हम मोड़ने चले हैं
हम मोड़ने चले हैं, युग की प्रचण्ड धारा।
गिरते हैं उठते- उठते, हे! नाथ दो सहारा॥
दुष्वृत्तियाँ बढ़ी हैं, उनको उखाड़ना है।
छल कंस कर रहा है, उसको पछाड़ना है॥
स्वारथ की बस्तियों को, अब तो उजाड़ना है।
फिर व्यूह कौरवों का, हमको बिगाड़ना है॥
मिट जाय फिर असुरता, यह लक्ष्य है हमारा।
गिरते हैं उठते- उठते, हे! नाथ दो सहारा॥
हम कर्म खुद करेंगे, पर आन माँगते हैं।
हम गीत खुद रचेंगे, पर तान माँगते हैं॥
भगवान तुमसे हम कब? वरदान माँगते हैं।
बस एक सद्- असद् की पहचान माँगते हैं॥
पर है तभी यह सम्भव, आशीष हो तुम्हारा। गिरते हैं उठते- उठते, हे! नाथ दो सहारा॥
निर्देश हो तुम्हारा, पुरुषार्थ हम करेंगे।
संदेश प्रभु तुम्हारा, सबसे कहा करेंगे॥
आस्था जगे सभी में, अभियान वह रचेंगे।
कर्तव्य- मार्ग पर हम, बलिदान भी करेंगे॥
‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ उद्देश्य है हमारा।
गिरते हैं उठते- उठते, हे! नाथ दो सहारा॥