वेदमाता गायत्री की महिमा।

May 1948

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

सारभूतास्तु वेदानाँ गुहयोपनिषदो स्मृताः।

ताभ्यः सारस्तुगायत्री तिस्रो व्याहृतयस्तथा ।। याज्ञवलक्य

वेदों का सार गुह्य उपनिषद् हैं, उपनिषदों का सार गायत्री तथा तीन व्याहृतियाँ हैं।

यथा मधु च पुष्पैभ्या घृतं दुग्धाद्रसात्पयः।

एवं हि सर्व वेदानाँ गायत्री सारमुच्यते।। मनु0

जिस प्रकार पुष्पों का शहद, दूध का घी, रसों का दूध सार है, उसी प्रकार समस्त वेदों का सार गायत्री को कहा जाता है।

गायत्री वेद जननी गायत्री पाप नाशिनी।

गायत्र्यस्तु परन्नास्ति दिवि चेह च पावनम्।। व्यासः

गायत्री वेदों की माता है, गायत्री पाप नाश करने वाली है, अतः गायत्री से श्रेष्ठ पृथ्वी तथा स्वर्ग में भी पवित्र करने वाला और कोई नहीं है।

----***----


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118