संकट से गुजरने की शिकायत (Kahani)

October 1991

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शरशैया पर घायल पड़े भीष्म पितामह से जब युधिष्ठिर पूछते हैं कि वह कौनसा मंत्र है, जिसके जपने से विशेष प्रतिफल मिलता है तथा शान्ति, पुष्टि, सुरक्षा, निर्भय की प्राप्ति होती है, तो भीष्म पितामह कहते हैं-”हे युधिष्ठिर! जो व्यक्ति गायत्री का जप करते हैं, उनको धन, पात्र, गृह सभी भौतिक वस्तुएँ प्राप्त होती हैं। उनको दुष्ट, राक्षस, अग्नि, जल, वायु, सर्प, किसी का भय नहीं रहता। चारों वर्णों व आश्रमों में सफलतापूर्वक इसका जप किया जा सकता है। जहाँ यह मंत्र जप होता है वहाँ न बच्चों की अकाल मृत्यु होती है, न किसी को किसी प्रकार का कष्ट व क्लेश ही होता है।”

यह महत्वपूर्ण प्रसंग महाभारत के अनुशासनपर्व के अध्याय 150 में आया है।

जितने अधिक खिन्न पाए जाते हैं, उससे अधिक उद्विग्न वे हैं, जिनके पास साधनों का बाहुल्य है। धन कमाना एक बात है एवं उसका सदुपयोग करना बिल्कुल दूसरी बात है। एक पक्ष तो बढ़ रहा है पर दूसरे की दुर्दशा ने सारा संतुलन ही बिगाड़ दिया। विलासिता, आलस्य, बनावट, शान-शौकत की मदें इतनी खर्चीली हो गयी हैं कि भोजन वस्त्र जैसे आवश्यक व्यय तो उनकी तुलना में नगण्य जितने ही लगते हैं। अहंकार और बड़प्पन सहोदर जैसे बनते चले जा रहे हैं। सम्पन्नता के साथ दुर्व्यसन बढ़ रहे हैं। नशाखोरी से आज संपन्न वर्ग जितना पीड़ित है, उतने अन्य वर्ग के नहीं। उसकी प्रतिक्रिया भी अनेकानेक विग्रह उत्पन्न करती है। आजीविका सीमित व लिप्सा असीम हो तो फिर ऋणी बनने या कुकर्म करके उपार्जन करने के अतिरिक्त और कोई मार्ग नहीं रह जाता। अपराध इसी कारण बढ़ते जा रहे हैं। वस्तुतः आज उँगली पर गिनने योग्य हैं जो कह सकें कि हम अभावग्रस्त नहीं हैं। सभी को अर्थ संकट से गुजरने की शिकायत है।

आज की परिस्थितियों का ऊपर लिया गया जायजा पाठकों को निराशा की भावना में डुबाने के लिए नहीं, अपितु वस्तु स्थिति बताने के लिए प्रस्तुत किया गया कि यदि आज व्यक्ति दुखी है, उद्विग्न है तो इसका कारण क्या है व उपचार क्या होना चाहिए? जब एक ओर हम युग संधि की बात कहते हैं व उज्ज्वल भविष्य का उद्घोष करते हैं तो यह विरोधाभास किस लिए? कैसे आने वाले कुछ ही वर्षों में समय बदलेगा व लोगों के कष्ट दूर ही नहीं होंगे, सतयुग की वापसी भी होगी तथा सुख-शान्ति, चैन का साम्राज्य चारों ओर होगा?

वस्तुतः जहाँ दुखों का कारण बताया गया है वहाँ यह भी कहा गया है कि “शक्ति” कौन−सी? वही जो कभी महाकाली दुर्गा बनकर रक्तबीज, महिषासुर का मर्दन करती हैं व शुम्भ निशुम्भ का संहार करती देखी जाती हैं। गायत्री महाशक्ति की आज उसी रूप में उपासना किए जाने की आवश्यकता है ताकि उस त्रिपदा गायत्री की तीनों धाराएँ व्यक्ति का अज्ञान, अभाव, अशक्ति मिटाएँ व नवयुग का सूत्रपात करें। दुखों के कारणों में भी प्रधान दो ही हैं अज्ञान और अशक्ति। अभाव तो इनकी परिणति मात्र है। गायत्री की तीनों शक्ति धाराएँ ह्रीं, श्रीं और क्लीं-सरस्वती, लक्ष्मी और काली सद्ज्ञान, वैभव एवं शक्ति की प्रतीक हैं तथा मानव मात्र के दुखों के निवारण हेतु ऋषि मुनियों के श्रमसाध्य शोध अनुसंधान का परिणाम हैं।

गायत्री का तत्वज्ञान सृष्टि के आदिकाल से लेकर अब तक इस धरती पर निवास करने वाले जीवधारियों का तब तब कल्याण करता आया है जब-जब उनने संकटों को आमंत्रित किया है। ऋतम्भरा प्रज्ञा-गायत्री अध्यात्म का प्राण है। इस महामंत्र के चौबीस अक्षरों में मान्यताओं, संवेदनाओं और प्रेरणाओं का सुनियोजित तारतम्य विद्यमान है। युग परिवर्तन के लिए जन-जन में शक्ति संचार के लिए इस एक महामंत्र के अतिरिक्त और कोई उपाय अब नहीं हैं।

शक्ति की साधना हेतु इस वर्ष को शक्ति साधना वर्ष घोषित किया गया है। जिस महामंत्र का आश्रय लेकर ब्रह्मर्षि विश्वमित्र ने कभी नूतन सृष्टि की रचना की थी, उसी का अवलम्बन लेकर सतयुग की वापसी अब संभव होगी। आज के युग के विश्वामित्र


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