कोकेन में अन्य घातक पदार्थों के साथ−साथ भयंकर विष होते हैं, जो डॉ. बेनेट के मतानुसार अंतड़ियों, श्वास प्रणाली, ग्रंथि प्रणाली और रक्त प्रवाह प्रणाली पर घातक प्रभाव डालते हैं । इसका उपयोग प्राय: उच्च वर्ग के व्यक्ति करते हैं, जो सामाजिक बंधनों के कारण शराब या अफीम को खुला उपयोग नहीं कर पाते । भारत में वेश्याओं के यहाँ इसकी अधिक खपत है । व्यभिचारी व्यक्ति प्राय: इसका प्रयोग क्षणिक उत्तेजना के लिए किया करते हैं । इसके नशे में वे सत-असत विवेक बुद्धि को भूल जाते हैं ।
कोकेन के दुष्परिणाम बड़े भयंकर हैं, इससे पक्वाशय के स्नायु तथा ज्ञानतंतु अकर्मण्य हो जाते हैं । फलतः दो- दो, तीन-तीन दिन क्षुधा प्रतीत नहीं होती । शरीर कृश हो जाता है । आरंभ में कोकेन के प्रयोग से ज्ञानतंतु और स्नायु के उद्गम स्थान पुर कुछ झनझनाहट और वेग प्रतीत होता है, परंतु यह आवेग आधे घंटे से अधिक शेष नहीं रहता । उतार प्रारंभ होने पर हृदय डूबता सा मालूम होता है । संपूर्ण शरीर पर आलस्य एवं नैराश्य की भावना छा जाती है । एक प्रकार का शैथिल्य एवं शारीरिक निर्बलता सर्वत्र छा जाती है ।
कोकेन खाने की आदत अन्य मादक वस्तुओं की अपेक्षा अधिक लुभावनी है, परंतु बड़ी भयानक भी है । इससे शारीरिक, मानसिक और आचारिक निर्बलता उत्पन्न हो जाती है । थोड़े समय तक इसका अभ्यास करने से इसके खाने और प्रभाव देखने की एक अनियंत्रित इच्छा प्रकट होने लगती है, सो किसी प्रकार तृप्त नहीं हो पाती और बिना जान लिए नहीं शांत होती । कोकेन वास्तव में ईश्वरीय कोप स्वरूप है, जिसके फंदे में फँसने से अकथनीय दुर्गति होती है ।