सत्य व्यवहार की अपार शक्ति

April 1958

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(श्री स्वामी शिवानन्द सरस्वती जी महाराज)

सच्चाई सत्वगुण से उत्पन्न है। योग दर्शन में इसे आर्जव कहते हैं। गीता के तेरहवें और सोलहवें अध्याय में वर्णित सद्गुणों में एक आर्जव भी है। यह ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के लिए आवश्यक है। यह दैवी सम्पत्ति है। यह सत्य का ही रूप है। यह सात्विक अन्तःकरण की वृत्ति हैं।

सच्चा मनुष्य समाज में आदर पाता है। प्रत्येक मनुष्य उसमें विश्वास रखता है। मनुष्य कहता है-’अमुक व्यक्ति बहुत ही सच्चा मनुष्य है। मैंने उसके समान किसी को भी अपने जीवन में नहीं देखा। उसके प्रति मुझमें बहुत ही आदर का भाव है। उसमें मेरी अटूट श्रद्धा है।

झूठा व्यक्ति जीते हुए भी मृतक के समान है। यदि मनुष्य झूठा है तो विश्वविद्यालयों की विद्या तथा उपाधियों से क्या, तपस से क्या, जटा तथा माला धारण करने से क्या, संन्यास तथा समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने से क्या, धन तथा सम्पत्ति से क्या? जो आदमी इस सुन्दर गुण से विभूषित है वह अपने सारे प्रयासों में सफलता प्राप्त करता है। वह उत्तरदायित्व पूर्ण कामों के करने से पैर पीछे नहीं खींचता है। वह संलग्न होता है तथा प्रयास करता है। वह बुद्धिमानी पूर्वक काम करता है। वह सतर्क रहता है।

यदि मनुष्य के पास यह एक भी सद्गुण है तो अन्य सभी सद्गुण उसमें आने लगेंगे। सच्चे मनुष्य इस संसार में विरले ही हैं।

अतः ऐ मित्रों! सदा सच्चे बनो। इस सद्गुण को अधिकाधिक अंश में विकसित करो और ब्रह्म-साक्षात्कार करो। ब्रह्म सचाई की ही प्रतिमूर्ति है। अतः सचाई से ब्रह्म को प्राप्त करो।

सच्चा मनुष्य प्रबल प्रेम तथा भक्ति के साथ कठिन काम करता है। वह अपने गुरु अथवा स्वामी के सारे उत्तरदायित्वों को अपने ऊपर ले लेता है। दस मनुष्यों का काम वह स्वतः उत्साह, प्रेम तथा प्रसन्नता के साथ करता है। सच्चाई महती आध्यात्मिक शक्ति है। यह प्रबल शक्ति प्रदान करती है। कूटनीति, कपट व्यवहार, धूर्तता, संकीर्णता, निम्न बुद्धि- ये सब अवगुण उसमें नहीं होते। वह सरल तथा स्पष्टवादी होता है। वह किसी वस्तु को छिपाता नहीं। वह अपने विचारों को नहीं छिपाता। उसके विचार, उसकी वाणी तथा उसके कार्य में एकरसता होती है।

झूठा मनुष्य कभी अपने वादे के अनुसार काम नहीं करता, वह कोई न कोई बहाना कर दिया करता है। लोग उसके शब्दों में विश्वास नहीं करते। उसके शब्दों में प्रभाव नहीं होता। उसमें प्रबल इच्छाशक्ति नहीं होती। वह अपने मित्र को विभिन्न तरीकों से प्रसन्न रख कर सच्चा बनने का उपक्रम करता है। परन्तु वह नहीं जानता कि दूसरे बुद्धिमान जन हैं जो उसके असली रंग को पहचान लेंगे। वह शीघ्र ही पहचान लिया जाता है।

मनुष्य अच्छी तरह जानता है कि असत्य अच्छा नहीं फिर भी वह उसी में आसक्त रहता है। वह अपने दुर्गुणों को नहीं छोड़ सकता। वह अपने दुर्गुणों को नष्ट करने के लिए प्रयत्नशील नहीं होता। इसका कारण क्या है? अविद्या रहस्यमयी है। बुरे संस्कारों के कार्य रहस्यमय हैं। सत्संग तथा गुरु सेवा के द्वारा इस मोह को नष्ट किया जा सकता है।

हे मित्र! तुम स्वार्थ तथा लोभ के उन्माद में झूठे बन गए हो। तुम नहीं जानते कि तुम वास्तव में क्या कर रहे हो। तुम्हारी बुद्धि आच्छन्न है। एक न एक समय तुम्हारी चेतना तुम्हें कोसेगी। पश्चाताप के कारण तुम्हारा हृदय रक्त रंजित होगा। तभी तुम अपने को शुद्ध बनाओगे। जप करो। भगवान के नाम का कीर्तन करो। एकादशी को उपवास रखो। एक बूँद भी जल न पीओ। अच्छे कर्म करो। गरीबों तथा बीमारी की सेवा करो और इस प्रकार अपने को शुद्ध बनाओ। तुममें सच्चाई आवेगी, सच्चाई से तुम मुक्ति, शाँति तथा पूर्णता प्राप्त करोगे।

