अक्षुण्ण स्वास्थ्य प्राप्ति हेतु एक शाश्वत राजमार्ग

आहार पौष्टिक ही नहीं सर्व सुलभ भी हो

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शरीर को भोजन की आवश्यकता मुख्यतः दो कारणों से पड़ती है। पहले शरीर की वृद्धि और मरम्मत के लिए तथा दूसरे शरीर में वांछित गर्मी और शक्ति उत्पन्न करने के लिए। मनुष्य का शरीर निरन्तर निर्मित होती रहने वाली, अभिवृद्धि करने वाली प्रकृति की अद्भुत रचना है। किसी मकान का निर्माण करने के लिए जिस प्रकार ईंट चूना, सीमेंट, लकड़ी और लोहे का सामान जरूरी होता है उसी प्रकार शरीर के लिए भी विभिन्न पोषक तत्व आवश्यक होते हैं जो खाद्य पदार्थों से मिलते हैं।

शरीर निरन्तर गतिशील, क्रियाशील भी रहता है। इसके लिए एक शक्ति की आवश्यकता होती है। रेल को चलाने के लिए वाष्पशक्ति चाहिए अन्य मशीनें और कल कारखाने भी वाष्पशक्ति या विद्युत शक्ति से चलते हैं। यदि उन्हें वह शक्ति मिलना बन्द हो जो तो सम्बन्धित यन्त्र बन्द हो जाते हैं। शरीर भी किसी मशीन से कम नहीं है। उसे चलाने के लिए जिस शक्ति की आवश्यकता रहती है वह भोजन से ही प्राप्त होती है। हम जो आहार ग्रहण करते हैं जो कुछ भी खाते हैं उससे हमारा पाचन संस्थान पोषक तत्व चुन लेता है और उन्हें रक्त में मिलाकर रक्त परिवहन संस्थान को सुपुर्द कर देता है। यहां से जिन अंगों को जिन पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है वहां रक्त द्वारा वे तत्व पहुंच जाते हैं।

भोजन से प्राप्त होने वाले पोषक तत्व ही शरीर में शक्ति पैदा करते हैं ‘इसके अतिरिक्त शरीर को जीवित रखने के लिए गर्मी भी अपेक्षित होती है जिससे हमारा शरीर गर्म रहता है। इस गर्मी को हम जीवन की गर्मी भी कह सकते हैं। भोजन के पोषक तत्व जब शरीर में शक्ति पैदा करते हैं तो उनसे जीवन वह वांछित गर्मी स्वयं ही प्राप्त हो जाती है। इसलिए आवश्यक है कि हम जो भोजन करें उस भोजन में पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में विद्यमान रहें ताकि शरीर को आवश्यक पोषण मिलता रहे।

स्वस्थ और शक्तिशाली शरीर के लिए वैज्ञानिकों ने जिन पोषक तत्वों को आवश्यक बताया है वे हैं—प्रोटीन्स, खनिज लवण, कार्बोहाइड्रेट्स, चर्बी और विटामिन्स, भोजन में यह तत्व पर्याप्त मात्रा में रहें तो शरीर की अभिवृद्धि और उसकी अद्भुत मशीन में होने वाली टूट-फूट का कार्य भली प्रकार चलता रह सकता है।

समझा जाता है कि इन पोषक तत्वों के लिए उच्चकोटि का आहार चाहिए। जैसे प्रोटीन्स के लिए सोयाबीन, सूखे मेवे और सूखी फलियों वाले शाक। चर्बी के लिए बादाम, अखरोट, पिस्ता, काजू, घी, विटामिन्स के लिए फल, दूध, दही आदि। जिन खाद्य पदार्थों में ये तत्व पर्याप्त मात्रा में हैं उनकी एक लम्बी सूची है और कई बहुत महंगे होने के कारण सर्वसाधारण के लिए खाद्य पदार्थ सुलभ भी नहीं हो पाते। इसलिए सामान्य जनता के दुर्बल स्वास्थ्य में कुपोषण भी एक बड़ी समस्या है।

जब भी कभी पोष्टिक भोजन की बात चलती है तो औसत स्तर के व्यक्ति इसे महंगा होने के कारण अपने लिए दुर्लभ ही बताते हैं। परन्तु बात ऐसी नहीं है। साधारण भोजन भी ठीक प्रकार से पकाया जाये तो उनमें भी पर्याप्त मात्रा में पौष्टिक तत्व मिल जाते हैं। गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि अनाज शकरकन्दी, आलू, अरबी, मूली जैसे शाक। दूध, दही, नींबू, गुड़ आदि में भी पर्याप्त विटामिन होते हैं और वे उन महंगे खाद्य पदार्थों की तरह ही शरीर के लिए पोषक तत्वों की आवश्यकता पूरी करते हैं। वैज्ञानिक विश्लेषणों से पता चला है कि गन्ने शहद और खजूर में भी उतने ही विटामिन्स तथा लवण होते हैं जितने कि किशमिश और मुनक्का जैसे सूखे मेवों में।

