माँ, तेरे अरुणिम अधरों ने जगती को जीवन-दान दिया।
तेरे चुम्बन से प्राण मिले जग ने तेरा स्तन-पान किया॥
हे महालक्ष्मी, जीवन का संचित सुख दिया भुवन में भर।
पहनाया खिला-पिला सुख से सन्तानों को सुखमय कर-कर॥
माँ सरस्वती, थपकी दे दे तुमने अपनी लोरी गायी।
सम्पूर्ण ज्ञान-बल विद्या की वीणा तुमने ही झनकायी॥
गौरी, तुमने ममता द्वारा जग-शिशु को पाला, बड़ा किया।
तुमने ही इसको वाणी दी उँगली दे-देकर खड़ा किया॥
माँ अन्नपूर्णा, गोदी भर सुख से जग बालक खिला-खिला।
धोया मुख अन्न-प्राश करना धूसर तन पर, कर फिरा-फिरा॥
माँ अनसूया, तेरी गोदी रो-रो कर खेले जग-त्राता।
तेरी गोदी में कौशल्या, हँस-हँस कर राम छिपक जाता॥
यशमयी यशोदा, श्याम विचर तेरी गोदी में सो जाता।
विकराल क्रुद्ध वह परशुराम कर दूध पान चुप हो जाता॥
गौतमी महामाया तूने जग को करुणा का गान दिया।
अपने छोटे से चुम्बन से अपवर्ग-स्वर्ग का मान दिया॥
हे दैत्यनाशिनी, उतरी तू हो भयंकरा, हो विकराला।
देवी, काली, चामुण्डा बन दानव-दल सौंहड़ कर डाला॥
सुत कसे कमर मुँह में लगाम दो-दो तलवार घुमाती थी।
लक्ष्मीबाई तू दैत्यों पर पल-पल बिजली बरसाती थी॥
हे कर्मवती, तेरी असि भी मेवाड़ मध्य झंकार रही।
नीला, तेरी छुरियाँ अब तक नागिन बनकर फुफकार रही॥
जीते-जी काट दिया सिर को धर दिया और असि पर पानी।
तू किरणमयी, तू पद्मा है, तू वीर-प्रिया हाँडी रानी॥
सावित्री, तेरे तप ने ही यम को भी यहाँ छकाया था।
सीता वन-वन में विचरी थी पतिव्रता धर्म निभाया था॥
तेरी साीडडडडड की धारी पर रच गया महाभारता पूरा।
अपना कुन्तल अपराध देख तू भभक उठी बनकर शूरा॥
दशरथ के सँग कैकेयी बन तू दानव दल में अर्राइ।
देवी, तेरे की वाणी में दानव-दल हुए धराशायी॥
तेरी महिमा ममता में है करुणा में है सेवा में है।
दे आत्म-समर्पण की बल्ली तू भव-सागर खेवा में है॥
(श्री शंकरलाल शर्मा, एम.ए., एल.टी)
*समाप्त*