आस्तिकता की निशानी

August 1944

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(जोजफ मेजिनी)

ईश्वर के अस्तित्व का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि हमारा अस्तित्व है। हर आदमी अपने अन्तःकरण में एक ऐसी सत्ता अनुभव कर सकता है जो उसे धर्म का आदेश दिया करती है। बेशक, मैं इस बात को मानता हूँ कि लोगों ने आज के जमाने में ईश्वर को बड़ा ही घृणित और भयानक बना दिया है, तो भी ईश्वर है, इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता। विश्व का कण कण उसके अस्तित्व की गवाही दे रहा है।

जब ईश्वर है तो नास्तिकता कैसे आरम्भ हुई। इस प्रश्न पर गंभीरतापूर्वक विचार करने के उपरान्त मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि जिस आदमी ने अपना पाप अपने सजातियों से छिपाया सबसे पहला नास्तिक वह था, यह फिर जिसने अपने किसी भाई के हक को मार कर अत्याचार किया वह पहला नास्तिक था। जो भी हो, यह दो ही श्रेणियाँ नास्तिकों की हैं और वे आज तक विद्यमान हैं।

कहने को तो उस आदमी को नास्तिक कहते हैं जो ईश्वर सम्बन्धी अमुक सिद्धान्त को या अमुक पुस्तक को नहीं मानता। परन्तु ऐसे आदमी को मैं नास्तिक नहीं कहता। किसी मजहबी सिद्धाँत को या पुस्तक को मानना न मानना नास्तिकता का चिन्ह नहीं वरन् यह है कि कोई व्यक्ति किसी दूसरे के हक को मारे, उसकी स्वतंत्रता को आप हरण करें और पापी होते हुए भी धर्मात्मा बनने का ढोंग करे। जिसका ईश्वर पर सच्चा विश्वास है जो उसे सर्व व्यापक और अन्तर्यामी समझता है वह न तो बेईमान हो सकता है न ढोंगी। मेरा विश्वास है कि सच्चे ईश्वर भक्त वे ही हैं जिनका जीवन पवित्र और सेवामय है। जो ईश्वर को अपने चारों ओर भीतर और बाहर देखता है पाप करने की हिम्मत भला वह किस प्रकार कर सकेगा?


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