अपनों से अपनी बात - - नारी जागरण के लिए सुयोग्य नारियाँ आगे आएँ

September 1996

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

अपने वर्ग का पिछड़ापन दूर करने के लिए प्रायः सभी क्षेत्रों में दूरदर्शी एवं भावनाशील व्यक्ति आगे आते हैं । भारत की स्वाधीनता भारतीयों ने ली । बंगला देश के लिए बंगालियों ने लड़ाई लड़ी । मजदूर यूनियन अपनी रक्षा के लिए प्रयत्नशील है। व्यापारी, कर्मचारी, किसान दलाल सभी अपने -अपने वर्ग की समस्याओं को लेकर योजना बनाते हैं।

महिला जाग्रति की आवश्यकता को पूरा करने के लिए सुयोग्य एवं सेवा भावी महिलाओं को आगे आना चाहिए । भारत की दशा कुछ विचित्र है । यहाँ नर-नारी का संपर्क संकीर्णता की दृष्टि से देखा जाता है, उस पर नाक -भौं सिकोड़ी जाती है तथा उँगली उठायी जाती है। ऐसी दशा में पुरुषों का इस दिशा में सफल हो पाना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है । ऐसी दशा में यही मार्ग रह जाता है कि इस अभियान को आगे बढ़ाने के लिए स्वयं महिलाएँ आगे आएँ ।

भगवान ने जिन्हें विद्या और भावना दी है, साथ ही इतनी सुविधा भी है कि घर -परिवार से कुछ समय सेवा-कार्यों के लिए निकल सकना कठिन नहीं है, उन्हें तो इस क्षेत्र में कदम बढ़ाना ही चाहिए । जिनके बच्चे बड़े हो चले है, परिवार में दूसरे लोग गृहव्यवस्था को सँभालने वाले है, नौकर आदि का प्रबन्ध है उनके लिए तो यह विशेष कर्तव्य हो जाता है कि वे महिला जागरण के लिए नियमित रूप से समय लगाना आरम्भ कर दे । परिवार वाले अनिच्छा प्रकट करते हों तो भी उन्हें अनुनय -विनय करके, दुःख -असन्तोष प्रकट करके तर्क व कारण समझाकर यह प्रयत्न करना चाहिए कि उन पर लगे बन्धन धीरे-धीरे शिथिल होने लगे । प्रयास के लिए भावनाएँ हो, हृदय में गुरुसत्ता के लिए समर्पण हो तो यह सब कुछ असम्भव नहीं ।

हर गाँव -मुहल्ले में कुछ महिलाएँ इस स्थिति में होती है कि वे चाहें तो महिला जागरण के कार्य को अपने हाथ में ले सकें । युग निर्माण शाखा के कार्यकर्ताओं को स्वयं या अपनी पत्नियों के सहयोग से उनसे संपर्क करना चाहिए और उन्हें नवजागरण की पुण्य -प्रक्रिया से परिचय कराना चाहिए । धीरे-धीरे उन्हें युग निर्माण साहित्य पढ़ाना चाहिए, ताकि नवजागरण की आवश्यकता पूरी करने में सुयोग्य महिलाओं के योगदान के महत्व को भली प्रकार समझ सकें ।

ऐसी कुछ महिलाओं को एकत्रित होकर ‘युग निर्माण महिला मण्डल’ का गठन करना चाहिए । ऐसे काम हमेशा मिल-जुल कर संगठित रूप से ही सम्भव हो सकते हैं। ऐसे महिलाएँ मिल जुलकर एक टोली बनाकर उन प्रवृत्तियों को अग्रगामी बना सकती है, जो महिला जागरण की दृष्टि से अनिवार्य है। इस महिला मण्डल को प्रथम रचनात्मक कार्य अपराह्न काल की प्रौढ़ महिला पाठशाला चलाने का कार्य हाथ में लेना चाहिए । जिसमें (1) साक्षरता (2) युग निर्माण विचार पद्धति (3) गृहोपयोगी शिक्षण (4) युग संगीत, इन चार बातों का प्रबंध हो । जहाँ चार नहीं वहाँ कम रखे जा सकते हैं। पर युग निर्माण विचार पद्धति की शिक्षा तो अनिवार्य होनी ही चाहिए ।

