अणुबम या योग साधना।

June 1950

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री रामप्रताप ‘नि’ हजारीबाग)

परमाणु क्या है? वस्तु के कण अणु होते हैं जो मानव चक्षुओं द्वारा दिखलाई नहीं पड़ते। उसके भी सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाग को परमाणु कहते हैं इसकी सूक्ष्मता का अन्दाज इस बात से लगाया जा सकता है कि एक सुई के छेद में करोड़ों अणु के कण निहित हैं।

अणु की विशेषतायें भी बड़ी विचित्र हैं। अणु ठोस नहीं होता। यह सौरमण्डल से मिलता है। जिस तरह सूर्य के चारों ओर ग्रह नक्षत्र-चक्कर काटा करते हैं। ठीक उसी तरह अणु के केन्द्र में एक पिण्ड होता है। इस केन्द्रीय पिण्ड में दो मुख्य बातें पायी जाती हैं 1- प्रोट्रॉन (विद्युत सहित) 2-इलेक्ट्रॉन (विद्युत रहित)। केन्द्र पिण्ड के चारों ओर ग्रह नक्षत्र की तरह एक दूसरे प्रकार के कण जिसे ‘न्यूट्रॉन’ कहते हैं निरन्तर घूमा करते हैं। इस तरह यह अणु सौरमण्डल से बिल्कुल मिलता है।

अणुबम का जब विस्फोट होता है तो अणु बम में निहित केन्द्र पिण्ड को दूसरे प्रकार के कण ‘न्यूट्रॉन’ द्वारा छिन्न-भिन्न कर दिया जाता है। जिससे असाधारण उष्णता और चमक पैदा हो जाती है और विनाशलीला होने लगती है।

प्रश्न होता है कि सूक्ष्मातिसूक्ष्म अणु के कण में इस कदर शक्ति कहाँ से आई? इसका उत्तर संसार प्रसिद्ध विद्वान वेत्ता आइन्सटाइन साहब ने दिया है। जो हाल ही में अखबारों में प्रकाशित हुआ था। इनकी गवेषणा ने वैज्ञानिक जगत के सिद्धान्त का रूप ही बदल डाला है।

आज तक तो यह माना जाता था कि संसार में पाए जाने वाले तत्वों का नाश कभी नहीं होता पर अब यह निश्चित हो गया है कि मूलतत्वों को वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा बदला भी जा सकता है। तत्व के लुप्त हो जाने पर वह शक्ति में परिणत हो जाता है। आइन्सटाइन साहब ने अपनी नई खोजों द्वारा यह भलीभाँति सिद्ध किया है कि मूल तत्वों को वैज्ञानिक प्रयोगों द्वारा बदला जाता है। इसी सिद्धान्त पर हाइड्रोजन बम बनाया गया है।

वैज्ञानिकों के अवलोकन के फलस्वरूप यह पता चला है कि सूर्यलोक में हाइड्रोजन गैस बराबर एक दूसरी गैस में परिणत होते रहते हैं जिसे ‘हिलियम’ कहते हैं। इस परिवर्तन का मूल कारण सूर्यलोक में पाया जाने वाला तापमान है।

अणुबम में अणु का विस्फोट होता चला जाता है परन्तु हाइड्रोजन बम में इसके विपरीत अणु के कण उच्च तापमान से मिलते हैं। अणु से उच्च तापमान पैदाकर हाइड्रोजन बम बनाने में आसानी होती है।

योग में हम स्थूल से सूक्ष्म की और क्रमशः बढ़ते जाते हैं। स्थूल शरीर से प्राण, प्राण से मन, और मन से आत्मा में पहुँचते हैं। इस तरह स्थूल शरीर के लोप होने पर प्राण में, प्राण के लोप होने पर मन में और मन के लोप होने पर आत्मा में पहुँच जाते हैं।

अतः ज्यों-2 हम योग प्रणाली की ओर बढ़ते जाते हैं एक-एक तत्व का लोप होता जाता है और तत्व के लोप होने पर वह अधिक में परिणत होता जाता है और अन्त में शक्ति के केन्द्र आत्मा में पहुँचकर पूर्ण शक्तिशाली होकर लौट जाता है। अतः योग द्वारा भी यह सिद्ध है कि तत्व के लोप होने पर वह शक्ति में परिणत होता जाता है। यही योग का रहस्य है।

योग साधन में बहिर्मुखी जीवन को अन्तर्मुखी बनाने का अभ्यास इसलिए किया जाता है सूक्ष्म शक्ति को बाह्याडम्बरों में खर्च होने से बचाकर तत्वों को सूक्ष्म बनाने की प्रक्रिया में लगाया जा सके। तीव्र इच्छा, चित्त की एकाग्रता, लक्ष्य की तन्मयता के आधार पर हमारे शारीरिक और मानसिक तत्व क्रमशः सूक्ष्म होते चलते हैं। और उस सूक्ष्मता के आधार पर हमारे उपकरण पदार्थ से शक्ति में परिणित होते चलते हैं। यह शक्ति ही यदा-कदा आश्चर्यजनक योगिक सिद्धियों के रूप में दृष्टिगोचर होती है। योगी आध्यात्मविज्ञान पर अवलंबित साधना द्वारा अपने तत्वों को शक्ति में परिणित कर लेता है और शक्तिपुँज बनकर प्रत्यक्ष या परोक्ष में ऐसे कार्य करता है जो सर्वसाधारण के लिए संभव नहीं होते।

योग एक सुव्यवस्थित विज्ञान है। अणु का शक्ति में परिवर्तन होना वैज्ञानिकों ने कुछ रासायनिक पदार्थों यंत्रों और वैज्ञानिक प्रक्रियाओं द्वारा संभव किया है। इस कार्य को भारतीय आध्यात्मवेत्ता योग विज्ञान द्वारा चिरकाल से करते आ रहे हैं। अणु बम या हाइड्रोजन बम से केवल भयंकर विनाश की ही कल्पना की जा सकती है पर योग द्वारा अपने बाह्य उपकरण को स्थूल से सूक्ष्म में, अणु से शक्ति में परिणित करके योगी प्रबल शक्ति और ऐश्वर्य का स्वामी बनकर विश्वव्यापी महाशक्ति हो जाता है। एक ही वैज्ञानिक सिद्धान्त “अणु का शक्ति में परिणित होना” योगियों और वैज्ञानिकों द्वारा दो भिन्न प्रकार से होता है और उसके परिणाम भी अलग-2 प्रकार से हो रहे हैं।

वह दिन दूर नहीं जब विश्व के सार्वभौम विवेक को यह निर्णय करना पड़ेगा कि अणु को शक्ति में बदल कर प्रलयकर बम तैयार किये जायं या क्षुद्र जीव को आत्मा- महान आत्मा- परम आत्मा- बनाया जाय। इस अन्तिम निर्णय पर ही संसार का भविष्य निर्भर है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118