गायत्री उपासना के अनुभव

April 1958

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मारने वाला स्वयं मर गया

एक गायत्री प्रेमी ग्राम हमीरपुर (जि.शाहजहाँपुर) से लिखते हैं- यहाँ के श्री. बालकरामजी गुप्त वैद्य गायत्री के बड़े भक्त हैं और अनेक वर्षों से उसकी उपासना करते रहते हैं। एक समय वे किसी मरीज की चिकित्सा करने गये तो मालूम हुआ कि मोती नाम का एक स्याना (ओझा) 50 रु. लेकर मरीज को अच्छा करने को कहता है। बालकरामजी ने उसके घर वालों से कहा कि इसे चिकित्सा द्वारा ही आराम हो जायेगा, तुम रुपया मत देना। जब इस बात की खबर मोती को लगी तो वह बहुत बिगड़ा और उसने बालकरामजी पर घात का प्रयोग किया। वैध जी को स्वप्न में ऐसा मालूम हुआ कि एक काला भयंकर पुरुष उन्हें मारने को आ रहा है। यह देखकर बालकराम चिल्ला उठे। इतने में एक कन्या आ गई और उसने उस भयंकर पुरुष को अपने हाथ के त्रिशूल से मार दिया। दूसरे दिन मोती बालकराम के पास आकर बार-बार क्षमा माँगने लगा कि मैंने आपका बड़ा अपराध किया, आप मुझ पर क्रोध न करें। बालकरामजी ने कह दिया कि हम तो कुछ नहीं करते। पर पन्द्रह दिन बाद ही सर्प के काटने से मोती की मृत्यु हो गई।

जहर खा लेने पर भी मृत्यु नहीं हुई

वही गायत्री प्रेमी श्रीबालकरामजी वैद्य के गायत्री संबन्धी अन्य अनुभवों के विषय में लिखते हुये कहते हैं कि वैद्यजी के गुरुदेव की मृत्यु होने पर उनको ऐसा दुख हुआ कि वे भी रात्रि के समय घर से निकल कर सरजू जी के तट पर जा बैठे। वहाँ स्नान करके गायत्री उपासना की और फिर प्राण-त्याग के उद्देश्य से जहर खा लिया। जहर के प्रभाव से वे बेहोश हो गये। उसी दशा में स्वप्न में उनको एक कन्या दिखलाई पड़ी, जो उनसे कह रही थी कि तुम घर जाओ तुम्हारी अभी मृत्यु नहीं है। कुछ देर बाद होश में आने पर वे घर चले आये।

अबोध बालक की रक्षा

श्री बाबूलाल शर्मा, राघोगढ़ (म.प्र.) से लिखते हैं-श्री के.एल. सोनी का 3 वर्ष आयु का पुत्र चि. राजेन्द्र कुमार दो मंजिल की छत से खेलते-खेलते अचानक नीचे गिर गया। पर माता की असीम कृपा से बालक को खरोंच तक नहीं आई। यह चमत्कार देखकर लोग भक्तिभाव से माता का स्मरण करने लगे।

नौकरी पर फिर बहाल कर दिये गये

श्री जगदम्बाप्रसाद जी, छीनेपुर (शाहजहाँपुर) से लिखते हैं- यहाँ के श्री जगदीशप्रसाद जी सक्सेना अपनी पटवारीगीरी की नौकरी से अलग कर दिये गये थे। अपने भाई की प्रेरणा से उन्होंने उसी समय से गायत्री जप शुरू कर दिया। तहसीलदार ने उनसे कह दिया था कि आपका नाम लिस्ट से खारिज हो चुका है। थोड़े ही दिन बाद डिप्टी साहब दौरे पर आये, उन्होंने कहा कि तुम्हारा नाम लिस्ट में है और नौकरी अवश्य मिलनी चाहिये। इस समय वे कुर्रिया में लेखपाल हैं। उन्हें अब माता पर बड़ी श्रद्धा हो गई है।

