मन की प्रचंड शक्ति

मनोयस्य वशे तस्य भवेत्सर्वं जगद्वशे

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

बिखराव के कारण सौर ऊर्जा का अधिकांश भाग यों ही बेकार चला जाता है। उसकी थोड़ी मात्रा ही प्राणधारी तथा वृक्ष वनस्पति अपनी आवश्यकता के अनुसार ग्रहण कर पाते हैं। एक बिंदु पर सूर्य की कुछ किरणों को केन्द्रित किया जा सके तो उससे दावानल जैसी स्थिति उत्पन्न हो सकती है। वैज्ञानिकों का ऐसा मत है कि बिखराव को समेटा और सूर्य की प्रचंड ऊर्जा को कैद किया जा सके तो मात्र उसकी एक दिन की शक्ति से संपूर्ण विश्व की वर्षों की ऊर्जा आवश्यकता की आपूर्ति होती रह सकती है।

शरीर की स्थूल इंद्रियों की तुलना में मन की सामर्थ्य कई गुनी अधिक है। मनःशक्ति की तुलना सौर ऊर्जा से की जा सकती है। जिस प्रकार फैले होने व सतत् नष्ट होते रहने के कारण सूर्य शक्ति से विशेष लाभ उठाते नहीं बनता। गर्मी, ताप जैसे सामान्य प्रयोजन ही पूरे हो पाते हैं। उसी तरह मन से निस्सृत होने वाली इच्छाएं, आकांक्षाएं दैनिक जीवन की सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति मात्र कर पाती हैं। मन की चंचलता के कारण से मनःशक्तियां कोई विशेष प्रभाव नहीं दिखा पातीं। अन्यथा उनमें वह सामर्थ्य है कि एक दिशा, लक्ष्य विशेष पर उनके बिखराव को रोककर केन्द्रित किया जा सके तो चमत्कारी परिणाम प्रस्तुत हो सकते हैं। मनोबल, संकल्प बल की चर्चा की जाती है। यह और कुछ नहीं निग्रहीत मन की ही शक्ति है जो सामान्य से लेकर असामान्य प्रयोजन संपन्न कर सकने में सक्षम है। संकल्प बल द्वारा जड़ एवं चेतन को न केवल प्रभावित किया जा सकता है वरन् उनमें आवश्यक हेर-फेर भी किया जा सकता है।

हारे-थके, टूटे, निराश मनःस्थिति वाले अधिकांश व्यक्ति मनोबल, संकल्पबल की दृष्टि से कमजोर होते हैं। शारीरिक एवं मानसिक आधि-व्याधियों से भी ऐसे ही व्यक्ति अधिकतर घिरे रहते हैं। छोटी-मोटी बीमारियों में भी वे अधिक पीड़ा-कष्ट की अनुभूति करते हैं जबकि इच्छा शक्ति के धनी कठिन और असाध्य रोगों में भी हंसते-मुस्कराते रहते हैं और दृढ़ मनोबल के सहारे शीघ्र ही अच्छे होते देखे जाते हैं। इच्छा शक्ति दृढ़ हो तो दीर्घ, स्वस्थ जीवन ही नहीं, चिर यौवन का लाभ भी प्राप्त किया जा सकता है तथा कुछ समय के लिए तो अधिक आयु के साथ प्रकट होने वाले प्रौढ़ता के चिह्नों को भी एक किनारे छोड़ा जा सकता है। प्रस्तुत है ये घटनाएं जो यह बताती हैं कि संकल्प बल के सहारे रोग निवारण ही नहीं आयु को भी आगे धकेना संभव है।