अधिकांशतः सामान्य खाद्य पदार्थों में भी पर्याप्त मात्रा में विटामिन्स और पोषक तत्व मिल जाते हैं जितने की महंगे और सूखे मेवों, फलों में। गेहूं, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि अनाज तथा शाक, सब्जियां भी पोषक तत्वों से भरपूर हैं। फिर क्या कारण है कि इन पोषक तत्वों में पर्याप्त मात्रा में विटामिन्स होते हुए भी अधिकांश व्यक्तियों का भोजन पोषण रहित या अपर्याप्त पोषण देने वाला होता है। किसी स्वास्थ्य वैज्ञानिक ने इसका कारण बताते हुए लिखा है। अधिकांश लोग इसलिए बीमार नहीं पड़ते कि उन्हें पोषक आहार जो महंगे बताये जाते हैं, नहीं मिलते बल्कि इसलिए अस्वस्थ रहने लगते हैं कि उनके खानपान का तरीका अवैज्ञानिक होता है।

आमतौर पर लोगों को यह कहते सुनते पाया जाता है कि दूध नहीं मिलता, घी महंगा होने के कारण नहीं खरीद सकते, वनस्पति के दर्शन हैं आदि। महंगाई के कारण कई वस्तुओं के सुलभ न होने की बात एक सीमा तक सही है क्योंकि इनकी आवश्यकता, शरीर को पौष्टिकता प्रदान करने के लिए पड़ती है। जबकि दूध और घी के अलावा भी अन्य पौष्टिक खाद्य हैं जो सर्वसाधारण के नियमित व्यवहार में आते हैं। लेकिन उनका प्रयोग गलत ढंग से किये जाने के कारण उनसे उचित लाभ नहीं मिलता। फिर भी आहार में पोषक तत्वों के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। इस सदी में आहार सम्बन्धी जो शोधें हुईं तथा उनके परिणाम स्वरूप जो निष्कर्ष आये वे सर्वसाधारण तक नहीं पहुंच पाये। यही कारण है कि अधिकांश व्यक्ति घी दूध और सूखे मेवों, महंगे फलों को ही स्वास्थ्यवर्धक पौष्टिक खाद्य मानते हैं। प्रायः कहा जाता है कि आजकल महंगाई के जमाने में केवल अमीर लोग ही घी खा पीकर स्वस्थ रह सकते हैं। गरीबों या मध्यवर्ग के व्यक्तियों के लिए तो पोषक आहार स्वप्न की ही बात है।

यह बात अधुनातन वैज्ञानिक निष्कर्षों और अनुसन्धानों के आधार पर गलत सिद्ध हो रही है। यह सच है कि घी दूध पोषक तत्वों से परिपूरित आहार है किन्तु यह भी सच है कि यही एक मात्र पोषण पूर्ण खाद्य नहीं है। पूरा पोषण प्राप्त करने के लिए अन्य खाद्य पदार्थों की भी आवश्यकता रहती है। यदि बुद्धिमानी से भोजन का चुनाव किया जाय तो हम काफी सस्ते मूल्य में परिवार के लिए अच्छा और पोषण पूर्ण भोजन जुटा सकते हैं।

उदाहरण के लिए दूध को ही लें। अच्छी किस्म के दूध का मूल्य प्रायः तीन चार रुपये प्रति लीटर बैठता है। सर्व साधारण की इतनी सामर्थ्य नहीं होती कि वह तीन-चार रुपये रोज दूध पर खर्च कर सके। फलतः दो ढाई सौ ग्राम दूध लेकर चाय के रूप में ही सुबह नाश्ता कर लिया जाता है। वैज्ञानिकों द्वारा किये गये प्रयोगों से यह निष्कर्ष सामने आये हैं कि 50 ग्राम अंकुरित चनों को खूब चबा-चबाकर खाने से उसका रस मुंह में भरता रहता है। इस प्रकार अंकुरित चने खाने से दूध के समान ही पौष्टिक तत्व प्राप्त होते हैं।