ज्वर दूर हो गया

श्री.ना.रा.वर्मा, ललितपुर (झाँसी) से लिखते हैं- स्थानीय पोस्टमास्टर श्री शिवप्रसाद गुप्ता की लड़की विमलादेवी को जोर से ज्वर चढ़ आया था और वह उससे बेचैन थी। मुझे समाचार मिलने पर मैंने गायत्री माता से प्रार्थना की और उसी से झाड़ फूँक कर दी। चार ही दिन में खतरनाक ज्वर पूर्ण रूप से जाता रहा और अब वह पूर्ण स्वस्थ है। इसके उपलक्ष्य में माता का प्रसाद वितरण किया गया।

भयंकर राजरोग (टी.बी.) से छुटकारा

श्री लक्ष्मीनारायण द्विवेदी बी.ए. (पूर्व, विज्ञानाध्यापक, बाँदा) क्षय-निवारण आश्रम, गोठिया (नैनीताल) से लिखते है-मैं विगत कई वर्षों से वेदमाता की उपासना करता आ रहा हूँ कुछ समय पहले मुझ पर यक्ष्मा जैसे भयंकर रोग का आक्रमण हुआ। मैंने चिकित्सा के लिये प्रार्थना पत्र भेजा, जिसके फलस्वरूप मुझे हिमालय के अतुलनीय रम्य प्रदेश में बिना किसी प्रकार के व्यय के स्थान प्राप्त हो गया। सैनीटोरियम में भर्ती होने पर मालूम हुआ कि मेरे दायें फेफड़े में तीन कैबिटीज और बाँये में एक बड़ी कैबिटी हो गई है, अर्थात् मेरे दोनों फेफड़े अत्यधिक खराब हो चुके हैं। मैं बिस्तरे पर पड़े-पड़े गायत्री का मानसिक जप बड़ी श्रद्धा से करने लगा। तीन ही महीने में मेरे स्वास्थ्य में बहुत सुधार हो गया और केवल बायें फेफड़े में थोड़ी सी शिकायत शेष रह गई। डॉक्टर ने जब एक्स-रे से मेरी परीक्षा की तो इतने शीघ्र आशातीत लाभ होने पर बड़ा आश्चर्य प्रकट किया और मुझे बहुत बधाई दी। बीमारी की हालत में भी मैं गायत्री जप बराबर करता रहता हूँ और मेरा विश्वास है कि पुनः पूर्ण रूप से स्वस्थ हो जाऊँगा।

नौकरी प्राप्त हुई

श्री. नरेन्द्र गौड बी.ए. कासगंज से लिखते हैं-नौकरी न मिलने के कारण मैं बहुत चिन्तित था परिचित-अपरिचित, सभी व्यक्तियों एवं संबन्धियों की ओर से सहायता के लिये निराश हो चुका था। असफलताओं के कारण मेरे अंतर्मन में अनेक भयानक कुविचारों ने अपना जाल फैला दिया था। भाग्य से एक दिन मुझे ‘गायत्री-ज्ञान-अंक’ प्राप्त हुआ। मैंने कुछ पुस्तकें गायत्री तपोभूमि से मंगाकर और गायत्री माता का चित्र पास में सजाकर नियमित रूप से गायत्री जप, पूजन एवं स्वाध्याय आरम्भ कर दिया। इस प्रकार 5 दिन बीत गये, छठे दिन रविवार था, अतः मैंने उपवास रखकर हवन किया। रात को एक व्यक्ति ने मुझे एक पत्र दिया जिसमें लिखा था- “तुम्हारी नौकरी एटा में लग गई है, तुम सोमवार को आ जाओ।” बात सच निकली और मुझे नौकरी मिल गई। उसी दिन से मैं और मेरी पत्नी नियमित रूप से गायत्री की पूजा करते हैं, क्योंकि वे अपने पुत्र-पुत्रियों की करुणा पुकार अवश्य सुनती हैं।

