आत्मा का हित चलते रहने में है। एक स्थान पर डेरा डाल देना उसके स्वभाव के प्रतिकूल है। भोग और विषय दुर्गन्ध से भरे हुए हैं। उसके मध्य में तृप्ति मान लेने वाले को असली माधुर्य का पता ही नहीं लगा। सब विद्याओं में बड़ी मधु-विद्या है, जो आत्मज्ञान या आध्यात्मिक विद्या का ही दूसरा नाम है।
-मनुष्य में दृढ़ संकल्प शक्ति ही दिव्य कौस्तुभ मणि है, जो हृदय का अलंकार है। जिस हृदय में कौस्तुभ नहीं वह विहीन है। संकल्प की वीर्यवती शक्ति ही मनुष्य को देव बनाती है।