स्वच्छता एक अमूल्य अध्यात्मिक गुण है

December 1948

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(श्री द्वारिकाप्रसाद कटरहा B.A. दमोह)

रोम के प्रसिद्ध महात्मा एपिक्टेरस युवकों को सदा यही उपदेश दिया करते थे कि स्वच्छता पूर्वक रहो और सुन्दर बनो। वे वाह्य वस्तुओं की स्वच्छता और सौंदर्य पर विशेष ध्यान देते थे और कहा करते थे कि जो युवक सदा स्वच्छतापूर्वक रहता है, साफ सुथरे कपड़े पहनता है, अपने बालों को अच्छी तरह धोता और ठीक तरह से संवारता है अपने व्यवहार की वस्तुओं को शुद्ध और स्वच्छ रखने का ध्यान रखता है वह जैसे तैसे कपड़े पहनने वाले तथा उलझे हुए बालों वाले युवक की अपेक्षा तत्व ज्ञान शीघ्र ही प्राप्त कर लेगा। वे समझते थे कि जबकि एक साफ सुथरे युवक ने अध्यात्म ज्ञान के प्रवेश द्वार पर पदार्पण कर लिया है एक मैले कुचैले रहने वाले युवक ने तत्व ज्ञान का प्रारम्भिक पाठ भी नहीं सीखा है। वे सुन्दर और शिष्ट नवयुवक की खूब प्रशंसा किया करते थे और कहते थे कि जिसने वाह्य जीवन में सुन्दरता का पाठ सीखा है वही व्यक्ति आगे चलकर वाह्य सौंदर्य से भी श्रेष्ठकर सौंदर्य की खोज में अग्रसर होगा और वही व्यक्ति आन्तरिक सौंदर्य की श्रेष्ठता से शीघ्र ही आकर्षित होकर उसे प्राप्त करने के लिए उत्सुकता पूर्ण प्रयत्न करेगा।

महात्मा एपिक्टेरस की शिक्षा का शरीर के प्रति अशुभ भावना रखने की शिक्षा देने वाले अन्य महात्मा पुरुषों की शिक्षाओं से मिलान करने पर तो मोटे तौर पर यही कहा जायगा कि उनकी इस शिक्षा से विलासिता को प्रोत्साहन मिलेगा और लोगों में पाप प्रवृत्ति बढ़ेगी। पर वास्तव में बात ऐसी नहीं है। स्वच्छतापूर्वक वातावरण में रहने का प्रयत्न ही मनुष्य को पुरुषार्थ में प्रवृत्त कराता है। कोई भी मनुष्य आलस्य को अच्छी तरह त्यागे बिना स्वच्छतापूर्वक नहीं रह सकता अतः प्रयत्न कई स्वाभाविक परिणाम आलस्य विजय होता है। प्रकृति का उद्देश्य है कि मनुष्य कम से कम अपनी शरीर रक्षा के लिए तो परिश्रम करना सीखे। इस तरह प्रकृति मनुष्य को पुरुषार्थी बनाकर तत्व ज्ञान का पहला पाठ पढ़ाती है। जो मनुष्य इस तरह भौतिक आवश्यकताओं के प्रति पुरुषार्थी हो जाता है वही आगे चलकर आत्म शुद्धि के लिए पुरुषार्थ करने वाला और देवोपम गुणों को प्राप्त करने वाला हो सकता है। शायद इसीलिये अंग्रेजों में एक उक्ति प्रचलित है कि “स्वच्छता दिव्यत्व के अत्यन्त समीप है” हमें सदा स्मरण रखना चाहिए कि गंदगी से रहना लक्ष्मी का अपमान है क्योंकि वह गंदगी से सदा दूर दूर भागती है।

