गायत्री अंक के सम्बन्ध में

May 1948

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गायत्री को वेद माता कहा गया है। उसके गर्भ में महान ज्ञान और अनन्त साधन भर हुए हैं। उन सब का विस्तार विविध शास्त्रों ने विभिन्न ऋषियों ने विभिन्न प्रकार से किया है। इन भिन्नताओं का साहित्य इतना बड़ा है कि उस सबका संकलित करना कठिन है। फिर यदि संकलित भी कर दिया जाय तो उनका समन्वय करके उनका-क्रम, पात्रत्व, क्षेत्र, भूमि आदि को समझना हर किसी के लिये सुगम नहीं है।

इतने विस्तार में न जाकर हमने एक ही ग्रन्थ को हाथ में लिया है और उस की वर्णित एक प्रणाली को पाठकों के सामने उपस्थित किया है। गायत्री संहिता के एक-एक श्लोक में गायत्री विद्वान का महत्वपूर्ण मर्म छिपा हुआ है। उस मर्म को यथा अति संक्षेप में लिखने का हमने प्रयत्न किया है। इस एक प्रणाली के आधार पर प्राप्त हुआ ज्ञान पाठकों के लिए अधिक सुविधाजनक होगा, ऐसा हमारा विश्वास है।

हमारे कितने ही कृपालु मित्रों और विद्वान सज्जनों ने गायत्री साधनाओं के संबंध में कितने ही लेख भी भेजे हैं, पर उनको इसलिए न छापा जा सकता कि कितनी ही विधियों का वर्णन होने से पाठकों की उलझन बढ़ती और इनमें से किसे ग्रहण करें और किसे त्यागें इस द्विविधा में पढ़ कर उन्हें बुद्धि विक्षेप में पड़ना होता। साधकों के लिए एक ही प्रणाली निष्ठा उत्पन्न कर सकती है, इसलिए इस अंक में वैसा ही प्रयत्न हुआ है।

हम चाहते थे कि एक ही सुविस्तृत अंक में गायत्री संबंधी सब पाठ्य सामग्री उपस्थित की जाती और उसे सब प्रकार सुन्दर सचित्र एवं सुसज्जित बनाया जाता, पर हमारे साधन बहुत सीमित हैं। अखंड ज्योति जितने पृष्ठों में निकल रही है उतने पृष्ठ देते हुए भी उसे अपना खर्च पूरा करने में बड़ी कठिनाई होती है फिर अधिक घाटे की पूर्ति किस प्रकार की जाय? आज की कागज की महंगाई, दुर्लभता, तथा साधनों की कमी के कारण वैसा न किया जा सका। काम चलाऊ उपाय के रूप में यह करना पड़ा कि उस पाठ्य सामग्री को मई, जून और जुलाई में तीन अंकों में पूरा किया जा रहा है। इन अंकों को गायत्री अंक के तीन भाग कहा जा सकता है। इन तीन भागों में कुल मिला कर पाठकों को गायत्री के संबंध में एक क्रमबद्ध और महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त हो जायगी।

पाठकों से निवेदन

जुलाई के अंक में अखंड ज्योति में गायत्री सम्बन्धी अनुभव छपेंगे। साधकों को गायत्री की उपासना करने से जो लाभ हुए हैं उनका विस्तृत वर्णन भेजने का अनुरोध है। अखंड ज्योति के पाठक इस दिशा में एक कार्य कर सकते हैं कि वे उन साधकों के पास जिन्होंने गायत्री की साधना की हो, अखंड ज्योति के प्रतिनिधि की तरह उनके पास जा कर उनसे उनके अनुभव पूछें और कहीं अन्यत्र भूत काल में किसी को इस साधना से जो लाभ हुआ हो उनका संग्रह करके भेजें। आशा है कि पाठक अपनी पत्रिका के लिए इस दिशा में सद्सेवा करके लेख भिजवाने का प्रयत्न करेंगे।

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