एक गरीब की लड़की थी। असाधारण सुन्दर। उस देश का राजकुमार उस पर मोहित था। प्रणय निवेदन करने लगा। लड़की सहमत न थी।
जब लड़की के पिता पर बहुत दबाव पड़ने लगा और न मानने का संकट दिखने लगा तो लड़की ने स्वयं ही राजकुमार के विचार बदल देने का जिम्मा लिया।
इस बार राजकुमार आया तो लड़की ने उसे एक सप्ताह बाद आने का निमन्त्रण दिया।
इस बीच उसने दस्त की दवा लेनी शुरू कर दी। मल को एक घड़े में भरती चली गई। एक सप्ताह में वह हड्डियों का ढाँचा भर रह गई।
राजकुमार आया। देखा तो लड़की अस्थिपंजर मात्र थी। सारा यौवन हवा में उड़ गया था। आश्चर्य से उसने पूछा, यह क्या हुआ।
लड़की ने उंगली का इशारा करके घड़ा दिखाया और कहा - “रूप यौवन उसमें कैद है ? चारपाई पर मेरा असली रूप पड़ा है।”
राजकुमार ने घड़े को उघाड़कर देखा तो उसमें एक सप्ताह में जमा किया हुआ मल मूत्र भरा था।
राजकुमार को समझने में देर न लगी कि जो चमकता था, वह यही घिनौना जंजाल था। कुरूप अस्थिपंजर चारपाई पर पड़ा था। उसने रूपासक्ति छोड़ दी और लड़की को गुरु मान नमन करता हुआ घर वापस चला गया।