डॉ0 वैनेट द्वारा लिखित ‘ओल्ड एज, इट्स काज एण्ड प्रीवेन्शन’ में एक घटना का उल्लेख इस प्रकार है। 19 वर्षीया एक फ्रांसीसी युवती का एक अमेरिकन युवक से विवाह होना निश्चित हुआ। युवक निर्धन था। इसलिए उसने यह तय किया कि पहले अमेरिका जाकर धनोपार्जन करेगा और फिर लौटकर शादी करेगा। तीन वर्ष तक वह परिश्रम करता रहा, पर दुर्भाग्यवश एक मुकदमे में उसे पंद्रह वर्ष की सजा हो गई। पंद्रह वर्ष बाद वह फ्रांस वापस लौटा तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया कि उसकी मंगेतर का स्वास्थ्य और सौंदर्य पूर्ववत् था। 34 वर्ष की आयु में भी वह 19 वर्ष की युवती लगती थी। विवाहोपरांत उसने एक दिन पत्नी से उसके सौंदर्य का राज पूछा। युवती ने बताया कि वह नित्य प्रातः एक बड़े शीशे के सामने खड़ी होकर अपने चेहरे को देखकर मन ही मन यह अनुभव करती थी कि आज बिल्कुल वैसी ही हूं जैसी कि कल थी। प्रचंड इच्छा शक्ति के कारण ही वह अपने यौवन को 34 वर्ष की आयु में भी अक्षुण्ण बनाए रखने में सक्षम हुई।

फिनलैंड की एक युवती के गर्भाशय में कैंसर हो गया। डॉक्टरों ने रोग को असाध्य घोषित करते हुए उसे कुछ दिनों का मेहमान बताया। इस युवती से पड़ोसी युवक गौनर मेंटन को गहरी सहानुभूति थी। उसने युवती के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा। निराशा के घोर अंधकार में भटकती युवती को जैसे जीने के लिए प्रकाश रूपी संबल मिल गया। विवाह संपन्न हुआ। अनुकूल सहचर पाकर जैसे वह अपना रोग ही भूल गई। जो सदा बिस्तर पर लेटी रहती थी, अब सदा चलती-फिरती, हंसती-हंसाती नजर आती थी। एक वर्ष बाद उसे एक पुत्र हुआ। डॉक्टरों ने परीक्षा करने पर पाया कि युवती में कैंसर रोग का नामोनिशान नहीं था। बच्चा भी पूर्ण स्वस्थ और निरोग था। चिकित्सकों ने इस घटना को मनोबल का चमत्कार माना।

मनःशक्ति का एक पक्ष एकाग्रता का है। इसका अभ्यास बन जाने पर असंभव समझे जाने वाले काम भी संभव हो सकते हैं। थोड़ी देर के लिए किसी विषय विशेष पर ध्यान को केंद्रित कर अपने शारीरिक कष्टों को भी भुलाया जा सकता है। लोकमान्य तिलक के जीवन की एक बहुचर्चित घटना इसी तथ्य का बोध कराती है। मवाद भर जाने के कारण लोकमान्य तिलक के अंगूठे का आपरेशन होना था। डॉक्टर क्लोरोफार्म लेकर पहुंचे ताकि उसे सुंघाकर आपरेशन किया जा सके। तिलक ने कहा—‘‘बेहोश करने की आवश्यकता नहीं है। मुझे एक प्रति ‘गीता’ की लाकर दे दो।’’ जितनी देर आपरेशन चलता रहा तिलक गीता पढ़ने में तल्लीन रहे। उन्हें कष्ट की थोड़ी भी अनुभूति नहीं हुई। इसका कारण स्पष्ट करते हुए उन्होंने चिकित्सकों को बताया कि कष्टों की अनुभूति शरीर को नहीं मन को होती है। मन यदि किसी अन्य विषय पर केन्द्रित हो तो शरीर के कष्टों को पूर्णतया भुलाया जा सकता है।

मन की सामर्थ्य का असामान्य पक्ष वह है जिसके द्वारा वस्तुओं एवं व्यक्तियों को प्रभावित किया जाता है। निग्रहीत मन की शक्ति ही प्रचंड संकल्प बल के रूप में प्रकट होती है, जिसके द्वारा एक स्थान पर बैठकर दूरवर्ती व्यक्तियों को प्रभावित करना संभव है। ऐसी सामर्थ्य से संपन्न कितने ही व्यक्तियों के समाचार समय-समय पर प्रकाशित होते हैं।

