अवरोध पुरुषार्थ के निरीक्षक, परीक्षक

May 1980

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आवरण और अनुबंधो की कमी नहीं। वे कष्ट कारक प्रतीत होते हैं और प्रगति पथ में अवरोध उत्पन्न करने के कारण खीज भी उत्पन्न करते हैं। इतने पर भी एक तथ्य स्पष्ट है कि विशेष पुरुषार्थ के मूल्य पर विशेष उपलब्धियाँ प्राप्त करने की व्यवस्था बनी रहनी ही श्रेयस्कर है। इससे प्रबल पुरुषार्थ को उत्तेजन मिलता है और अकर्मण्य को झकझोरने वाला वातावरण उत्पन्न होता है।

अवरोधों का अस्तित्व न हो और हर उपलब्धि हर किसी के लिए सम्भव रहा करे तो फिर साहसिकता और पुरुषार्थ परायणता की कोई आवश्यकता ही न रह जायगी। ऐसी दशा में सुविधा सम्पन्न लोगों का व्यक्तित्व भी गया गुजरा बन कर रह जायगा। वे उन उपलब्ध्यों का आनन्द भी न ले सकेंगे, जिनकी अपेक्षा एवं कामना किया करते हैं। प्राप्त कर लेना ही सब कुछ नहीं है।

उपब्धियों की सुरक्षा एवं उनके सदुपयोग की दूर दर्शिता भी सहज ही नहीं मिल जाती। उसके लिए भी पराक्रम चाहिए। भोजन मिल जाना ही सब कुछ नहीं है, उसे पचाने की क्षमता भी चाहिए। उपलब्धियों के सम्बन्ध में भी यही बात है। सृष्टि व्यवस्था में बहुत कुछ बहुमूल्य है किंतु वह रहस्यमय बना रहता है। यह इसलिए है कि पुरुषार्थ की प्रतिद्धन्दता में उतरने वाले इस विशिष्ट का उपहार प्राप्त कर सकें और अन्यान्यों को वैसा ही करने का उत्तेजन दे सकें।

पृथ्वी के वातारवरण एवं स्िल में सीमावद्ध होने के कारण हमें प्रकृति की अनेकों सूक्ष्म शक्तियों का अनुभव नहीं हो पाता। वद्ध क्षेत्र से परे जाने के प्रयत्न में पता चलता है कि प्रकृति अपनी शक्तियों द्धारा किस प्रकार रास्ता रोके खड़ी है। उदाहरणार्थ पृथ्वी से चन्द्रमा पर जाने के लिए पृथ्वी के गुरुत्वार्षण शक्ति से पार जाने के लिए 25 हजार प्रति घण्टे मील से चलने वाले राकेट की आवश्यकता होती है। इससे कम में प्रचण्ड गुरुत्वाकर्षण शक्ति से निकल सकना सम्भव नहीं है गति कम हो तो उल्टे हानि की सम्भावना होगी। राकेट कुछ दूर जाकर पुनः पृथ्वी की कक्षा में ही परिक्रमा करते हुए गिर जायेगा। दो सौ मील की ऊचाँई पर जाने पर हवा का दबाव समाप्त हो जाता है। अधिक ऊचाँई के लिए आक्सीजन साथ ले जाने की आवश्यकता होती है।

शून्य आकाश में तो हम हलके गुब्बारे की तरह तैरने लगते है। चन्द्रमा पर भी शरीर अत्यन्त हलका मालूम पड़ता है। वायु न होने के कारण निकटवर्ती ताप की आवाज भी नहीं सुनाई पड़ती। अन्य ग्रहों की परिस्थितियाँ भिन्न भिन्न हैं। इस कारण उन पर अनुभूतियाँ भी एक जैसी नहीं होंगी। इस ब्रह्ममाण्ड में अनेकों ग्रह नक्षत्र ऐसे हैं जहाँ वनज हवा की तरह हलका तथा पहाड़ जैसा भारी हो सकता है। यह वस्तुतः उस स्थान पर कार्य कर रही आकर्षण शक्ति के कारण होता है।

उदारणार्थ सूर्योदय सूर्यास्त के समय में परिवर्तन होने से पृथ्वी के मौसम भी बदल जायेंगे। हवा क दबाव न रहे तो हम आकाश में उड़ने लगेंगे। पृथ्वी के वातावरण में परिवर्तन होने अथवा इस क्षेत्र के परे जाने पर जिस प्रकार अनुभूतियों के स्तर भी बदल जाते हैं। उसी प्रकार सृष्टि जब तक स्थूल में केन्द्रित होती हैं, चेतना की असीम सामर्थ्यें मा पता नहीं लग पाता। साधनात्मक उपचार ही वह तीव्र गति से चलने वाले राकेट हैं जो वस्तुओं के प्रचण्ड़ आकर्षण शक्ति से साधक को परे ले जाते तथा चेतना की गहराइयों में प्रविष्ट कराते हैं।

पृथ्वी के सीमाबद्ध वातावरण में बहुत कुछ है सीमित पराक्रम वालों को उतने से ही सन्तोष करना पड़ता है असीमता आनन्द लेने के लिए असीम साहस और असीम प्रयास की आवश्यकता होती है। इसी कटु सत्य का दर्शन पृथ्वी क इर्द गिर्द छाये हुए वातावरण और उससे ऊपर निकलने क प्रयास करने वालों की सफलताओं को देखकर सहज ही जाना जा सकता है।


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