सूर्य नमस्कार

April 1947

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स्वास्थ्य को स्थिर रखने और बढ़ाने के लिए व्यायाम की बड़ी आवश्यकता है। व्यायाम से माँसपेशियाँ, नाड़ी समूह, संधियाँ तथा अस्थियाँ मजबूत होती हैं, रक्त का संचार ठीक होता है। फेफड़े, हृदय आमाशय, जिगर तथा आंतें अपना-अपना काम भली प्रकार करते रहते हैं। चेहरे पर तेज, गहरी निद्रा, उदर की सफाई का बहुत कुछ आधार व्यायाम पर निर्भर है। इन कारणों से व्यायाम हमारे दैनिक जीवन में उतना ही महत्वपूर्ण है जितना अन्न जल और भोजन।

इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कुपथियों ने व्यायाम को योग विद्या में प्रमुख स्थान दिया है। अष्टाँग योग साधना में यम नियम के बाद आसन का नम्बर आता है। आसन अपने ढंग के अनोखे व्यायाम हैं। पहलवान जिन डंड बैठक आदि कठोर व्यायामों को करते हैं, सर्व-साधारण के लिए उपयोगी नहीं बैठते। जिनके शरीर मजबूत हैं जिनके आहार में घी दूध की पर्याप्त मात्रा रहती है, जिन्हें मानसिक संघर्ष में अधिक नहीं उलझना पड़ता उनके लिए पहलवान बनने वाले कठोर व्यायाम ठीक हैं। पर जिनकी ऐसी स्थिति नहीं है। उनके लिए ऐसा व्यायाम होना चाहिए जो अंग प्रत्यंगों पर अधिक दबाव न डाले। और लाभ की दृष्टि से जो सर्वांगपूर्ण है। ऐसे व्यायाम आसान ही हैं, शरीर में कुछ सूक्ष्म ग्रन्थियाँ होती हैं। जिन पर आसनों के द्वारा विशिष्ट प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव के कारण शारीरिक शक्ति की वृद्धि होने के साथ-साथ मानसिक तथा आत्मिक बल भी बढ़ता है। आसनों का लाभ स्थूल और सूक्ष्म दोनों शरीरों को मिलता है।

सर्व-साधारण के लिए जो आसन बहुत ही उपयोगी हैं उनको क्रमबद्ध करके सूर्य-नमस्कार की विशिष्ट प्रणाली का आविष्कार हुआ है। इस एक साधना के अंतर्गत बारह आसन हो जाते हैं इसकी नियमित साधना करने से थोड़े ही दिनों में स्वास्थ्य का आश्चर्यजनक परिवर्तन हो जाता है।

साधना विधि।

प्रातः काल सूर्योदय समय के आस पास इस साधना को करने के लिए खड़े हो जाइए। यदि अधिक सर्दी गर्मी या हवा हो तो हल्का कपड़ा शरीर पर पहने रहिए अन्यथा लंगोट या नेकर के अतिरिक्त सब कपड़े उतार दीजिए। खुली हवा में या स्वच्छ खुली खिड़कियों के कमरे में कमर सीधी रख कर खड़े हो जाइए। मुख पूर्व की ओर कर लीजिए। नेत्र बन्द करके हाथ जोड़कर भगवान सूर्य नारायण का ध्यान कीजिए और भावना कीजिए सूर्य की तेजस्वी आरोग्यमयी किरणें आपके शरीर में चारों ओर से प्रवेश करती हुई आपको तेज और आरोग्य प्रदान कर रही हैं। अब निम्न प्रकार क्रिया आरम्भ कीजिए।

1- पैरों को सीधा रखिए। कमर पर से नीचे की ओर झुकिये, दोनों हाथों को जमीन पर लगाइए। मस्तक घुटनों से लगे। यह हस्त पादासन है इससे टखनों का टाँग के नीचे के भागों का, जंघा का चूतड़ों का, पसलियों का, कन्धों के पृष्ठ भाग तथा बाँहों के नीचे के भाग का व्यायाम होता है।

2- शिर को घुटनों से हटाकर लम्बा श्वास लीजिए। पहले दाहिने पैर को पीछे ले जाइए और पंजे को लगाइए। बाएं पैर को आगे की ओर मुड़ा रखिए। दोनों हथेलियाँ जमीन से लगी रहें। निगाह सामने और शिर कुछ ऊँचा रहे। इस से जाँघों के दोनों भागों का तथा बायें पेड़ू का व्यायाम होता है। इसे एक पाद प्रसरणासन कहते हैं।

3- बाएं पैर को भी पीछे ले जाइए। उसे दाहिने पैर से सटा कर रखिए। कमर को ऊंचा उठा लीजिए। सिर और सीना कुछ नीचे झुक जाएगा।

यह द्विपाद प्रसरणासन है। इससे हथेलियों की सब नसों का, भुजाओं का, पैरों की उंगलियों और पिंडलियों का व्यायाम होता है।

4- दोनों पाँवों के घुटने, दोनों हाथ, छाती तथा मस्तक इन सब अंगों को सीध से रख कर भूमि से स्पर्श कराइए। शरीर तना रहे- कहीं लेटने की तरह निःचेष्ट न हो जाइए। पेट जमीन को न छुए।

इसे अष्टाँग प्रणिपातासन कहते हैं। इससे बाहों, पसलियों, पेट, गर्दन, कन्धे तथा भुजदंडों का व्यायाम होता है।

5- हाथों को सीधा खड़ा कर दीजिए। सीना ऊपर उठाइए। कमर को जमीन की ओर झुकाइए सिर ऊँचा कर दीजिए आकाश को देखिए। घुटने जमीन पर न टिकने पावें। पंजे और हाथों पर शरीर सधा रहे। कमर जितनी मुड़ सके मोड़िए ताकि धड़ ऊपर को अधिक उठ सके।

यह सर्पासन है। इससे जिगर का आँतों का तथा कण्ठ का अच्छा व्यायाम होता है।

6- हाथ और पैरों के पूरे तल्वे जमीन से स्पर्श कराइए। घुटने और कोहनियों के टखने झुकने न पावें। कमर को जितना हो सके ऊपर उठा दीजिए। ठोड़ी कन्ठ मूल में लगी रहे। सिर नीचा रखिए।

यह भूधरासन है। इससे गर्दन पीठ, कमर, कूल्हे, पिंडली, पैर तथा भुजदंडों की कसरत होती है।

7- यहाँ से अब पहले की हुई सूरतों पर वापिस जाया जायगा। दाहिने पैर को पीछे ले जाइए। पूर्वोक्त नं. 2 के अनुसार एक पाद प्रसरणासन कीजिए।

8- पूर्वोक्त नं. 1 की तरह हस्त पादासन कीजिए।

9- सीधे खड़े हो जाइए। दोनों हाथों को ऊपर आकाश की ओर ले जाकर हाथ जोड़िए। सीने को जितना पीछे ले जा सकें ले जाइए। हाथ जितने पीछे जा सकें ठीक है। पर वे मुड़ने न पाए। यह ऊर्ध्व नमस्कारासन है इससे फेफड़े और हृदय का अच्छा व्यायाम होता है।

10- अब उसी आरम्भिक स्थिति पर आ जाइए। सीधे खड़े होकर हाथ जोड़िए और भगवान सूर्य नारायण का ध्यान कीजिए।

यह एक सूर्य नमस्कार हुआ। आरम्भ पाँच से करके सुविधानुसार थोड़ी थोड़ी संख्या धीरे धीरे बढ़ाते जाना चाहिए। व्यायाम काल में मुँह बन्द रखना चाहिए। साँस नाक से ही लेनी चाहिए।


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