सच्ची व चिरस्थायी प्रगति के दो अवलम्बन

April 1968

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भौतिक प्रगति के लिए बलिष्ठ शरीर, प्रशिक्षित मस्तिष्क, आकर्षक व्यक्तित्व, अभीष्ट उपार्जन, परिपूर्ण परिवार, आवश्यक वातावरण तथा अनुकूल अवसर की अपेक्षा रहती है। यह साधन जिसे जितने मिल जाते हैं वह उतनी ही लौकिक सफलता प्राप्त कर लेता है।

आत्मिक प्रगति का मूल्य महत्व, सुख एवं प्रतिफल भौतिक सफलताओं की अपेक्षा सहस्रों गुना अधिक है। इतने पर भी उसके लिए दो साधन पर्याप्त हैं। एक भावनापूर्ण उपासना, दूसरा जीवन को उत्कृष्ट, अनुकरणीय बनाने की साधना। इन दोनों के लिए यदि स्थिर मति और प्रगाढ़ निष्ठा के साथ प्रयत्न किया जाय तो निस्संदेह आत्मिक प्रगति भी इसी तरह मिल सकती है, जैसी कि भौतिक प्रगति।

जीवन की महत्ता और सफलता उसकी आत्मिक प्रगति पर निर्भर है। भौतिक सफलतायें उतनी देर ही आनन्द देती हैं जब तक कि उनकी प्राप्ति नहीं होती है। जैसे ही वह मिली कि उनका आनन्द समाप्त हुआ। सच्चा और चिरस्थायी सुख और लाभ आत्मिक प्रगति पर ही अवलम्बित है। इसलिए जो मानव-जीवन का श्रेष्ठतम सदुपयोग करना चाहते हैं और जिस आनन्द के लिए यह जन्म मिला है, उसे प्राप्त करने के इच्छुक हैं उन्हें आत्मिक प्रगति के लिए तत्पर होना चाहिए और उसके दोनों आधारों का- उपासना और साधना का अवलंबन ग्रहण करना चाहिए। -स्वामी कृष्णानन्द


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