धर्म कलह की जड़ नहीं है।

July 1944

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री स्वामी सत्य भक्त जी महाराज, वर्धा)

निस्संदेह धर्म के नाम पर खून बहाया गया है। पर यह अन्तर न भूलना चाहिए कि धर्म के नाम पर खून बहाया गया है- धर्म के लिए खून नहीं बहाया गया। शैतान भी अपनी शैतानी के लिए खुदा के नाम की ओट ले लेता है, तो मनुष्य ने अपने दुस्वार्थों के लिए अगर धर्म की ओट ले ली तो इसमें धर्म क्या करे? जो नियम समाज के विनाश और सुख शान्ति के लिए जरूरी हैं, उनका मन से, वचन से और शरीर से पालन करने का नाम धर्म है। इस धर्म का उस खून खराबी से कोई सम्बन्ध नहीं है जो धर्म के नाम पर स्वार्थ या अहंकार वश की जाती है।

कहा जा सकता है कि जब धर्म का ऐसा दुरुपयोग होता है तब धर्म को नष्ट ही क्यों न किया जाए? मैं कहता हूँ कि भोजन के दुरुपयोग से जब बीमारियाँ पैदा होती हैं तब भोजन ही बन्द क्यों न कर दिया जाए? आजीवन अनशन करने से मौत भले ही आ जाए पर बीमारी से छुट्टी जरूर मिल जाएगी? क्या आप बीमारी से डरकर इस प्रकार मरना पसंद करेंगे? यदि नहीं तो दुरुपयोग से डर कर धर्म को छोड़ना भी पसंद नहीं किया जा सकता।

धर्म संस्थाओं का मुख्य काम आदमी के दिल पर नीति और सदाचार के संस्कार डालना है। सभी धर्मों ने यही काम किया है। इसलिए मैं धर्मों में समानता देखता हूँ और धर्म संस्थाओं की संख्या से घबराता नहीं हूँ। बहुत से स्कूल होने से या अनेक विश्वविद्यालय होने से जैसे शिक्षा में बाधा नहीं पड़ती किन्तु कुछ लाभ ही होता है। इसी प्रकार बहुत सी धर्म संस्थाएं होने से सच्चे धर्म में बाधा नहीं पड़ती।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:







Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118