जमीन वापिस मिल गई

श्री. नारायण सिंह , चीखली (जि. बुलडाना, बरार) से लिखते हैं-मेरी जमीन 10 वर्ष से एक साहूकार के पास गिरवी रखी थी और उसके वापिस मिलने की उम्मीद नहीं थी। पर अब उसमें से तीन एकड़ बेचकर शेष मुझे वापिस मिल गई। यह एक ऐसी बात थी जिसका किसी को भरोसा न था। इसलिये मैं तो यही मानता हूँ कि वह गायत्री माता की कृपा से ही मुझे प्राप्त हुई। मैंने भी उस जमीन की रजिस्ट्री अपने बच्चे के नाम से करादी, जिससे मैं फिर उस पर कर्जा का बोझा न लाद सकूँ। मुझे आशा है कि अब मुझ पर माता की कृपा सदा बनी रहेगी।

परीक्षा में सफलता प्राप्त हुई

पं. ग्यारसीलाल मिश्र, बुचारा (जि. जयपुर) लिखते हैं- मैंने पटवार शिक्षा का फार्म भर दिया था। पर किसी कारणवश बीच में पढ़ाई छोड़ दी और मेरे साथी आगे निकल गये। इससे मेरी सफलता की कोई सम्भावना नहीं रही और मैं उदास रहने लगा। उसी समय किसी महाशय ने मुझ से कहा कि आप गायत्री का जप कर लें तो सफल हो सकते हैं। मैंने उसी समय संकल्प कर लिया और समय आने पर परीक्षा में उत्तीर्ण भी हो गया। यह सब माता की कृपा है।

मन की अभिलाषा पूर्ण हुई

श्री महेशदानजी, नागोर (मारवाद) से लिखते हैं- मुझे एल. डी. सी. बनने की बड़ी अभिलाषा थी। मैं शिक्षा विभाग के दफ्तर में काम तो एल. डी. सी. का करता था, पर वेतन मास्टरों का 66 रु. का पाता था। अचानक कलक्टर के आफिस में पाँच एल. डी. सी. की जगह खाली हुई और कुल 9 उम्मीदवारों में से केवल मैं ही अकेला चुना गया। जिस समय इन्टरव्यू हो रहा था, मैं बराबर गायत्री का मानसिक जप करता रहा। अब मेरा वेतन 66 रु. हो गया है। इसके लिए मैं जीवन भर वेदमाता का अहसान मानता रहूंगा।

गायत्री माता की कृपा

श्री शिवप्रसाद पाठक, मंत्री गायत्री परिवार शाखा खटई (म. प्रा.) से लिखते हैं- गायत्री माता की कृपा से मेरे दो मित्रों की पदोन्नति हो गई और मेरे पिताजी की नौकरी लग गई। मैं भी अपनी परीक्षा में अन्य विद्यार्थियों की अपेक्षा बहुत कम परिश्रम कर सकने पर भी अच्छे नम्बरों से पास हो गया। मेरे आत्मीय मित्र श्री काशीनाथराय भी गायत्री उपासना के फलस्वरूप परीक्षा में सफलता प्राप्त कर चुके हैं और गायत्री द्वारा धर्म प्रचार में संलग्न हैं।

कत्ल के मुकदमे में बरी

एक गायत्री भक्त, भदरी (शाहजहाँपुर) से लिखते हैं- हमारे गाँव में एक कत्ल हो गया था, जिसमें गलती से मुझको भी पकड़ लिया गया। जेल में मैं गायत्री का जप करने लगा, जिसके फल से मुकदमा पेश होने पर ज्यादातर गवाहों ने मेरे माफिक ही गवाही दी और मैं साफ छूट गया। मेरा एक मुकदमा और भी चल रहा था, उसमें भी हमको अच्छे ढंग से डिगरी मिल गई। इससे हम गायत्री माता की बड़ी श्रद्धा से उपासना करने लगे हैं।

