आध्यात्मिक चिकित्सा एक समग्र उपचार पद्धति

पूर्वजन्म के दुष्कर्मों का परिमार्जन जरूरी

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पूर्वजन्म में वर्तमान जीवन के रहस्यों की जड़ें हैं। इन्हें खोदे बिना, इन्हें समझे बिना जिन्दगी की सूक्ष्मताओं का भेद नहीं पाया जा सकता। अचेतन के अविष्कार को आधुनिक मनोविज्ञान अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि मानता है। मनोवैज्ञानिक अनुसन्धानों के सारे दरो- दीवार इसी नींव पर टिके हैं। किसी भी पीड़ा- परेशानी का कारण मनोचिकित्सक अचेतन में ढूँढने की कोशिश करते हैं। आज के वैज्ञानिक समुदाय में इस सच को स्वीकारा जाता है कि जिन्दगी की समस्याओं की जड़ें इन्सान के मन में है। अनगिनत शोध प्रयासों ने इस तथ्य को प्रामाणिकता दी है कि रोग शारीरिक हों या मानसिक, इनके बीज इन्सान के अचेतन मन की परतों में छुपे होते हैं। इस सर्वमान्य स्वीकारोक्ति को विशेषज्ञों ने कई तरह से जाँच- परखकर सही पाया है। इसमें न कोई मतभेद है और न मनभेद।

          हां, सवाल इसका जरूर है कि अचेतन मन क्या है? तो मनोवैज्ञानिक इसके उत्तर में कहते हैं कि यह और कुछ नहीं बस हमारा बीता हुआ कल है। बीते हुए कल में हमने जो कुछ किया, सोचा अथवा जो भावानुभूतियाँ पायी उसकी गहरी लकीरें हमारे अचेतन मन में अभी भी बनी हैं। इसे यूं भी कह सकते हैं कि हमारे बीते हुए कल की अनुभूतियाँ ही अचेतन का निर्माण करती हैं। यदि इन अनुभूतियों में कटुता, तिक्तता या कसक बाकी रही है, तो वह रोग- शोक के रूप में प्रकट होती है। इसी से अनेकों दुःखद घटनाक्रम जन्म लेते हैं। यदि अचेतन की स्थिति सुधरी- संवरी है, तो जीवन के सुखमय होने के आसार भी बनते हैं।

प्रायः सभी मनोचिकित्सक अचेतन की इस परिभाषा एवं प्रभाव से सहमत हैं। किन्तु आध्यात्मिक चिकित्सक इस सत्य को अपेक्षाकृत व्यापक परिदृश्य में देखते हैं। इनका कहना है कि बीते हुए कल की सीमाएँ केवल वर्तमान के क्षण से लेकर बचपन तक सिमटी नहीं हैं। इसके दायरे काफी बड़े हैं। ये इतने ज्यादा व्यापक हैं कि इसमें हमारे पूर्वजन्म की अनुभूतियाँ भी समायी हुई हैं। पूर्वजीवन में हमारे द्वारा किए गए कर्म, गहनता से सोचे गए विचार एवं प्रगाढ़ता से पोषित हुई भावनाएँ भी अपनी स्थिति के अनुरूप वर्तमान जीवन में सुखद या दुःखद स्थिति को जन्म देती हैं।

          आध्यात्मिक चिकित्सा के इस सिद्धान्त को कई आधुनिक मनोचिकित्सकों ने स्वीकारा है। इन्हीं में से एक डॉ. ब्रायन वीज़ हैं। जो अमेरिका में फ्लोरिडा क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले मियामी शहर में मनोचिकित्सा कर रहे हैं। डॉ. वीज़ ने अपने चिकित्सा कार्य में कई बार पाया कि रोगी के दुःख द्वन्द्व के कारण उसके व्यक्तित्व की अतल गहराइयों में है। पहले तो उन्होंने प्रचलित विधियों का प्रयोग करके तह तक जाने की कोशिश की। पर उन्हें कोई खास सफलता न लगी। हां उन्हें इतना जरूर अहसास हुआ कि अभी ज्यादा गहरे उत्खनन की जरूरत है। और उन्होंने नयी विधियों की खोज करके अपने रोगी के पिछले जीवन में झांकने की कोशिश की। इस कोशिश ने उन्हें न केवल सफल बनाया, बल्कि इस तरह वे पूर्वजन्म की वैज्ञानिकता को जानने में सफल रहे।

        डॉ. वीज़ ने अपने इन प्रायोगिक निष्कर्षों को अलग- अलग ढंग से पुस्तकों में प्रकाशित किया। इन पुस्तकों में ‘मैसेजेस फ्राम दि मास्टर्स, मैनी लाइव्स, मैनी मास्टर्स, ओनली लव इज़ रियल एवं थ्रू टाइम इन्टू हीङ्क्षलग’ मुख्य है। उनके इस वैज्ञानिक रचना से संसार में आध्यात्मिक चिकित्सा की हकीकत जानी- समझी एवं पढ़ी जा सकती है। साथ ही यह भी अनुभव किया जा सकता है कि किसी भी रोगी की सफल आध्यात्मिक चिकित्सा के लिए उसके पूर्वजन्म के ज्ञान का क्या महत्त्व है। डॉ. वीज़ के ये प्रायोगिक निष्कर्ष न केवल सामान्य पाठक को अभिभूत करते हैं, बल्कि इन सत्यों की जानकारी ने उन्हें स्वयं को अभिभूत कर दिया है। इसी का सुखद परिणाम है कि मनोचिकित्सक के रूप में अपने व्यवसाय का प्रारम्भ करने वाले डॉ. ब्रायन वीज़ आज स्वयं को आध्यात्मिक चिकित्सक कहलाने में गर्व महसूस करते हैं।