गंदगी का अर्थ आलस्य और लापरवाही है। बहुत से लोगों के गंदगी से रहने की प्रधान कारण स्वच्छता से रहने के लिए द्रव्य आदि साधनों की कमी नहीं है। बल्कि उसका कारण अधिकतर उनकी लापरवाही ही है। कोई कोई लोग कहते हैं कि क्या करें हम काम में इतने अधिक व्यस्त रहते हैं कि हमें इन छोटी छोटी बातों पर ध्यान न देने के लिए बहुत ही कम अवकाश मिलता है किंतु हम समझते हैं कि यदि हम स्वच्छता का महत्व समझ कर उसके लिए अधिक उत्सुक और प्रयत्नशील हों तो हम उतने ही समय में पहले से अधिक स्वच्छतापूर्वक रह सकते हैं। यदि हम इस कार्य में मनोरंजन का कुछ समय भी एतदर्थ दे सकते हैं। यदि आपमें अपने व्यवहार की वस्तुओं को फेंककर जहाँ चाहे वहीं पटक कर रख देने की और कपड़ों को जैसे चाहे वैसे उतार कर रख देने की आदत नहीं है और यदि आप घर में एक कमरे से दूसरे कमरे को आते जाते समय रास्ते में पड़ी हुई चीजों को ठिकाने से रख सकते हैं, यदि आप अपनी किताबें कुर्सी आदि को यथा स्थान जमा कर रख सकते हैं, यदि आप अपने कपड़ों को व्यवस्थापूर्वक घड़ी लगाकर रख सकते हैं और यदि आप अपने जूतों को भी सुडौलपन का ध्यान रखते हुए ठीक तरह से उतार कर रख सकते हैं तो निश्चय ही आप अपने घर को काफी स्वच्छ और सुन्दर बनाने में सहायता पहुँचा सकेंगे।

लोग बहुधा समझते हैं कि यदि उनके पास अधिक कपड़े हो जावें तो फिर वे सफाई से रह सकेंगे। संभव है उनकी धारणा ठीक हो किंतु यदि बेइन्तजामी के कारण उनके वस्त्रों में सफाई की कमी है तो जान लीजिए कि कपड़े बढ़ा लेने से वस्तु स्थिति में कोई विशेष परिवर्तन न होगा। जो दो कपड़ों को संभाल कर नहीं रख सकते वे दस कपड़ों की क्या संभाल करेंगे?

कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिन्हें आप कोई वस्तु अच्छी हालत में दे दीजिए तो वे उसे बुरी हालत में लौटावेंगे। यदि वे किसी साफ जगह में भी निवास करें तो कुछ ही दिनों में उसे घिनौनी कर डालेंगे। ये लोग बड़े अभागे हैं और ये जितना अपने वातावरण से लाभ प्राप्त करते हैं उतना उसे देते नहीं। ये वस्तुओं का उपयोग करते तो हैं पर फिर उन्हें उनकी पूर्वावस्था में नहीं ला सकते। ये आलसी हैं और मुफ्त में ही सुख लूटना चाहते हैं। ऐसे लोगों को ही दुर्भाग्य का रोना रहता है और सोना छूते ही मिट्टी हो जाता है। अतएव हमें चाहिए कि यदि हमने किसी से कोई वस्तु ली है तो विचार करें कि जब उस व्यक्ति ने हमें कोई वस्तु सहृदयता पूर्वक उपयोग करने के लिए दे दी है तो कृतज्ञतावश हम यदि उस वस्तु को पहले से अच्छी हालत में नहीं दे सकते तो कम से कम बुरी हालत में तो न दें। कई विद्यार्थी को पुस्तकें माँगकर ले जाते हैं पर उनकी जिल्द तोड़ कर या पन्ने जहाँ तहाँ मोड़ कर ले आते हैं। लोग शादी विवाह के मौके पर बर्तन कपड़े आदि चीजें ले जाते हैं पर उन्हें साफ अवस्था में नहीं लौटाते। दुबारा आवश्यकता पड़ने पर यदि ऐसे लोगों को वस्तुएं देने से लोग टालमटोल करें तो क्या आश्चर्य।

फूहड़ लोग अपने अड़ोस पड़ोस को बड़ा गंदा रखते हैं। छोटी छोटी बस्तियों में ऐसा देखा जाता है कि स्त्रियाँ छोटे छोटे बच्चों को नालियों पर या सड़क पर पखाना करने के लिए बिठा देती हैं किन्तु फिर उन्हें इस बात की चिंता नहीं होती कि उसे तत्काल ही राख इत्यादि वस्तुओं से ढक दे या उठा डाले। घंटों वायु अशुद्ध होती रहती है आने जाने वाले लोगों को घिनौनापन और भिनभिनाहट मालूम होती है परन्तु उन्हें अपने कर्तव्य भी कुछ परवाह नहीं होती। वे तो शायद समझते हैं कि उस स्थान को गंदा अथवा साफ हालत में रखने का उन्हें पूर्ण अधिकार है और इसमें किसी अन्य व्यक्ति को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं। इनमें समाज के प्रति कर्तव्य निष्ठा उत्पन्न किये जाने की बहुत आवश्यकता है।

