सदाचारी व्रत का अधिकारी है।

July 1944

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(पं. तुलसीराम शर्मा सितारी)

त्रीण्ये व पदान्याहुः पुरुषस्योत्तमं व्रतम्।

नद्रुह्येच्चैव दह्याच्चसत्यंचैव पर वदेत्॥ 93॥

(म. भा. वन अ. 207)

ये तीन ही पद पुरुष के उत्तम व्रत हैं कि किसी से द्रोह न करे, दान दे, सत्य भाषण करे॥ 93॥

परापवाद पै शुन्यं स्तेयंहिंसा तथारतिम्।

क्रोधं चैवानृतंवाक्यमेकादश्याँ विवर्जयेत् ॥ 20॥

(पद्र पु. 6। 48)

निंदा, चुगलखोरी, हिंसा, मैथुन, क्रोध और मिथ्या इनको एकादशी के दिन त्याग दे॥ 20॥

‘उपवास’ शब्द का अर्थ पुराणों में कैसा अच्छा और व्यापक किया है-

उपावृत्तस्तु पापेभ्यो यस्तुवासो गुणैः सह।

उपवासःस विज्ञेयोनशरीरस्य शोषणम्॥ 5॥

(अग्नि पु. अ. 175)

यही वचन भविष्य पु. (103। 20) स्कंद पु. (2। 5। 12। 30) आदि ग्रंथों में आता है इसका सीधा अर्थ है (जो शब्द कल्पद्रुम कोषकार और चरक के टीकाकार चक्रदत्त आदि ने किया है) पापों से बचकर गुणों (जो प्रथम दया आदि 8 गुण कह आये हैं) का धारण करना उपवास करना है शरीर को सुखाना उपवास नहीं।


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