्य की श्वास नली और फेंफड़ों में जख्म होकर सड़न उत्पन्न हो जाती है, जिससे खाँसी की उत्पत्ति होती है । यही कारण है कि जो लोग सदैव तंबाकू पीते हैं, बड़ी उम्र में उनको स्थायी रूप से खाँसी की शिकायत पैदा हो जाती है जो अंत में मृत्यु के साथ ही जाती है ।

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118