गृहलक्ष्मी की प्रतिष्ठा

वैवाहिक जीवन का उत्तरदायित्व

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सांसारिक कार्यों में विवाह कदाचित सबसे अधिक उत्तरदायित्व का काम है । इसलिए वैवाहिक जीवन में प्रवृष्टि होने के पूर्व जितना ही अधिक सोच-विचार करके निर्णय किया जाए उतना ही उत्तम है । आजकल हर प्रकार से संतुष्ट, संतुलित, सुखी विवाहित जोड़े बहुत कम दिखाई पड़ते हैं, उसका कारण प्राय: यही होता है कि अधिकांश लोग प्राय: अज्ञान में अथवा आवेश में विवाह कर डालते हैं । आजकल के अनेक नवयुवक तो विवाह के पूर्व अपनी पत्नी के विषय में सिनेमा की प्रेमलीला जैसी सुमधुर कल्पनाएँ करके गगन-विहार किया करते हैं । उन्हें प्रायः विवाहित जीवन में भारी निराशा का सामना करना पड़ता है । पश्चिमी देशों में तलाकों की संख्या की उत्तरोत्तर वृद्धि का एक मुख्य कारण भी यही है ।

इस मनोवृत्ति का शिक्षित युवक जब विवाह करता है तो उसके मन में अपनी पत्नी का एक आदर्श रूप उपस्थित रहता है । वह उसकी पुष्प सी कोमल, चंद्रमा सी सुंदर, विद्या में चतुर, संगीत-नृत्य विद्याओं में निपुण हर प्रकार से सरल साधु मीठे स्वभाव की कल्पना करता है । वह सिनेमा के चलचित्रों में कार्य करने वाली नर्तकियों को देखते-देखते एक ऐसा आदर्श मन में बना लेता है जो कभी पूर्ण नहीं हो सकता । वह बडी़-बडी़ आशाएँ लेकर वैवाहिक जीवन में प्रविष्ट होता है । मनोविज्ञान का यह अटूट नियम है कि दूर से स्त्री को पुरुष तथा पुरुष को स्त्री आकर्षक प्रतीत होते है । विवाह के कुछ मास एक प्रकार के उन्माद में बीत जाते हैं । तत्पश्चात उसका मन ऊबने लगता है । पुरुष स्वभाव से नवीनता का उपासक है । समीप में रहने वाली वस्तु उसे पुरानी, नीरस, आकर्षक-विहीन, फीकी सी प्रतीत होने लगती है । यही दाम्पत्य जीवन के असंतोष का कारण है । जिसकी वजह से तलाक जैसी अप्रिय बातें होती हैं । इसी वृत्ति से संघर्ष कर उस पर विजय प्राप्त करने की आवश्यकता है । विवाह से पूर्व स्त्री को पुरुष तथा पुरुष को स्त्री को देख लेने, परखने, उसके विषय में दूसरों से सलाह लेने, यदि संभव हो सके तो परीक्षा करने, हर प्रकार की सतर्कता, दूरदर्शिता बरतने की गुंजाइश है । वर-वधू की चाहिए कि झूँठी शरम त्यागकर एकदूसरे के गुण-कर्म-स्वभाव का ज्ञान प्राप्त करें । एक जैसा न हो तो दूसरे साथी को उसका संतुलन करना होता है । एकसी रुचि के दो व्यक्ति जीवन में सरलता से चल सकते हैं । एक शिक्षित तथा दूसरा अशिक्षित होने से अनेक बार दृष्टिकोण में विभिन्नता तथा कटुता उत्पन्न होकर दाम्पत्य माधुर्य को नष्ट कर देती है । अतएव वर-वधू को प्रारंभ में अति सावधानी एवं सतर्कता बरतने की आवश्यकता है ।

अपने साथी के शरीर, मस्तिष्क, विचार तथा स्वभाव का ज्ञान प्राप्त कीजिए । वह नीरस प्रकृति का है या हँसमुख मजाकिया ? वह गंभीर अध्ययनशील है या सदैव जल्दबाजी में रहने वाला या तीव्र भावों में बह जाने वाला । वह उदार है या संकुचित, जिद्दी, निश्चयी पुरुषार्थी, मत्त या स्फूर्तिवान ? वह किसी कार्य को लगातार करता है या बीच में ही छोड़ भागने का अभ्यस्त है ? प्रेम के संबंध में उसके क्या विचार हैं ? उसकी आर्थिक स्थिति तथा आवश्यकताएँ कैसी हैं ? इन तथा इसी प्रकार के अनेक प्रश्नों पर विवाह से पूर्व ही खूब देखभाल, विचार-विनिमय करने की आवश्यकता है ।
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