जिन घरों में स्त्रियों की सहायता के लिए बर्तन आदि साफ करने वाले व्यक्ति लगाए जाते हैं बहुधा उन घरों में भी पर्याप्त सफाई नहीं रहती। जब तक कहारिन न आवे बर्तन न धुलेंगे भले ही बर्तन रात भर जूठी ही हालत में रखे रहें। एक बार किसी बर्तन का उपयोग करने पर उसे तुरन्त साफ सुथरी हालत में न रखा जायेगा। इसे हम सुकुमारता कहें या आलस्य ? सुकरात ने ग्रीस के सर्वोपरि सुन्दर नवयुवक अलकिबाइडीज को सच्चरित्रता और स्वच्छता पूर्वक रहने की प्रेरणा देते हुए कहा ‘सुंदर बनो।’ अपने लोगों के लिए हमें भी ऐसी ही प्रेरणा देनी चाहिए।

हेल्थ ऑफिसर लोग शिकायत करते हैं कि हरिजन मुहल्ले बहुधा गंदे ही रहते हैं। उसका कारण बढ़ती हुई श्रम के प्रति घृणा, उनकी गरीबी पूँजीवादी श्रम विभाजन, एवं सफाई के काम को निकृष्ट काम समझा जाना ही समझा जाता है। और इसलिए काँग्रेस के कार्य कर्त्ताओं ने गांवों और हरिजनों के सामने सफाई से रहने का एक आदर्श उपस्थित करने का प्रयत्न किया है। किंतु इस दिशा में पर्याप्त सफलता नहीं मिली। इसका कारण उनकी श्रम के प्रति घृणा आदि का होना इतना नहीं हैं। (क्योंकि-इच्छा अथवा अनिच्छा पूर्वक आखिर वे श्रम तो करते ही हैं) जितना कि यह उन्हें स्वच्छता की आवश्यकता ही नहीं महसूस होती और गंदगी में बहुत समय तक रह लेने के उपरान्त हम उनके अंदर सफाई से रहने का भाव ही उत्पन्न नहीं कर सकते। संसार का प्रत्येक व्यक्ति समझ के अनुसार स्वच्छतापूर्वक रहने का प्रयत्न करता है और हरिजन लोगों का भी स्वच्छता का एक ‘स्टेंडर्ड’ है। हम जब कपड़ों को दो तीन रोज पहनने के उपरान्त उतार कर धोबी को दे दिया करते हैं, तो वैसे ही मैले कपड़े उनकी निगाह में इतने मैले नहीं हो जाते कि चार छः रोज और न पहने जा सकें। अतएव असली प्रश्न है आर्थिक और उस पर निर्भर स्वच्छता के ‘स्टेंडर्ड’ का जब तक हरिजनों में स्वच्छता का ‘स्टेंडर्ड’ न बढ़ाया जावेगा तब तक हरिजनों और गांवों की सफाई में कोई अन्तर न पड़ेगा।

स्वच्छता के साथ जब व्यवस्था कम सुडोलपन या संतुलन का संयोग कर दिया जाता है सब सुन्दरता की सृष्टि होती है। स्वच्छ किंतु उलझे हुए बालों को जब संवार दिया जाता है तब उनमें सुन्दरता आ जाती है उसका एक कारण पत्रों और पुष्पों का सुडौलपन भी है। यद्यपि प्रकृति में विविधता भी सुन्दरता का कारण है तथापि प्रकृति में सुन्दरता का कारण है बहुधा यह सुडौलपन ही होता है। क्या पौधों के पत्तों और पुष्पदलों में, क्या प्राणियों के शरीर में क्या पशु पक्षियों के अण्डों में, सर्वत्र यह सुडौलपन ही दृष्टिगोचर होता है। जहाँ सुडौलपन का अभाव है, वहीं कुरूपता और लंगड़ापन है। अतएव यदि घर की वस्तुओं को रखने में आप सुडौलपन का ध्यान रखेंगे तो निश्चय ही घर की सुन्दरता में वृद्धि होगी।

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