रूसी महिला ‘रोजा मिखाइलोवा’ अपनी इच्छा शक्ति से जड़ वस्तुओं में हलचल पैदा करने के कितने ही प्रदर्शन कर चुकी हैं। पत्रकारों के समक्ष एक बार उन्होंने दूर मेज पर रखी डबल रोटी को निर्निमेष दृष्टि से देखा और जैसे ही मुख खोला डबलरोटी अपने आप मेज पर से उठी और मिखाइलोवा के मुंह में जा पहुंची। इस तरह के अनेक प्रदर्शनों द्वारा वे लोगों को आश्चर्यचकित करती रही हैं।

‘बिटवीन टू वर्ल्डस्’ पुस्तक में डॉ0 नैन्डोर ने ऐसे शक्ति संपन्न कितने ही व्यक्तियों का उल्लेख किया है। डॉ0 बैन्जनोई भी उन्हीं में से एक हैं। बिना स्पर्श किए वे वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर खिसका देते हैं। उनकी इस विलक्षण सामर्थ्य की परीक्षा वैज्ञानिकों एवं पत्रकारों द्वारा ली जा चुकी है। डॉ0 फोडोर ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि एक बार प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जुंग अपने मित्र मनोविज्ञानी डॉ0 फ्रायड से मिलने गए। चर्चा संकल्प बल पर चल पड़ी। फ्रायड ने जुंग की इस बात को मानने से इन्कार कर दिया कि इच्छा शक्ति द्वारा जड़ वस्तुओं को भी प्रभावित किया जा सकता है। जुंग एक स्थान पर बैठ गए तथा उन्होंने अपनी प्रचंड संकल्प शक्ति का प्रयोग किया। ऐसा लगा कि कमरे की सभी वस्तुएं कांपने लगी हों, मेज पर रखी पुस्तकें कमरे की छत पर उछल कर जा चिपकी। फ्रायड को अपना मत बदलना पड़ा। इसे उन्होंने न केवल स्वीकार किया वरन् इसका अपने ग्रंथों में उल्लेख भी किया।

अमेरिका का यूरी गैलर नामक व्यक्ति अपनी विलक्षण शक्ति के लिए काफी दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा। इच्छा शक्ति द्वारा वह दूर रखे चम्मच्, लोहे की छड़ों को तोड़-मरोड़ देने का प्रदर्शन विशाल जन समूह के समक्ष अनेक बार कर चुका है।

ब्रिटिश काल में सर जॉन बुडरफ कलकत्ता हाईकोर्ट के चीफ मजिस्ट्रेट थे। एक संस्मरण में उन्होंने लिखा है कि एक बार वे ताजमहल के संगमरमर के फर्श पर बैठे थे। साथ में उनके एक भारतीय मित्र भी थे। बातचीत के प्रसंग में संकल्प शक्ति की चर्चा चल पड़ी। बुडरफ को इस पर विश्वास न था, मित्र से उन्होंने संकल्प शक्ति का प्रमाण देने को कहा। उनके भारतीय मित्र ने कहा कि एक छोटा प्रमाण तो मैं भी दे सकता हूं। सामने जो लोग बैठे हैं उनमें से आप जिसे कहें, उसे उठा दूं और वापस जहां कहें वहां बिठा दूं। बुडरफ ने उन व्यक्तियों में से एक को चुना और यह भी बता दिया कि उसे किस स्थान पर बैठाना है। मित्र ने अपनी शक्ति का प्रयोग किया। फलस्वरूप वह व्यक्ति अकारण उठा और बुडरफ द्वारा बताए गए स्थान पर जा बैठा। इस घटना का उल्लेख बुडरफ ने अपनी एक पुस्तक में विस्तृत रूप से किया है।

भारतीय योग विद्या में रुचि रखने वाले फ्रांस के प्रसिद्ध विद्वान ‘लुई जकालियट’ ने अपनी पुस्तक में गोविंद स्वामी नामक एक भारतीय योगी का उल्लेख किया है जो अपनी इच्छा शक्ति से जल से भरे घड़े को हवा में ऊपर उठा देता था। मिनटों तक घड़ा अधर में लटका रहता था।

