सफलता का पिता-आत्मविश्वास

August 1944

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क्या आपने अपनी महत्ता पर कभी विचार किया है? यदि किया होगा तो आप जानते होंगे कि मानव प्राणी तुच्छ नहीं महान है। परब्रह्म परमात्मा का अमर राजकुमार जिसका निर्माण सत् चित् आनन्द तत्वों से हुआ है, कदापि तुच्छ नहीं हो सकता। संसार के महान पुरुषों का इतिहास पढ़ो तुम देखोगे कि उनका आरंभिक जीवन सर्वथा असहाय, असुविधापूर्ण और अन्धकार-मय था तो भी उन्होंने महानतम कार्यों का सम्पादन का डाला। यह सब किसी भूत प्रेत या देव दानव की कृपा से नहीं हुआ वरन् उन महापुरुषों ने अपनी निजी शक्तियों को विकसित किया और उन्हीं की सहायता से उन्नति के उच्च शिखर पर जा पहुँचें। जीव तत्वतः ईश्वर का ही पुत्र है उसमें अपने पिता की सम्पूर्ण योग्यताएं बीज रूप से समाई हुई हैं। यदि वह अपनी शक्तियों को जाने उन पर विश्वास करे और दृढ़ता के साथ प्रयोग करे तो निस्संदेह ऐसे ऐसे काम कर सकता है जिन्हें देखकर अचंभा करना पड़ता है। पागल और अपाहिजों को छोड़कर शेष सभी मनुष्यों में करीब करीब एक सी योग्यताएं होती हैं। ‘करीब करीब’ शब्द का प्रयोग हम इसलिए कर रहे हैं कि जो असाधारण अन्तर दिखाई पड़ता है वह वास्तविक नहीं है। एक ऐसा व्यक्ति जिसकी योग्यताएं आरम्भ में बहुत थोड़ी दिखाई पड़ती हैं। अभ्यास और लगन के द्वारा अपनी शक्तियों और योग्यताओं को कुछ ही समय में अनेक गुनी उन्नत कर सकता है पूर्व समय में जो लोग असाधारण शक्तियों और योग्यताओं से सम्पन्न हुए हैं एवं जो वर्तमान समय के प्रतिभाशाली महापुरुष हैं उन्हें यह शक्तियाँ कहीं बाहर से दानस्वरूप प्राप्त नहीं हुई हैं उन्होंने अपने प्रयत्न से अपने ही भीतर से उनका उत्पादन किया है। दस किसानों को एक से खेत, एक से साधन, एक से बीज दिये जायें और फिर फसल के समय खेत की पैदावार का निरीक्षण किया जाए तो प्रतीत होगा कि जिसने शारीरिक और मानसिक परिश्रम ठीक तौर से किया उसकी पैदावार अधिक हुई, जिसने आलस्य और मूर्खता को अपनाया वह घाटे में रहा। इसमें बीज या खेत को दोष नहीं दिया जा सकता। परमात्मा ने अत्यन्त परिश्रम के साथ मानव शरीर की रचना की है, यह उसकी सर्वोत्कृष्ट कृति है। अपनी अकर्मण्यता का दोष परमात्मा पर लगाना बहुत ही अनुचित बात है, जो यह कहते हैं कि-”क्या करें, परमात्मा ने हमें ऐसा ही बनाया है” वे अपने दोषों को परमात्मा पर थोपने का धृष्टता पूर्वक दुस्साहस करते हैं। कोई मनुष्य चार हाथ, चार पाँव, दो सिर लेकर नहीं जन्मा है। जैसा शरीर और मस्तिष्क तुम्हारा है, वैसा ही और लोगों का भी था या है। फिर कोई कारण नहीं कि जैसे महत्वपूर्ण कार्य पूर्व पुरुष कर चुके हैं या वर्तमान समय में कोई व्यक्ति कर रहे हैं वह तुम नहीं कर सको। मनुष्य शक्तियों का पुँज है। उसके रोम रोम में अद्भुत शक्तियाँ हिलोरें ले रही हैं, कुबेर का खजाना उसके पास जमा है, किन्तु अज्ञान के कारण वह उसे न जानता है न अनुभव करता है न काम में लाता है।

कहते हैं कि एक सिंह का बच्चा भेड़ों के झुण्ड में पाला गया। जब बड़ा हुआ तो वह भी घास खाने लगा और भेड़ों की तरह मिमियाने लगा। बहुत दिन बाद जब उसे किसी सिंह से भेंट हुई तो उसने उसे समझाया कि तू वन का राजा सिंह है। तब वह बच्चा अपने असली स्वरूप को समझ कर वनराज की तरह रहने लगा। हम लोग ऐसे ही सिंह शावक हैं जो घास खाते और मिमियाकर बोलते हैं। “क्या करें, हमारा शरीर ठीक नहीं, हमारी बुद्धि अल्प है, हमारा कोई सहायक नहीं, हमें साधन प्राप्त नहीं, हम उन्नति कैसे कर सकते हैं?” जो लोग ऐसा कहते हैं वे अपनी असली वाणी को भूल कर भेड़ों की बोली बोलते हैं। “मेरी कलम खराब है इसलिए इस लेख का लिखना अधूरा ही छोड़ रहा हूँ” यदि लेखक यह कहे तो पाठक समझें कि यह सिर्फ बहानेबाजी है या तो इसमें इतनी योग्यता नहीं कि कलम को सुधार सके या फिर यह लिखने की क्षमता नहीं रखता। कलम खराब होना, यह कोई ऐसा कारण नहीं है कि सदा के लिए लिखना बन्द कर दिया जाए। यदि लेखक में लिखने की शक्ति हैं तो कलम की खराबी रूपी छोटी सी बाधा को वह आसानी से हल कर लेगा, उसे सुधारने का कोई न कोई उपाय कर लेगा। साधनों का अभाव होने की शिकायत कुछ अधिक महत्व नहीं रखती क्योंकि जिसके अन्दर कार्य-कारिणी शक्ति है वह साधनों को भी सुधार लेगा या पैदा कर लेगा। जो अपने को असहाय या अशक्त समझता है असल में वह साधनों और सुविधाओं की तो झूठ मूठ शिकायत करता है वास्तविक कमी उसमें आत्मविश्वास है। जो अपना महत्व समझता है, अपनी छिपी हुई अनेकानेक शक्तियों का ज्ञान रखता है, जिसे अपने आत्मिक बल पर भरोसा है, वह क्यों शिकायत करेगा? वह तो अकेला और साधन रहित होने पर भी उठ खड़ा होगा और “फरियाद” जैसे दुर्गम पर्वतों को चीर कर “शीरी” के लिए नहर खोद लाया था उसी प्रकार वह अपने मनोवाँछित उद्देश्य को पूर्ण करने के लिए घोर प्रयत्न करने में प्रवृत्त होगा। जो अपनी सहायता आप करता है ईश्वर भी उसी की सहायता करता है। जिसको अपने ऊपर विश्वास है उसे हम प्रतिज्ञापूर्वक विश्वास दिलाते हैं कि दुनिया में चारों ओर से उसे विश्वसनीय सहायता प्राप्त होगी।


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