नारी शिक्षा के लिए शिक्षित नारी आगे कदम बढ़ाये

September 1996

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जहाँ शिक्षा का अभाव रहेगा, वहाँ अज्ञान का अंधेरा छाया रहना स्वाभाविक है। विकास और प्रगति की अनेक बातें कही सुनी जाने के बावजूद अपने देश में नारी शिक्षा की स्थिति को अभी भी बदतर ही का जाएगा। बीसवीं सदी के अन्तिम दशक का आधा समय बीत जाने पर भी भारत 25 करोड़ महिलाओं की अशिक्षा से अभिशप्त है। देश की मौजूदा जनसंख्या में पुरुषों की तुलना में महिलाओं की संख्या कोई तीन करोड़ बीस लाख कम है। लेकिन साक्षरता का ग्राफ इससे भी कहीं अधिक गिरा हुआ है। हमारे देश में 4 से 14 साल तक के बच्चों की संख्या तकरीबन 20 से 21 करोड़ है। उनमें से मात्र 6 से 7 करोड़ बच्चों का नाम स्कूल में दर्ज मिलता है। लड़कियों की संख्या तो इससे भी न्यून है। पूरे देश में 50 फीसदी बच्चे पांचवीं कक्षा में पहुँचने से पूर्व ही स्कूल छोड़ देते हैं। 6 से 14 वर्ष की 75 प्रतिशत लड़कियों का नामांकन तक स्कूलों में नहीं कराया जाता। इसी तरह 14 से 16 आयुवर्ग के करीब ढाई करोड़ स्कूल न जाने वाले बच्चों में 16 प्रतिशत लड़कियाँ हैं।

इक्कीसवीं सदी में उज्ज्वल भविष्य लाने के लिए प्रयत्नशील दुनिया के विभिन्न देशों के कदमों के साथ भारत के पाँच भी इस ओर सक्रिय हुए हैं उत्तर प्रदेश में विश्व बैंक के सहयोग से 10 जिलों में शिक्षा का प्रयास जारी है। बिहार में बिहार की शिक्षा परियोजना को वर्ष 1993 में यूनीसेफ सहायता प्राप्त हुई है। महिला शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु गर्ल्स एण्ड वुमेन एजुकेशन एनीसियेटिंग फण्ड से भारत को 10 करोड़ डालर की राशि मिली है। नवोदय विद्यालय की स्थापना का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्र के सर्वाधिक प्रतिभाशाली बच्चों को प्रोत्साहन कर शिक्षा देना है। इनमें वर्ष 1992-93 में लड़कियों की की संख्या 29 प्रतिशत रही। इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय में महिलाओं के प्रवेश के प्रतिशत में 26.6 का वृद्धि हुई है।

महिला साक्षरता परियोजना से भी महिलाओं में शिक्षा के प्रति रुचि जाग्रत हो रही है। इस. आई. डी. ए. के सहायतार्थ दो स्वीडिश परियोजनाएं शिक्षाकर्मी वर्ष 1987 से तथा लोक जुम्बिश वर्ष 1992 से क्रियाशील हैं। आंध्रप्रदेश प्राथमिक शिक्षा परियोजना जिसे ब्रिटिश ओ. डी. ए. ने क्रियान्वित किया तथा 1993 में जिला प्राथमिक शिक्षा परियोजना ने भी अच्छी सफलता अर्जित की है। इस योजना की लागत 19 करोड़ 50 लाख रुपये की थी। इन परियोजनाओं से लड़कियों के नामाँकन की संख्या में प्रगति हुई है और लड़कियों को आगे की पढ़ाई जारी रखने में मदद मिली है।

