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October 1991

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सर्व वेद सारभूता गायत्र्या समर्चना ब्रह्मादयोऽपि संध्यायाँ ताँध्यायन्ति जपन्ति च॥

- देवी भागवत (स्क. 16. अ16/15)

“गायत्री मंत्र का आराधन समस्त वेदों का सारभूत है। ब्रह्मादि देवता भी संध्याकाल में गायत्री का ध्यान करते हैं और जप करते हैं।

जन-जन तक होने जा रहा है।

गायत्री महामंत्र के संबंध में अथर्ववेद में जो सूक्त आया है वह कहता है “स्तुतामया वरदा वेद माता प्रचेदयन्ताम्। पावमानी द्विजानाँ आयुः प्राणं प्रजाँ पशुँ कीर्ति, द्रविण ब्रह्मवर्चसम् मह्यम् दत्वा व्रजत ब्रह्मलोकम्” इसका एक-एक शब्द, अक्षर सही है। यह सारा महात्म्य हम परम पूज्य गुरुदेव के जीवन में, गायत्री तीर्थ में, शाँतिकुँज की युगाँतरीय चेतना में उतरा हुआ प्रत्यक्ष देख सकते हैं। यह साक्षी है उन सब फलितार्थों का, जो गायत्री महामंत्र से जुड़े हुए हैं व जिनके लिए हर व्यक्ति एक जीती जागती मिसाल देखने को उत्सुक बना रहता है। उन सभी को आमंत्रण है, जो जानना चाहते हों कैसे माँ गायत्री के अनुदान जीवन में उतारे जायँ।

*समाप्त*


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