गायत्री परिवार-समाचार

February 1957

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तपोभूमि वृत्तान्त

गायत्री तपोभूमि में दैनिक यज्ञ तथा साँस्कृतिक विद्यालय में कार्यक्रम बड़े आनन्दपूर्वक चल रहा है। प्रातः 6 से 8॥ बजे तक यज्ञ होता है। जिसमें गायत्री मंत्र तथा वेद परायण क्रम के अतिरिक्त 40 प्रकार के अन्य शक्तिशाली यज्ञों की क्रियात्मक शिक्षा दी जाती है।

संगीत अध्यापक छात्रों को हारमोनियम, तबला, ढोलक, चिमटा, मँजीरा, इकतारा, खंजरी, बैंजो आदि बाजों पर धार्मिक गान वाद्य सिखाने का पूरा-पूरा प्रयत्न करते हैं। छात्रों ने इस दिशा में प्रगति भी की है। होम्योपैथी तथा आयुर्वेद के ज्ञाता द्वारा चिकित्सा कक्षा नियमित रूप से चलाई जाती है। संस्कृत भाषा और यज्ञोपवीत आदि षोडश संस्कार कराने की शिक्षा प्रातः यज्ञ समाप्त होते ही आरम्भ कर दी जाती है। सामूहिक जप, कीर्तन, मंदिर की पूजा आरती, सत्संग आदि के क्रम यथावत चलते रहते हैं।

गीता तथा रामायण की कथा एवं भाषण प्रवचनों की कक्षाएं भी शीघ्र ही आरम्भ की जाने वाली है। बिजनौर के आत्मदानी वकील श्री. अशर्फीलाल अपना घरबार व्यवसाय छोड़कर 1 मार्च से तपोभूमि में स्थायी रूप से सेवा करने आ रहे हैं। उनके आते ही भाषण प्रवचनों की शिक्षा तपोभूमि में आरम्भ हो जावेगी।

आचार्य जी की धर्मपत्नी माता भगवती देवी जी कन्या गुरुकुल चलाने की योजना में व्यस्त हैं। उन का एक लेख भी इस अंक में जा रहा है। वे शिक्षित सहयोगिनियों की आवश्यकता अनुभव कर रही हैं। यदि उनकी यह आवश्यकता पूर्ण हो गई तो महिलाओं की यहाँ एक दूसरी तपोभूमि एवं साँस्कृतिक विद्यापीठ चल पड़ेगी और नर-नारी दोनों क्षेत्रों में धार्मिक प्रेरणा का सत्प्रयत्न आरम्भ हो जायगा।

मालवा प्रान्तीय महायज्ञ

ता. 13,14,15 जनवरी को चचोर (मन्दसोर) में खात्याखेड़ी महावीर स्थान पर मालवा प्रान्तीय गायत्री महायज्ञ बड़े ही आनन्दपूर्वक रूप से संपन्न हुआ। 25 कुण्डों की विशाल यज्ञशालाओं में पाँच लाख आहुतियाँ दी गई हैं। यज्ञशाला, सभामण्डप, भोजनशाला सभी की सजावट बड़े सुन्दर ढंग से की गई थी। जेनरेटर से बिजली उत्पन्न करके इस सुनसान जंगल में बसे हुए गायत्री नगर को दिवाली जैसे प्रकाश से जगमग कर दिया गया था। बाहर से आये हुए आगन्तुकों के ठहरने के लिए फूस की सुन्दर कुटिया बनाई गई थी। कुछ तम्बू भी थे। मेले जैसा बाजार भर गया था। दूर-दूर गाँवों से लगभग 15 हजार जनता प्रातःकाल आ जाती थी और यज्ञ के दर्शन तथा प्रवचन सुनने के बाद शाम को जाती। अतिथियों तथा दूर से आने वाले सभी सज्जनों के लिए निःशुल्क भोजन की समुचित व्यवस्था थी। लगभग 100 मन बूँदी (मिठाई) का प्रसाद वितरण किया गया। मथुरा से आचार्य जी, स्वामी प्रेमानन्द जी, कुँ. नत्थासिंह जी तथा अन्यान्य स्थानों से बड़े-2 विद्वान व्याख्यान दाता पधारे थे। वैद्य कन्हैयालाल जी मिश्र ने मथुरा पूर्णाहुति के अवसर पर इस मालवा प्रान्तीय यज्ञ का संकल्प किया था, वह चचोर तथा अन्यान्य ग्रामों के श्रद्धावान सत्पुरुषों के सहयोग से पूर्ण सफलता के साथ सम्पन्न हुआ। इस यज्ञ से इस प्रान्त में धार्मिक भावनाओं की असाधारण जागृति हुई है। लोगों ने ऐसा धार्मिक दृश्य अपने जीवन भर में नहीं देखा था। सैकड़ों नर-नारी गायत्री उपासना करने तथा धार्मिक जीवन बनाने के लिए तत्पर हो रहे हैं। लगभग 180 नर-नारियों ने यज्ञ में मन्त्र दीक्षा ली तथा यज्ञोपवीत संस्कार कराये।

इस यज्ञ के बाद अब उस क्षेत्र में गायत्री उपासक बनाने तथा गायत्री परिवार की शाखाएं स्थापित करने का कार्य पूरे उत्साह से किया जाने को है।

-राम किशन शर्मा


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