हृदय और बुद्धि का समन्वय

May 1961

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(सन्त बिनोवा)

हमारे देश में ऋषि, सन्त, योद्धा, वैज्ञानिक, महापुरुष और अवतारी व्यक्ति अगणित हुए हैं। उनके चरित्रों का श्रवण मनन और पठन-पाठन करना उचित है। उसके लिए अनेक पुराण इतिहास उपलब्ध है। उन महापुरुषों का नाम स्मरण करना, उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करने वाले आयोजन भी समय-समय पर करते रहना चाहिए जिससे वीर पूजा की परम्परा जारी रहे और वर्तमान पीढ़ी के लोगों को भी वीर एवं महान बनने की प्रेरणा मिले।

आज यह सब होता भी है। हम अपने अतीत को स्मरण करने के लिए जितने धार्मिक और साँस्कृतिक आयोजन करते हैं उतने दुनिया भर में और कहीं नहीं होते। इतने पर भी हममें उन प्राचीन महापुरुषों की महानता का आविर्भाव नहीं होता, यह एक विचारणीय एवं चिन्ताजनक बात है। हम भागवत पढ़ें और सुनें पर कृष्ण बनने की आकाँक्षा उत्पन्न न हो; रामायण के अखण्ड पाठ हों और कथा प्रवचन हों पर किसी में राम बनने का उत्साह न आये, ऐसा क्यों? रासलीला और रामलीला हम इतनी श्रद्धापूर्वक करते और देखते हैं फिर उन महापुरुषों का अनुकरण करने की भावना मन में क्यों नहीं उत्पन्न होती?

बात यह है कि हम उनके स्थूल कार्यों को देखते हैं और उन्हीं की नकल करते हैं, उनके गुणों पर न तो मनन करते हैं और न उन्हें अपने अन्तःकरण में उतारने के लिए सचेष्ट होते हैं। इस स्थूल स्मरण और अनुकरण से कुछ विशेष आयोजन सिद्ध होने वाला नहीं है।

एक उदाहरण लीजिए। छत्रपति शिवाजी ने अपने काल में कई किले बनाये और उनसे राष्ट्र रक्षा का बहुत प्रयोजन सिद्ध हुआ। यदि हम आज शिवाजी के प्रशंसक होने के नाते उसी प्रकार के ऊँचे-ऊँचे किले जहाँ तहाँ बनाना आरम्भ कर दें और इसे शिवाजी का अनुकरण कहें तो यह कोई बुद्धिमत्ता पूर्ण बात न होगी। ऐसा करने से धन का ही अपव्यय न होगा यदि कभी शत्रु से मुकाबला हो जाय तो उन किलों में रहने वालों पर बमबारी आसानी से हो सकती है।

महापुरुषों की जीवन गाथाओं में से उनके स्थूल चरित्रों का अनुकरण करना आवश्यक नहीं वरन् उनके गुणों और आदर्शों को अपने अन्दर धारण करना चाहिए। हमारा हृदय भूतकाल के प्रति श्रद्धा रखे यह ठीक है पर हमारे मस्तिष्क को वर्तमान के साथ चलना चाहिए। यदि दिल और दिमाग दोनों ही भूतकाल में रहें तो हम एक खंडहर मात्र रह जावेंगे।

अब पौधों में कलम लगाने की उपयोगिता सिद्ध हो रही है। कलमी आम कितने बड़े और स्वादिष्ट होते हैं। कलमी आम कितने बड़े और स्वादिष्ट होते हैं। कलमी गुलाब का फूल कैसे सोहता है। अब तो बाँस और गन्ने के संयोग से जो पौधा पैदा होगा वह बहुत विशाल और बहुत मधुर पेड़ बनेगा। ऐसा ही प्रयोग हमारे बौद्धिक क्षेत्र में भी होना चाहिए। प्राचीन काल का दिल और अर्वाचीन काल का दिमाग इन दोनों का जोड़ देने से मानव के अन्दर एक महती विचार शक्ति उत्पन्न हो सकती है और उसके द्वारा सुख शान्ति भरे युग का आविर्भाव हो सकता है।


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