शंख बजाया कीजिए

August 1944

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(श्री स्वामी देवानन्दजी)

देश के शिखासूत्र धारी जाति जनता में अधिकाँश जनों के उपास्य देवता श्री विष्णु भगवान् को शंख, चक्र, गदा, पद्मधारी बताया गया है। और देश के काल्पनिक चित्रकारों ने भी अपनी कल्पना द्वारा श्री विष्णु भगवान् के चित्र में भी दिखलाया है। संसार सुप्रसिद्ध श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय प्रथम के श्लोक 11 से 16 तक में श्री मन्महात्मा भीष्मपितामह और युधिष्ठिरादि पाण्डवों ने भी श्रीकृष्ण भगवान के साथ साथ अपने अपने शंखों को युद्धारम्भ में बजाया। उन लोगों के शंखों के नाम भी भिन्न भिन्न दिये हुए हैं। श्रद्धास्पद श्री मत्स्वामिशंकराचार्यजी ने मानवी जीवन को नास्तिकवाद के गहरे गर्त से निकालने में और आस्तिकवाद के उच्च शिखर के ऊपर ले जाने में इसी अमोध अस्त्र का आलम्ब लिया था। इस्लाम धर्म के मूलाधार (प्रवर्तक) हजरत मुहम्मद साहब के दामाद सुप्रसिद्ध इमाम हुसैन और हुसरेन के पिता हजरत अली जो बीबी फातिमा के पति थे अपने जीवन काल में नमाज पढ़ने के लिये लोगों को इकट्ठा करने और सम्मिलित नमाज के लिए शंख बजाया करते थे। देखिये! मिश्कात हदीस रवायत हजरत अली साहब की आजकल उसकी जगह को अजान ने ले रखा है। अस्तु! अब विचारने योग्य बात यह है कि जब संसार में अनेक प्रकार के बाजे बजाये जाते रहते हैं तो यहाँ शंख ही के बजाने में क्या अनुपम लाभ पाया था? क्या शंख के सदृश कोई और बाजा न था?

यद्यपि शंख के अतिरिक्त मानवकृत अनेक प्रकार के उस समय भी बाजे थे परन्तु ईश्वरी प्रकृति प्रदत्त इस अलौकिक अनुपम गुण सम्पन्न शंख के सम्मुख तुच्छ रही है। देश में श्वाँस रोग के रोगी, पेट के रोगी, आँख के रोगी, मुख रोग के रोगियों की दिन प्रति दिन अधिकता ही देखने में आ रही है। आयुर्वेदिक, यूनानी, एलोपैथी, होमियोपैथी चिकित्सकों की भी संख्या में उत्तरोत्तर वृद्धि ही है। परन्तु यहाँ “मर्ज बढ़ता गया जों जों दवा की” इसलिये यदि सचमुच अपने जीवन और जन्म को सुखमय सार्थक सिद्ध कर दिखाना हो तो अपने पूर्वजों के प्रयोग प्रथा के यथानुगामी बन अनुपम लाभ उठाते हुए यशस्वी बनिये! शंख प्रति दिन बजाने में एक लोकोक्ति हैं कि “पंच मुख परमेश्वर मुख है” गीता में कहा गया है कि “ईश्वरः सर्व भूतानाँ” अर्थात् ईश्वर प्रत्येक प्राणियों में व्यापक रूप से विद्यमान होते हुए पुकार पुकार कह रहा है कि “शंख बाजे बलाय भाजै!” अर्थात् शंख बजाने वाले शक्तिशाली के सम्मुख कोई आपत्ति विपत्ति कभी ठहर ही नहीं सकती। क्यों शंख बजाने वाला अपनी शक्ति और वीर्य की वृद्धि और रक्षा कर सकता है। अतः शंख बजाने वाले निम्न अपने अंगों से लाभ उठाते हुए रोग मुक्त हो अपनी आयु की भी वृद्धि कर सकेंगे? यथा-

फुफुस्स रोगी (टी. बी. वाले) श्वाँस रोगी (दमा, श्वाँस, खाँसी, वाले), हृदयरोगी (धड़कन वाले), नेत्ररोगी (रोहे वाले), मस्तिष्क (विवेक शीलहीन वाले), आशा है देश के विवेकशील शंख बाजा को अपने अपने व्यवहार विधि में लाने का प्रयत्न अवश्य करेंगे।


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