आरम्भ में इस प्रकार अंकुरित चने खाने से उनमें स्वाद नहीं आता। फीके और अस्वाद होने के कारण चने खाने को मन नहीं करता, परन्तु उसका अपना एक अलग ही स्वाद होता है। यदि इनमें रुचि ली जाय तो अंकुरित चनों के खाने और उनमें रस लेने की आदत डाली जा सकती है। इसके लिए चनों में हलका सा नमक डालकर और कागजी नींबू निचोड़कर स्वाद पैदा किया जा सकता है। नींबू का रस और नमक डालकर चने खाने से भरपूर मात्रा में प्रोटीन, विटामिन और खनिज नवल प्राप्त किये जा सकते हैं। मूल्य की दृष्टि से भी यह नाश्ता महंगा नहीं होता। मुश्किल से पांच व्यक्तियों के परिवार के लिए पचास पैसे का नाश्ता पड़ता है। चाय में तो इससे ज्यादा खर्च पड़ता है।

पोषक तत्वों की पर्याप्त प्राप्ति के लिए जब फलों की बात चलती है तो लोगों का ध्यान अंगूर, अनार और सेब जैसे फलों की ओर जाता है तथा महंगाई की कठिनाई सामने आती है लेकिन कोई जरूरी नहीं कि महंगे फल ही खाये जायें। सभी क्षेत्रों में होने वाले मौसमी फल मिल जाते हैं। जो काफी सस्ते भी रहते हैं जैसे खीरा, ककड़ी, अमरूद, जामुन, आम, चीकू, पपीता आदि। तीसरे पहर प्रायः सभी घरों में चाय बनती है और नाश्ता के लिए कुछ न सही तो रोटी और चावल का प्रयोग तो किया ही जाता है। उसे रोककर यदि ताजे और मौसमी फल खाये जायें तो अपराह्न कालीन नाश्ते में पर्याप्त पोष्टिक तत्व मिल सकते हैं। जाड़े के दिनों में सन्तरे बहुतायत से मिलते हैं औसत साइज का एक सन्तरा 25 पैसे तक मिल जाता है। पूरे परिवार के लिए पांच सन्तरे पर्याप्त होते हैं।

इतना खर्च भी अपनी शक्ति से बाहर लगे तो एक किलो गाजर भी काफी हैं। कच्ची गाजर में पर्याप्त मात्रा में विटामिन ए तथा खनिज लवण होते हैं। गाजर के अलावा इन दिनों शलगम, मूली, टमाटर आदि सब्जियां बेहद सस्ती मिलती है और अपर्याप्त पोषक तत्वों से भी परिपूर्ण रहती हैं।

इसी प्रकार आंवला भी पर्याप्त पोषण पूर्ण खाद्य है। इनमें विटामिन सी भी अधिक मात्रा में होता है जो कि दांतों और रक्त के लिए बहुत आवश्यक है। जिन दिनों ताले आंवले मिलते हैं उन दिनों कच्चे आंवले खाने चाहिए। यदि अच्छे न लगें तो उनकी चटनी बनाई जा सकती है। जब आंवलों की फसल खतम हो जाय तो सूखा आंवला इस्तेमाल किया जा सकता है। रात को आंवला भिगोकर उसे सिल बट्टे पर पिसवाकर चटनी बनवाई जा सकती है। इस प्रकार कितने ही तरीकों से आंवलों का उपयोग किया जा सकता है। विटामिन सी और खनिज लवण के अतिरिक्त आंवलों में और कई पोषक तत्व होते हैं। आयुर्वेद में तो उसे वृद्ध व्यक्तियों को भी यौवन प्रदान करने वाला बताया गया है।

दूध की आवश्यकता भी सभी घरों में पड़ती है और प्रायः सभी लोग थोड़ी बहुत मात्रा में दूध खरीदते हैं। यह बात और है कि महंगा होने के कारण दूध पर्याप्त मात्रा में नहीं खरीदा जा सकता। ऐसी दशा में दूध का विकल्प सपरेटा दूध खरीदा जा सकता है। सपरेटा दूध शुद्ध दूध की अपेक्षा सस्ता होता है। शुद्ध दूध में से घी या मक्खन निकालकर ही सपरेटा तैयार किया जाता है—उसमें घी भले ही नहीं रहता परन्तु उसके अलावा सभी पोषक तत्व (प्रोटीन्स, कैल्शियम, खनिज, लवण और विटामिन्स) उतनी ही मात्रा में रहते हैं जितने कि शुद्ध रूप में।