निग्रहीत मन की सामर्थ्य और चमत्कारों की घटनाओं से तो भारतीय धर्मग्रंथों के पुराण एवं इतिहास भरे पड़े हैं। इसे एक सूत्र में इस रूप में योग वाशिष्ठ में कहा गया है—

‘‘मनोहि जगतां कर्तृंमनोहि पुरुषः स्मृतः ।’’

—3/9/14

अर्थात्, ‘मन ही जगत का कारण और स्मृतियों में वर्णित पुरुष है।’

‘एलेक्जेंडर राल्फ’ ने ‘द पावर आफ माइण्ड’ नामक पुस्तक में विभिन्न प्रमाण देते हुए लिखा है कि एकाग्रता के अभ्यास द्वारा मानव मन शरीर के बाहर स्थिर सजीव एवं निर्जीव पदार्थों पर भी इच्छानुकूल प्रभाव डाल सकता है। उनका कहना है कि यह एक निर्विवाद तथ्य है कि दृढ़ इच्छा शक्ति द्वारा स्थूल जगत पर नियंत्रण संभव है।

पदार्थ शक्ति कितनी सामर्थ्यवान हो सकती है इसे आइन्स्टीन के ऊर्जा समीकरण द्वारा समझा जा सकता है। ऊर्जा समीकरण के अनुसार एक ग्राम पदार्थ को यदि पूर्णतया शक्ति में बदला जा सके तो उससे प्रकाश की गति × प्रकाश की गति (अर्थात 30 अरब × 30 अरब) अर्ग ऊर्जा उत्पन्न होगी जो लगभग 214 खरब 30 अरब कैलोरी ऊष्मा के समतुल्य होगी। एक कैलोरी ऊष्मा का तात्पर्य है एक ग्राम पानी का ताप एक डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ाने में प्रयुक्त ऊष्मा की मात्रा। उपर्युक्त ऊष्मा का अर्थ हुआ कि एक ग्राम के भौतिक द्रव्य में ही इतनी ऊर्जा सन्निहित है कि उससे 2 लाख 14 हजार 3 सौ टन शून्य डिग्री सेंटीग्रेड वाले पानी को सौ डिग्री सेंटीग्रेड तक खौलाया जा सकता है। एक पौंड पदार्थ की शक्ति उतनी ही होगी जितनी 14 लाख टन कोयला जलाने से उत्पन्न होगी। अभी तक वैज्ञानिक इस तरह की कोई तकनीक विकसित नहीं कर सके हैं जिससे पदार्थ को पूर्णतः शक्ति में बदला जाय और उस शक्ति का पूरा-पूरा उपयोग किया जा सके। भौतिक विज्ञानियों के अनुसार एक पौंड पदार्थ को पूर्णतया ऊर्जा में बदल कर उपयोग करना संभव हो सके, तो मात्र उतने से पूरे अमेरिका को एक माह तक विद्युत सप्लाई की जा सकती है।

यह तो पदार्थ की सामर्थ्य हुई। उसका नगण्य घटक परमाणु की शक्ति तो और भी प्रचंड है जिसकी चर्चा इन दिनों सर्वत्र है। जड़ परमाणुओं की तुलना में मन की सामर्थ्य कई गुनी अधिक है। उसके लिए भी यदि परमाणु की शक्ति को उभारने जैसी प्रक्रिया अपनाई जा सके तो वह चमत्कारी परिणाम प्रस्तुत कर सकता है। इसके लिए साधना का अवलंबन लेना पड़ता है। मनोनिग्रह एवं एकाग्रता का दुहरा अभ्यास इच्छा शक्ति, संकल्प शक्ति को दृढ़ बनाने के लिए करना पड़ता है। ध्यान के विभिन्न साधना उपचार इसी प्रयोजन की पूर्ति के लिए किए जाते हैं। अलग-अलग मनःस्थिति के व्यक्तियों के लिए अलग-अलग ध्यान उपचार बताए जाते हैं। इस प्रक्रिया को अपनाकर कोई भी अपने मन को इतना समर्थ और सशक्त बना सकता है ताकि उससे सामान्य से लेकर असामान्य प्रयोजन पूरा कर सके।

<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118