सरस्वती यज्ञ (Kavita)

August 1954

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जग के अंधकार में भरता जो अति दिव्य प्रकाश, स्वर्ण अक्षरों से लिखता है मानव का इतिहास,

जिसके द्वारा उन्नत करते ज्ञान और विज्ञान, जिसको अभिमन्त्रित करते हैं गीता, वेद, पुरान,

उसी यज्ञ में आहुति देकर करो स्वयं को धन्य। इससे पावन नहीं विश्व में हुआ दूसरा अन्य॥

इसके द्वारा मानव को मिलती है आत्मिक-शान्ति, दूर सदा को हो जाती है ग्लानि, क्षोभ, मद भ्राँति,

शेष न रह पाता मानस में है कोई विद्वेष, सहज-सह्य बन जाते दैहिक, दैविक भौतिक क्लेश,

स्वयं साँत्वना में परिवर्तित हो जाता संताप। वरदानों का रूप ग्रहण कर लेता है अभिशाप॥

आओ साधक दिव्य-यज्ञ में आज बंटाओ हाथ, जीवन के चारों फल इसके सदा चलेंगे साथ,

धर्म-नीति का संबल, संस्कृति का पुनीत पाथेय, सत्य और शिव, सुन्दर द्वारा सर्वोदय है ध्येय,

बुद्धि जगत की इसके द्वारा ही सम्भव श्रीवृद्धि। सरस्वती का यज्ञ स्वयं ही इस जगती पर सिद्धि॥


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