समय विषम है डगर
समय विषम है डगर कठिन है, जाना भी उस पार।
छोड़ चलो यह रीत पुरानी, राह नई तैयार॥
सोच पुरातन लेकर हमने, जीवन बहुत बिताया।
उलझे रहे प्रपंचों में हम, समय अमूल्य गँवाया॥
शंख बज चुका महाक्रान्ति का, आगे आना होगा।
अवसर आया है न चूकना, अब हमको इस बार है॥
कुरुक्षेत्र का अंत बिना, अर्जुन भी ऐसा होता।
नहीं नील- नल होते फिर, रावण का वध होता॥
काम प्रभु का नाम तुम्हारा, होगा निश्चित जानो।
तुमको यह अनुबन्ध युद्ध में, करना अब स्वीकार है॥
कैसा हो संषर्घ विजय तो, सच की होती आई।
अंत नहीं परिवर्तित होगा, कितनी बढ़े बुराई॥
समय नहीं रुक पाता है, गति हमें बढ़ानी होगी।
अभी नहीं तो कभी नहीं, बस युग की यही पुकार है॥
युग की जो हो माँग वही, अध्याय लिखे जाते हैं।
युद्धों में नव नियम नए, संग्राम रचे जाते हैं॥
नए समय की परिभाषा है, रंग बदलना होगा।
ओढ़ चलो चादर वासन्ती, गुरुवर का त्यौहार है॥