अपने देश में इन सबके बावजूद महिला शिक्षा की स्थिति काफी दयनीय है लेकिन ऐसा नहीं है कि लड़कियों की प्रतिभा लड़कों से कम है। उलटे तथ्यों से तो यह पता चलता है कि लड़कियों की नैसर्गिक प्रतिभा, लड़कों से कहीं बहुत आगे हैं। वर्ष 1996 के शिक्षा परिणाम में छात्राओं की सफलता का प्रतिशत लड़कों से काफी अच्छा रहा। इस वर्ष केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के बारहवीं कक्षा की परीक्षाओं में छात्राओं के पास होने का प्रतिशत गतवर्ष के 75.3 प्रतिशत से बढ़कर 76.9 प्रतिशत रहा। लड़कों का उत्तीर्णांक 68.4 प्रतिशत रहा, जो विगत वर्ष 67.6 प्रतिशत था। लड़के - लड़कियों के पास होने के प्रतिशत में सबसे बड़ा अन्तर चण्डीगढ़ केन्द्र में 13 फीसदी का रहा। विविध परीक्षा केंद्रों में उत्तीर्ण होने के प्रतिशत में अन्तर लड़के - लड़कियों के बीच इस तरह रहा - दिल्ली में 64.1 एवं 74.3 प्रतिशत, अजमेर में 79.3 तथा 82.2 प्रतिशत, चण्डीगढ़ में 67.7 तथा 80.1 प्रतिशत, इलाहाबाद में 70.6 एवं 79.9 प्रतिशत और गुवाहाटी में ये अन्तर 52.2 एवं 56.3 प्रतिशत का रहा। सभी स्थानों पर लड़कियों आश्चर्य जनक रूप से लड़कों से आगे रहीं।

तमिलनाडु में मैट्रिक परीक्षा में इस वर्ष लड़कियाँ लड़कों से आगे रहीं। एस. एस. एल. सी की परीक्षाओं में 4.71 लाख विद्यार्थियों में 68.84 प्रतिशत विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए। जिनमें 71.69 प्रतिशत छात्राएं थीं व 66.44 छा थे। मैट्रिक परीक्षा में 42,000 विद्यार्थियों में 95.04 प्रतिशत विद्यार्थी उत्तीर्ण हुए। जिनमें लड़कियाँ 2 प्रतिशत आगे रहीं। एंग्लो इंडियन स्कूल में 4200 पढ़ने वालों में 96.98 प्रतिशत छात्राएं उत्तीर्ण हुईं। यह प्रतिशत लड़कों से काफी आगे था।

ये सभी परिणाम यही स्पष्ट करते हैं कि नारी जाति की जन्मजात प्रतिभा पुरुष से कहीं बढ़ चढ़कर है। आज यदि उनकी शिक्षा का प्रतिशत कम है तो इसके पीछे सिर्फ एक कारण है कि उन्हें उपयुक्त अवसर नहीं दिया गया। लेकिन इसमें निराश होने की आवश्यकता नहीं है। जितनी महिलाएं देश में शिक्षित हैं, वे यदि कमर कस लें तो महिला जगत् का कायाकल्प कर सकती हैं। यों तो स्कूली और कॉलेजी शिक्षा प्राप्त को शिक्षित नारी कहा जाता है पर आज समय की माँग है कि इनमें वे नारियाँ भी शामिल की जावें जो पढ़ी लिखी तो कम हैं, किन्तु नारी कल्याण के लिए जिनके हृदय में ज्वालामुखी धधक रही है राष्ट्रीय आन्दोलन में पढ़ी लिखी नारी के अतिरिक्त सामान्य नारियों ने भी आन्दोलन को सक्रिय रखने में पूर्ण सहयोग दिया था। क्या महात्मा गाँधी की धर्मपत्नी कस्तूरबा गाँधी उच्च शिक्षित नारी थी ? नवजागरण के लिए तो बस छलकती भावनाएं और धधकता साहस चाहिए। ऐसा हो सके तो फिर सदी भर नारियाँ भारतीय महिलाओं में नवजागरण का शंख क्यों नहीं बजा सकती। इतिहास के पृष्ठों को मोड़ देने वाले मुट्ठीभर ही रहे हैं, वे तो नेतृत्व के अनुयायी मात्र रहे हैं। झाँसी की वीर रानी लक्ष्मीबाई थोड़ी सी महिलाओं की सेना के बल पर अंग्रेजों के छक्के छुड़ा सकती हैं तो क्यों अल्पसंख्यक होते हुए शिक्षित नारी, नारी शिक्षा व बहुमुखी प्रगति के लिए तहलका नहीं मचा सकी हैं ? निश्चित ही ऐसा किया जा सकता है, केवल साहस एवं संगठन बटोरने भर की देर है। फिर तो बस इक्कीसवीं सदी के आते आते वह समाज को कुशल नेतृत्व देने में स्वयं को सक्षम सिद्ध कर सकेंगी।


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