सत्य पर पर्दा नहीं पड़ सकता

August 1944

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(महात्मा जेम्स ऐलन)

वर्तमान युग बौद्धिक संघर्ष का युग है इसमें दार्शनिक, साम्प्रदायिक, नैतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक विषयों के ऊपर घनघोर मुठभेड़ें हो रही हैं। अपने पक्ष का समर्थन करने और दूसरे को परास्त करने में हर तरफ से प्रयत्न हो रहे हैं। इस समय बौद्धिक जगत में ऐसा महायुद्ध हो रहा है जैसा सृष्टि के आदि से लेकर अब तक कभी भी न हुआ था।

इस तूफान को देखकर एक साधारण जिज्ञासु क्षुब्ध हो उठता है। तर्क, कल्पना और विचारों की उड़ान ऐसे ऐसे मानसिक इन्द्रजाल रचकर खड़े कर देती है जिससे साधारण बुद्धि मोह में पड़ जाती है और वास्तविकता को समझना कठिन मालूम देता है। दो विरोधी पक्ष ऐसे ऐसे तर्क उपस्थित करते हैं कि झूठ और सच का पता लगाना बड़ा जटिल हो जाता है।

यह विषम स्थिति बड़े व्यामोह में डालने वाली है तो भी निराश होने की कोई बात नहीं है क्योंकि सत्य का सूर्य स्वयं इतना तेजस्वी है कि तर्क और कल्पनाओं के बादल उसके प्रकाश को पूर्ण रूप से ढ़क देने में समर्थ नहीं हो सकते। मनुष्य के अन्तःकरण में एक ऐसी चेतना है जो सत्य और असत्य का निर्णय करने में पूर्णतया समर्थ है। यह हो सकता है कि कोई प्रचंड तार्किक व्यक्ति अपने से कम ज्ञान वाले को अपनी तर्क शक्ति से निरुत्तर कर दे तो भी वह निरुत्तर हुआ व्यक्ति यह अनुभव कर सकता है कि क्या उचित है क्या अनुचित? क्या सत्य है क्या झूठ? आत्मा सत्य से परिपूर्ण है, वह सत्य को भली प्रकार पहचान सकती है। आज बौद्धिक संघर्ष का धुँआ चारों ओर घटा की तरह छाया हुआ है तो भी मेरा विश्वास है कि इससे सनातन सत्य पर कुछ भी आघात नहीं पहुँच सकता।


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