      
   डॉ. वीज़ के इस सच को भगवद्भूमि भारत ने युग- युगान्तर से अनुभव किया है। योगेश्वर श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में इस सत्य को बताते हुए कहा है-

बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वैत्थ परंतप॥

          हे परंतप अर्जुन! मेरे और तेरे बहुत से जन्म हो चुके हैं। उन सबको तू नहीं जानता, किन्तु मैं जानता हूँ।

          यह जानना किसी आध्यात्मिक चिकित्सक की योग्यता को प्रामाणित करता है। यदि किसी में यह योग्यता नहीं है तो उसकी आध्यात्मिक चिकित्सा भी उसी की तरह अधूरी एवं अप्रामाणिक रहेगी।

          इस युग के महानतम् आध्यात्मिक चिकित्सक ब्रह्मर्षि परम पूज्य गुरुदेव इस प्रक्रिया में सिद्धहस्त थे। उन्होंने असंख्य जनों के पूर्वजन्म को जानकर उनके जीवन को पीड़ा, परेशानी से मुक्त किया। ऐसी ही एक घटना- शिव नारायण कुलकर्णी के जीवन की है। उन दिनों श्री कुलकर्णी की युवावस्था थी। और अभी हाल में ही उन्होंने एम.एस- सी. (भौतिक विज्ञान) में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण किया था। उनके स्वजन उन्हें शोध अध्ययन के लिए अमेरिका भेजना चाहते थे। पासपोर्ट, वीज़ा आदि की सारी तैयारियाँ हो चुकी थी। खर्च का भी इन्तजाम हो गया था। लेकिन तभी उन्हें पागलपन का दौरा पड़ा। स्वजनों ने मेडिकल कॉलेज के साइकिएट्री विभाग में उनका इलाज कराया। पर स्थिति सुधरी नहीं। चिकित्सक एवं चिकित्सालय बदलते गए और स्थिति बिगड़ती गयी।

          हारे को हरिनाम, मुसीबत पड़े तो श्रीराम। कहीं से ढूँढ खोजकर वे गुरुदेव के पास आ गए। गुरुदेव ने उनको बड़े ध्यान से देखा और उनकी आँखें छलक आयी। युवक श्री शिवनारायण कुलकर्णी के माता- पिता ने जानना चाहा, कि उनके इस लड़के का क्या होगा। घर- परिवार में सबसे होनहार बालक इतने बुरे पागलपन के चपेट में आ गया है। उन चिन्तित माता- पिता की ओर देखते हुए गुरुदेव बोले- बेटा तुम्हारे पुत्र की समस्या गम्भीर है और इसका ठीक होना लगभग असम्भव है। ऐसा करो कि तुम लोग अभी शान्तिकुञ्ज में ठहरो। और मेरे पास कल आना। तब कुछ समाधान सोचेंगे।
     
    बड़ी से बड़ी आपदाओं को चुटकियों में हलकर देने वाले गुरुदेव ऐसा क्यों कह रहे हैं? यह राज पास बैठे हुए कार्यकर्त्ता को समझ में न आया। उसने जिज्ञासावश पूछा, गुरुदेव इस युवक के जीवन में कोई गम्भीर बात है क्या? इस प्रश्र पर पहले तो गुरुदेव मौन रहे फिर बोले- बेटा! इसने पूर्वजन्म में बहुत ही बड़ा अपराध किया है, उसी का फल इस रूप में प्रकट हो रहा है। इसे कोई भी ठीक नहीं कर सकता। तब क्या होगा? देखेंगे, कहकर वह मौन साध गए।

          दूसरे दिन दोपहर में वह युवक और उसके माता- पिता फिर से आए। यह कार्यकर्त्ता भी काम से पूज्यवर के पास पहुँचा था। गुरुदेव ने उसके माता- पिता को सम्बोधित करते हुए कहा, हम तुम्हें निराश नहीं करना चाहते। इस लड़के की आयु भी अभी कम है। हम इसे ठीक तो कर देंगे, पर इसमें समय लगेगा। स्थिति कठिन तो जरूर है, पर हम स्वयं इसके द्वारा पूर्वजन्म के किए गए महापाप का प्रायश्चित्त करेंगे। साथ ही अपनी आध्यात्मिक शक्ति से इसके मन- मस्तिष्क की शल्यचिकित्सा करेंगे। यह प्रक्रिया कई चरणों में चलेगी। और इसमें लगभग दो- ढाई साल लगेंगे।
        
 गुरुदेव की इन बातों ने युवक के माता- पिता को आश्वस्त कर दिया। बीच- बीच में वे गुरुदेव से मिलने शान्तिकुञ्ज आते रहे। उस युवक में समय के साथ परिवर्तन प्रारम्भ हो गए। और समय के साथ वह ठीक भी हो गया। पूज्यवर की आध्यात्मिक चिकित्सा के विज्ञान को उस युवक के साथ उसके माता- पिता ने भी अनुभव किया। साथ ही यह भी जान सके कि पूर्वजन्म में हुए दुष्कर्म और उससे उपजे रोग- शोक का परिमार्जन आध्यात्मिक ढंग से ही सम्भव है। इसी विधि से प्रारब्ध के सुयोग- दुर्योग बदले जा सकते हैं।

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