निराशा के बादल हट गये

श्री रामबहादुर मिश्र ‘दिनेश’ ग्राम डुबकी जिनकानपुर से लिखते हैं-मैं बहुत दिनों से नौकरी के लिये परेशान था। जहाँ भी जाता था वहीं निराशा के बादल दिखलाई पड़ते थे। किन्तु जब मैंने गायत्री परिवार का सदस्य बनकर माता की शरण ली तो उसके एक मास के बाद ही मुझे नौकरी प्राप्त हो गई। इसके पश्चात् और कई नौकरियों के भी स्वीकृति पत्र आये। इस प्रकार गायत्री माता की दया दृष्टि से मेरा भाग्य पलट गया।

उधार दिया रुपया वसूल हो गया

श्री. किसनाजी व डाबाजली उचाबह (तलवाड़ा, निमाड़) से लिखते हैं- मैंने एक व्यक्ति को कुछ रुपया उधार दिया था। पर माँगने पर वह साफ इनकार कर गया कि तुम्हारा मेरे ऊपर कुछ नहीं निकलता। इससे मैं बड़ा दुखी हुआ और रात्रि में सोते समय माता से प्रार्थना की कि मेरी सहायता करो। रात्रि में मुझे स्वप्न आया कि तीन ब्राह्मण मुझ से दक्षिणा माँगते हैं, मैंने उनसे कहा कि जप करने वाले दक्षिणा नहीं लेते। दूसरे दिन प्रातःकाल वही व्यक्ति स्वयं आकर सब रुपया दे गया। यह दृश्य देखकर मैं माता की महिमा के सम्मुख नतसिर हो गया।

सर्प से रक्षा हुई

श्री रामलाल दर्यावजी प्रधान पाठक तलवाड़ा (जिला धार म. प्र.) लिखते हैं-ता. 20 फरवरी को मैं श्री प्रभाशंकरजी पाठक के यहाँ से दत्त भजन के कार्यक्रम में भाग लेकर रात के 12 बजे स्कूल वापिस आ रहा था। मेरे हाथ में लालटेन थी, पर मैं अपनी धुन में तेजी से चला आ रहा था। रास्ते में एक साँप इकट्ठा होकर पड़ा था और मैं उसे लाँघ कर आगे बढ़ गया। बाद में कुछ शंका होने से मुड़ कर देखा तो साँप चलता हुआ नजर आया, यह देखकर मैं सन्नाटे में आ गया और बार-बार गायत्री माता को धन्यवाद देने लगा।

बालक की निमोनिया के प्रकोप से रक्षा

श्री. छगनलाल माँगीलाल शर्मा, ग्राम सिनगुण (निमाड़) से लिखते हैं- इन दिनों मैं ब्रह्मास्त्र सम्बन्धी पुस्तकें व परिपत्र वितरण कर रहा था कि मेरे 4॥ मास की आयु के पुत्र को निमोनिया हो गया और क्रमशः उसकी हालत यहाँ तक बिगड़ गई कि प्राण छूटने के लक्षण स्पष्ट जान पड़ने लगे। यह देख मैंने बच्चे को गोदी में लेकर गायत्री जप करना आरम्भ किया और मेरे पास बैठे अन्य तीन उपासकों को भी माता की प्रकाशमान मूर्ति का दर्शन हुआ और उसी समय से बालक की दशा सुधर कर वह स्वस्थ हो गया।

सोलह वर्ष पहला रोग दूर हुआ

श्री महेन्द्रकुमार साहनी, कोटबाड़ा (निमाड़ म. प्र.) से लिखते हैं- “मेरी मामी करीब सोलह वर्ष से पेट की बीमारी से पीड़ित थी। मामाजी उसके जीवन की आशा छोड़ चुके थे। मैंने उन्हें हिम्मत देकर आपरेशन के लिए इन्दौर भिजवाया और स्वयं अनुष्ठान करने लगा। आपरेशन होने पर पेट से 1॥-2 सेर का गोला निकला और मामी को नव जीवन मिल गया। (2) मुझे स्वप्न में अत्यन्त सुन्दर दो रमणियाँ दिखाई पड़ा करती हैं। एक कहती है कि तो कुछ माँगना चाहो माँग लो। दूसरी कहती हैं, ये चारों वेद रखे हैं, इन्हें ले लो और आजीवन अभय रहो। कभी स्वप्न में ही संस्कृत के कुछ शब्द स्पष्ट लिखे दृष्टिगोचर होते हैं। मैं उन्हें पढ़ता हूँ और धीरे-धीरे गुनगुनाने लगता हूँ कि आँखें खुल जाती है। जप के प्रभाव से आत्मोन्नति के चिन्ह निरन्तर जान पड़ते हैं।

