युग के चरण (Kavita)

April 1958

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अग्नि पथ है, प्रज्वलित लपटें गगन में, स्वार्थ, हिंसा, लोभ, शोषण, नाश रण में,

चल रहे हैं पर चरण युग के निरन्तर, साँस में हुँकारते मुठभेड़ के स्वर,

युग-विरोधी शक्तियों को दे चुनौती, हर कदम पर, हम कदम पर, बढ़ रहा दृढ़ जन-समुन्दर।

ये चरण, युग के चरण हैं कब झुकेंगे, ये शहीदों के चरण हैं, कब रुकेंगे,

कौन-सा अवरोध आहत कर सकेगा, पन्थ पर तूफान आहें भर सकेगा,

ये करेंगे विश्व-नव-निर्माण बढ़कर, हर कदम पर, हम कदम पर, बढ़ रहा दृढ़ जन-समुन्दर।

नाश को ललकारती है युग-जवानी, क्राँति का आह्वान करती आज वाणी,

प्राण में उत्साह नूतन ताजगी हैं, युग-युगों की साधना की लौ जगी हैं,

सामने जिसके ठहराना हैं असम्भव, हर कदम पर, हर कदम पर, बढ़ रहा दृढ़ जन-समुन्दर।


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