छुईमुई प्रकृति वाला आदमी

November 1946

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(प्रोफेसर रामचरण महेन्द्र एम.ए.)

हमारे देखने में कुछ ऐसे व्यक्ति आये हैं, जो इतने संवेदन शील होते हैं कि उन पर छुईमुई के पुष्प की भाँति तनिक-तनिक सी बात का बहुत प्रभाव पड़ता है कई व्यक्ति अपने अफसरों की छोटी सी टीका टिप्पणी भी नहीं सुन पाते। वे सुन कर उबल से उठते हैं, आवेश में भर जाते हैं।

स्त्रियों में विशेषतः संवेदनशीलता वृहत मात्रा में होती है। उन्हें दूसरे की आलोचना सुनने का माद्दा बिल्कुल नहीं होता। कोई बात हो जाय तो उसे बार-बार कहती फिरेंगी, चबोड़ करेंगी। गढ़े मुर्दे खोदेंगी और दिल के फफोले तोड़ेंगी। वे जरा-जरा सी बात पर उत्तेजित हो जायेंगी। गृहयुद्ध ठन जाएगा, गर्म-गर्म बातें चलेंगी। बातों-बातों में रोने तक की नौबत आ जायगी।

छुई मुई स्वभाव के व्यक्ति संसार की आलोचना से बड़े परेशान रहते हैं। वे उस सुकोमल सेब और अंगूर की भाँति हैं जो जरा सी ठसक से क्षत विक्षत हो जाते हैं। मनुष्य हो या स्त्री-यदि वह जरा सी बात से चिढ़ उठे, या मन से घायल हो जाय अपने को न सम्हाल सके, रोने लगे या खिन्न हो उठे, तो वास्तव में उसका रहना मुश्किल हो जाए। संसार तो पग-पग पर घात प्रतिघात से परिपूर्ण है। यहाँ तो काँटे बिछे हैं। और उन्हीं पर होकर हमें जीवन का मार्ग तय करना होता है। जरा-जरा दूर पर संघर्ष करना है, लड़ना है। प्रतिद्वन्द्वियों को पराजित कर रुकावटों को रौंदते हुए आगे का रास्ता पूरा करना है।

किसी भी क्षेत्र को ले लीजिए। प्रायः प्रत्येक क्षेत्र में आप यही स्पर्धा प्रतिघात पायेंगे। अफसर अपनी आफीसरी के घमंड में बैठा गुर्रा रहा है, पिता पुत्र को जली कटी सुना रहा है, राजा प्रजा को प्रताड़ना दे रहा है, शिक्षक विद्यार्थी को बुरी भली कह रहा है। सूदखोर अपने आसामी को धमका रहा है। संसार में इंच-इंच पर प्रबल प्रतिकूलता है। राजनैतिक क्षेत्र को लीजिए। यहाँ अनेक विरोधी दल हैं। एक विरोधी दूसरे को गाली देता है, खुले आम तीखी आलोचना की जाती है, फटकार सुनाई जाती हैं। छिद्रान्वेषण किया जाता है। अच्छे से अच्छे आदमी पर कीचड़ उछाली जाती है। सूर्य पर थूकने की चेष्टा की की जाती है। किन्तु हम देखते हैं कि गन्दे से गन्दा मनुष्य जीता है। जिसे भला-बुरा कहते हैं, वह भी अपना कार्य चलाता है। कुत्ते भौंकते रहते हैं तथा वह दत्तचित्त हो अपना कार्य करता चलता है। उसका मन इन आलोचनाओं से पस्त नहीं होता। उसमें दूसरों के प्रतिरोध को सहने की क्षमता होती है वह सहिष्णुता का अवतार होता है।

साहित्यिक क्षेत्र कटु आलोचनाओं का जगत है। इसमें विरोध सबसे अधिक होता है। जौन कीट्स नामक कवि बड़ा संवेदन शील था। आपकी प्रसिद्ध पुस्तक “एण्डेमियन” की कई साहित्य को ने बहुत प्रशंसा की? मिष्टरली हन्ट ने उसे अति उच्च श्रेणी की पुस्तक ठहराया किन्तु काटरली रिव्यू नामक प्रतिष्ठित पत्र में इसी सुन्दर कृति की अत्यन्त अन्यायपूर्ण एवं कटु आलोचना निकली जिसका प्रभाव इस कवि के संवेदनशील हृदय पर अत्यन्त बुरा पड़ा, वे अत्यन्त खिन्न एवं संतप्त हो गये और कच्ची उम्र में ही उनका देहान्त हो गया। स्पष्ट है कि यदि कवि में प्रतिकूलता एवं प्रतिघात को सहने का मादा होता तो वे दीर्घ जीवन प्राप्त कर पाते जिससे अंग्रेजी साहित्य की श्रीवृद्धि होती। डी. एच. लौरेन्स को कितने लोगों ने अश्लील कहा किन्तु वह उस प्रतिरोध में भी कार्य करते रहे और कई अच्छे पुस्तकें संसार को दे गये। अनेक ऐसे महापुरुष हो गए है जिनका प्रारंभ में बड़ा विरोध किया गया किन्तु अन्त में लोग उन्हें समझ पाये। जिसे आज गाली देते हैं वही कल ऊँचा उठ जाता है और देखते-2 प्रतिष्ठा का पात्र बन जाता है। वही आदमी जीतता है जो दूसरों की सुनकर जब्त करना जानता है।


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