विशाल हृदय, सरलता, नम्रता, निर्दोषिता, क्षमा, शुद्धता, स्थिरता, आत्मसंयम, अभय, अक्रोध, मनःशाँति, अलोभ, मधुरता, लज्जा, धैर्य, अद्वेष, निरभिमानता इत्यादि सद्गुण सच्चाई से पूर्णतः सम्बन्धित हैं।

पाखंड, उद्दण्डता, अभिमान, क्रोध, कटुता, अज्ञान, धोखेबाजी, कूटनीति, मिथ्याचरण, धूर्तता, संकीर्णता, क्षुद्रता- ये सब झूठेपन से सम्बन्धित हैं।

एक ऑफीसर ने कुछ रचनात्मक धार्मिक काम करना चाहा। इसके लिए वह संस्था निर्माण करना चाहता था। वह अपनी बचत को इसी उद्देश्य से अपने पुत्र के पास भेज दिया करता था। परन्तु उसके झूठे पुत्र ने सब रुपयों को अपनी स्त्री के नाम से रख लिया तथा इस प्रकार अपने पिता से दगा की। एक गुरु ने अपने शिष्य को प्रचार के लिए भेजा। शिष्य ने स्वतः अपनी संस्था बना डाली और वह स्वयं उसका संस्थापक बन बैठा। परन्तु इस झूठेपन के कारण उसकी उन्नति नहीं हो सकी। उसने कुछ दुष्कर्म किये और पुलिस से बचने के लिए उसे यत्र तत्र छिपना पड़ा। पाप इस संसार में स्वतः अपने लिए दण्ड लाता है। असत्य परायण मनुष्य इस संसार में उन्नति नहीं प्राप्त कर सकते। उन्हें विफलता होगी ही। इस संसार में उनका अपमान होगा तथा परलोक में उन्हें नरक का कष्ट भोगना पड़ेगा।

जब पति मिथ्याचरण करता है तब उसकी स्त्री उस पर शंका करने लगती है; घर में हमेशा झगड़ा तथा वैषम्य रहता है। यदि प्रधान कर्मचारी झूठा है तो आफिस का काम सुचारु रूपेण नहीं हो पाता, आफिस सुपरिटेंडेंट उससे अप्रसन्न हो जाता है और उसे नौकरी से बाहर करता है। यदि मंत्री झूठा है तो वह शीघ्र ही महाराज द्वारा निकाल दिया जाता है। झूठा आदमी किसी भी आध्यात्मिक या सामाजिक संस्था में वैषम्य तथा अशाँति पैदा कर देता है तथा संस्था के काम में बड़ी खलल पड़ती है।

शिष्य जन भी जो अपने गुरुओं से दीक्षा लेते हैं, झूठे, श्रद्धा रहित तथा कृतघ्न बन जाते हैं। एक झूठे शिष्य ने भगवान जीसस को धोखा दिया। भगवान बुद्ध के कुछ शिष्य उनके दुश्मन बन बैठे। उन लोगों ने गुरु को त्याग कर बहुत नुकसान पहुँचाया। आज भी झूठे शिष्यों की कमी नहीं जो अपने गुरु से दगा करते हैं। कितनी लज्जा की बात है। कितनी दुःखद स्थिति है। ऐसे शिष्य दुःखद मृत्यु को प्राप्त करेंगे। वे महा रौरव नरक में दण्डित होंगे। दूसरे जन्म में वे निम्न योनियों में प्रवेश करेंगे तथा असाध्य बीमारियों से पीड़ित होंगे।

पद्मपाद श्रीशंकर के सबसे सच्चे शिष्य थे। गुरु कृपा के कारण वे नदी के ऊपर भी चल सकते थे। हर कदम पर उन्हें कमल मिलता था। इसलिए उनका नाम पद्म-पाद पड़ा। श्री शंकर स्वयं श्री गोविन्द पाद के सच्चे शिष्य थे। उन्होंने पहले गुरु की स्तुति लिखे बिना कोई भी ग्रन्थ नहीं लिखा। सच्चा शिष्य ही आध्यात्मिक मार्ग में उन्नति प्राप्त करेगा। वही जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर अमृतत्व में स्थित होगा।

यह संसार सच्चे व्यक्तियों से पूर्ण हो जो संसार के लिए महान उपयोगी कार्य कर सकें! तुम्हारा हृदय श्रद्धा, भक्ति तथा सच्चाई से पूर्ण हो!


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