अगले वर्ष के प्रथम तीन अंक बड़े अद्भुत एवं आश्चर्यमय होंगे

November 1946

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(उनमें सैकड़ों प्रकार के सच्चे, झूठे, चमत्कारों का सुविस्तृत रहस्योद्घाटन किया जायगा।)

अखण्ड-ज्योति कार्यालय में विगत छः वर्षों में कई हजार पत्र इस आशय के आ चुके होंगे कि वे योग के चमत्कारों को सीखना चाहते हैं, मथुरा कार्यालय में पधारने वाले सज्जनों में से भी सैकड़ों ने यही प्रस्ताव हमारे समक्ष रखे। पर अब तक हम इन पत्रों और प्रस्तावों को अस्वीकृत ही करते रहे। कारण यह था कि पिछले बीस वर्ष में इसी संबंध में हमने सुदूर प्रदेशों की यात्राएं की हैं। प्रचुर धन और समय लगाया है, इतना सब करने के बाद जो कुछ प्राप्त हुआ है वह ऐसा है जिसे न कहते बनता है और न गुप्त रखते।

हमें ऐसे अनेकों तथाकथित सिद्धों के साथ रहने का अवसर मिला है जो देवता की तरह पुजते थे और धन की जिन पर वर्षा होती थी। उनके पास एक से एक बढ़ कर योग विद्या के चमत्कार लोगों को दिखाई देते थे। हमने भी उन्हें देखा और सीखा, ऐसे कितने ही जादूगरों से हमारे निकट संपर्क रहें हैं जो हैरत में डाल देने वाले जादू के खेल दिखाकर लोगों को आश्चर्य चकित कर देते हैं और इसी कला से प्रचुर धन कमाते हैं। ऐसे सैकड़ों ही खेल हमने सीखें हैं। जिन्हें हमारा निकटवर्ती परिचय है वे जानते हैं कि अखंड-ज्योति संपादक ने चमत्कारों की गहरी जानकारी प्राप्त की है। इसीलिए वे पूछते भी थे। पर उत्तर देते समय, हमारी स्थिति साँप छछूँदर जैसी हो जाती थी। कारण यह है कि-वे सभी बातें बनावटी, नकली और जालसाजी से भरी हुई हैं। जो सिद्ध, योग के नाम पर बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ दिखाते हैं वे तथा जो जादूगरी विद्या की कलाएं हैं वे, सभी असत्य और चालबाजी पर अवलम्बित हैं। उनके रहस्य बताते समय हमें यह भय रहता था कि-कहीं यह व्यक्ति इन रहस्यों के आधार पर स्वयं कोई प्रपंच खड़ा कर जनता को भ्रम में डालने और लूटने का कार्य आरम्भ न कर दे। हमें ऐसे चमत्कारी करतब मालूम हैं जिनमें से एक दो को ही पकड़ लेने पर कोई आदमी देवता की तरह पुज सकता है और चाँदी के महल खड़े कर सकता है। जनता को ठगा जाना और उसे भ्रम में डालना एक बहुत बड़ा अनर्थ है, इस कार्य में हम किसी भी प्रकार निमित्त बनें तो यह हमारे हक में बहुत ही बुरा था। इस लिए हम किसी को भी उन बातों को बताने को तैयार न होते थे।

अभी थोड़े ही दिन हुए अजमेर के हमारे एक स्वजन श्री सत्य देव राव, हमारे यहाँ पधारे। उनसे इस विषय में दो रोज तक लम्बी बातचीत हुई। गंभीर विचार विनिमय के बाद यह निष्कर्ष निकला कि जो धूर्त लोग आजकल इन हथकंडों से अपना व्यापार चलाते हैं उनका मार्ग रोकने के लिए इन रहस्यों को सार्वजनिक रूप से प्रकट कर दिया जाय। जब वह बातें सर्व साधारण को मालूम हो जायेगी तो ठगी का द्वार बन्द हो जायगा, एक दो व्यक्तियों को जिन बातों के बताने में खतरा है वह सार्वजनिक रूप से प्रकट कर देने पर न रहेगा। इस निष्कर्ष के अनुसार सन् 47 का विशेषाँक हम चमत्कार अंक निकाल रहे हैं। चमत्कारों के प्रश्न को इस अंक में भली प्रकार हल कर दिया जायेगा।

कागज का कठोर कन्ट्रोल अब भी लागू है। लम्बी लिखा पढ़ी के बावजूद पृष्ठ बढ़ाने के लिए कागज नहीं मिला है। ऐसी स्थिति में जनवरी, फरवरी और मार्च के तीन अंकों में गत वर्ष की भाँति इस विशेषाँक को पूरा किया जायगा। जनवरी के अंक में वास्तविक योग की वास्तविक सिद्धियाँ, सच्चे चमत्कार जिन्हें हम सच्चा जीवन व्यतीत करने पर बड़ी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं बताये जायेंगे। जीवन को सुख शान्तिमय, उन्नत एवं सम्पन्न बनाने के लिए जो सिद्धियाँ आवश्यक हैं और जिन्हें प्राप्त करना हर पाठक का कर्त्तव्य है जनवरी के अंक में रहेंगी। फरवरी के अंक में योगी और महात्मा कहलाने वाले कुछ लोगों द्वारा जो नकली सिद्धियाँ दिखाई जाती हैं और जिनसे पूजा मान और धन लूटा जाता है उनका भंडाफोड़ किया जायगा। उनकी सारी चालाकियाँ खोल कर रख दी जायगी। मार्च के अंक में जादू के पचासों खतों का रहस्य प्रकट कर दिया जायगा।


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