लंगड़ापन दूर हो गया

श्री शिवराम कौशिक, कोडागाँव (बस्तर, म. प्र.) से लिखते हैं “मेरा लंगड़ा पुत्र जो 10 वर्ष से चूतड़ घसीटते हुये चलता था, उसने जिस दिन से गायत्री साधना आरम्भ की उसके 15 दिन पश्चात् से खड़ा होकर चलने लगा। अब मुझे दृढ़ विश्वास हो गया है और मैं जन्म भर माता की शरण में रहूँगा।

बदमाशों के पंजे से बच्चे की रक्षा

डॉ. शंकरलाल गुप्ता, कुढार (एटा, उ. प्र.) से लिखते हैं कि बदमाशों ने मेरे भतीजे अशोक कुमार को, जिसकी उम्र चार साल की है, उड़ाने की बहुत कोशिश की थी। वह दिन भर उन बदमाशों के दरवाजे पर ही खेलता रहा और गाँव के बाहर स्कूल तक घूम कर चला आया, पर वे लोग उसे अपने हाथ से पकड़ नहीं सके। उन्होंने एक दूसरे लड़के से कहा कि शंकरलाल के भतीजे को पकड़कर मेरे यहाँ पहुँचा दो। उस लड़के ने आकर यह बात मुझसे कह दी। मैंने बदमाशों को बुलाकर फटकारा और धमकाया कि हम पुलिस में रिपोर्ट कर देंगे। इस पर वे भाग गये। लड़के के गले में गायत्री रक्षा कवच बंधा हुआ था, अतः जगत जननी की कृपा से उसका बाल बाँका नहीं हुआ। इसी प्रकार इस लड़के और इसकी बहिन के बहुत भयंकर चेचक निकली थी। इन दिनों मैं सवा लाख का अनुष्ठान कर रहा था और इसी जप के जल के छींटे दोनों बच्चों को लगा दिए और वही जल पिलाया। बच्चे तीन दिन में बिलकुल निरोग हो गये।”

काले नाग से जान बची

श्री ब्रजमोहन ‘निम्बार्क’, आवर (झालावाड़, राजस्थान) से लिखते हैं- “हाल ही की बात है कि मेरी पत्नी शौच के लिए नदी की तरफ गई थी। हमेशा की तरह जैसे ही वह एक झाड़ियों के झुरमुट में जाने लगी कि पास ही एक विशाल सर्प दिखलाई पड़ा। उसकी भयंकर आकृति को देखते ही मेरी पत्नी के होश उड़ गये और भय के मारे वह जहाँ की तहाँ खड़ी रह गई। दो चार मिनट बाद सर्प अपने आप दूसरी ओर चला गया। कई आदमियों ने पत्नी से कहा कि यह तुम्हारी नई जिन्दगी हैं। मेरा विश्वास हैं कि उसकी प्राण रक्षा वेदमाता की कृपा से ही हो सकी।”

पत्नी को बीमारी से छुटकारा मिला

श्री वृहस्पतिलाल कौशिक, कोडागाँव (बस्तर) से लिखते हैं ‘मेरी पत्नी एक आकस्मिक रोग से पीड़ित रहा करती थी और इस कारण बड़ी दुखी थी। जब से उसने गायत्री की दस माला प्रतिदिन जपना आरम्भ किया हैं। तब से उसकी बीमारी सर्वथा जाती रही। अब माता की कृपा से मेरे घर में सब प्रकार से आनन्द है।”


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