इस पाठशाला के अतिरिक्त दूसरा काम यह उठाना चाहिए कि गाँव , मुहल्ले की शिक्षित महिलाओं की सूची तैयार की जाय और इनके पास जाकर तीसरे प्रहर अवकाश के समय नवनिर्माण का साहित्य पढ़ने के लिए सहमत करना चाहिए । लाभ समझाने से वे आसानी से समझ भी जाएँगी । ज्ञान वृद्धि के साथ -साथ इसमें समय को रुचिपूर्वक काटने का मनोरंजन भी तो हैं गठन पाठन के इस क्रम महत्व नहीं है। जो महिलाएँ अधिक पढ़ी-लिखी नहीं है, उनके लिए इसमें प्रेरक कथाओं -कहानियों के रूप में ऐसी सामग्री नियमित प्रकाशित होती है, जो उन्हें नवयुग को विचार -पद्धति से परिचित कराने के साथ अनगिनत प्रेरक भावनाओं को उमगाने वाली होगी । पत्रिका और साहित्य के रूप में चलते फिरते पुस्तकालय की व्यवस्था बनाना महिला मण्डल का दूसरा काम है।

तीसरा कार्य साप्ताहिक रूप से महिला सत्संग का प्रबन्ध होना चाहिए, जिसमें सम्मिलित भजन-कीर्तन,कथाप्रवचन तथा शंका समाधान का प्रबन्ध रहे । इसमें आवश्यकतानुसार प्रमाणिक पुरुष भी बुलाए जा सकते हैं। इसमें व्यक्ति और समाज की विशेषतया महिलाओं से सम्बन्धित समस्याओं पर प्रकाश डाला जाना चाहिए और उसका हल बताया जाना चाहिए । जिन स्थानों पर सक्रिय युग निर्माण कार्यकर्ताओं की टोलियाँ हो वहाँ महिला जागरण शाखाएं समर्थ ओर सशक्त न हो, यह दुःखद बात है । ऐसे स्थानों पर अपेक्षा यह की जाती है कि धर्ममंच की कार्यक्रमों में भी महिलाएँ पूरे उत्साह के साथ भाग लें । यज्ञो के संचालन , विविध संस्कारों के सम्पादन के आचार्यत्व से लेकर युग संदेश देने तक हर धार्मिक, बौद्धिक कार्यक्रम में उनको समान भागीदार रहना चाहिए ।

इस क्रम में बच्चों के जन्मदिन संस्कार, पुँसवन, मुण्डन जैसे संस्कार महिलाएँ स्वयं ही भली -भांति संचालित कर सकती है। कर्मकाण्ड एवं धर्मकृत्य पूरा का पूरा उन्हें ही संभालना चाहिए । मंत्र एवं सामूहिक रूप से बोलें । व्याख्या कोई एक महिला कराये । सम्भव हो तो अन्त में उपस्थित समुदाय का उद्बोधन भी करना चाहिए । इससे नारियों में ऐसे आत्मविश्वास का उदय होगा, जो भावी पीढ़ी के लिए अमृत और इस समाज के लिए देवता के वरदान से कम नहीं होगा । थोड़ा- सा संकोच , थोड़ी -सी झिझक दूर की जा सके और साहस , सूझ-बूझ का परिचय दिया जा सके तो कई हजार परिवारों में यह क्रम अविलम्ब प्रारम्भ हो सकता है। पीछे तो यह परम्पराएँ अपने आप ही घर घर पनपने वाली है । श्रेय तो आगे बढ़कर चलने का है, सो वह हिम्मत इस देव परिवार को महिलाओं में प्रस्फुटित होनी ही चाहिए ।

महिला शाखाओं के गठन, सदस्यता प्रमाण पत्र, साहित्य आदि के लिए शांतिकुंज से परामर्श किया जा सकता है। इन प्रयत्नों को अगली सदी की अगवानी के रूप में उत्साह एवं उल्लास के साथ किया जाना चाहिए । जिस क्रम में ये प्रयत्न अग्रसर होंगे, उसी अनुपात में भारतीय समाज की शान्ति, प्रगति एवं प्रसन्नता सम्भव होगी ।

*समाप्त*


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118