ऊपर जिन खाद्य पदार्थों के सुझाव दिये गये हैं वे भी सस्ते हैं और सर्वसाधारण की क्रय शक्ति की सीमा में आते हैं। इनका प्रयोग सभी कर सकते हैं। इनके अतिरिक्त खाना पकाने की विधि में भी थोड़ा सुधार कर लिया जाय तो पकाते समय जो बहुत से विटामिन पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं उन्हें पचाया जा सकता है। जैसे आमतौर पर गृहणियां आटे को छानकर चोकर फेंक देती हैं। चोकर के साथ बहुत से विटामिन फिक जाते हैं। जिन सब्जियों के छिलके कड़े नहीं होते उन्हें भी छीन दिया जाता है। जबकि ऐसा करने से कई विटामिन नष्ट हो जाते हैं।

आहार के पोषक तत्वों की रक्षा के लिए सब्जियों को अधिक देर तक नहीं पकाया जाना चाहिए और न ही उसमें बेहद मसाले वगैरह डालकर उनकी पौष्टिकता को नष्ट करना चाहिए। इस प्रकार साधारण आमदनी वाले परिवार भी अपने लिए पर्याप्त पोषणपूर्ण आहार अपनी शक्ति सामर्थ्य के भीतर रहकर ही प्राप्त कर सकते हैं।

बिना पकाये हुए अनाजों के प्रयोग में गेहूं की घास बनाकर खाने की एक नई कढ़ी और जुड़ी हुई है और उस विधि को प्रयोग कर्ताओं तथा उपयोग करने वालों ने अतीव उपयोगी बताया है। अमेरिका की एक महिला डॉक्टर एन. मिरामोर ने अपनी पुस्तक ह्वीटग्रास मैुनुअल में इसके प्रयोगों और अनुभवों का सविस्तार वर्णन लिखते हुए यह भी बताया है कि किस प्रकार गेहूं की घास का उपयोग विभिन्न रोगों की चिकित्सा में उपयोगी और प्रभावकारी सिद्ध होता है। उन्होंने गेहूं को ‘हरित रक्त’ की संज्ञा देते हुए यह बताया है कि यह रस मनुष्य के रक्त से 40 प्रतिशत मिलता-जुलता है।

डा. मिरामोर का कथन है कि स्वस्थ व्यक्ति यदि इसका सेवन करें तो उनके शरीर में जीवनीशक्ति प्रखर होती है और रोगियों में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता आश्चर्यजनक रीति से बढ़ती है। इससे पोषण के लिए उपयुक्त इतने अधिक बहुमूल्य तत्व उपलब्ध होते हैं जितने कि अच्छी से अच्छी खुराक से भी प्राप्त नहीं हो सकते। इसे किसी भी रोग में दवा के रूप में दिया जा सकता है और कोई भी इसे श्रेष्ठतम टानिक के रूप में सेवन कर सकता है।

गेहूं की घास से हरि रक्त बनाने की विधि बहुत सरल है। कुछ टोकरे या रद्दी पेटियों में खाद मिली मिट्टी भर दी जाती है। इनकी संख्या दस बारह होनी चाहिए। प्रत्येक टोकरी में बारी-बारी से गेहूं के अच्छे बीज बो दिये जाते हैं। उन्हें छाया में रख दिया जाता है और पानी दिया जाता रहता है। तीन-चार दिन में ही ये बीज उग आते हैं और आठ-दस दिन में करीब सात-आठ इंच ऊंचे हो जाते हैं, इस प्रकार दस-बारह दिन में पहले बोये बीजों से उगे तीस-चालीस पौधे उखाड़कर उनकी जड़ें काटकर हटा दीजिये। अंकुरों को धोकर थोड़े पानी के साथ सिल पर पीसकर कपड़े में छान लीजिये। इस प्रकार जो पेय तैयार होता है उसे एक गिलास प्रतिदिन पीने से सम्पूर्ण पोषक तत्वों की आवश्यकता पूरी हो जाती है। दूसरे दिन दूसरे बोये अंकुर लिए जाना चाहिए और जिस टोकरे में से उन्हें उखाड़ा जाय उसमें दुबारा बोने का क्रम नियमित रूप से जारी रखना चाहिए। इस प्रकार सिलसिला टूटने नहीं पायेगा और प्रतिदिन गेहूं की घास मिलती रहेगी।

इस गेहूं की घास के चमत्कारी सत्परिणामों का सविस्तार उल्लेख करते हुए डॉ. विरामोर ने एक और प्रयोग लिखा है जो गेहूं घास के बराबर तो नहीं फिर भी बहुत कुछ लाभदायक है। वह विधि यह है कि आधा कप धुले और बिने हुए गेहूं किसी कांच या चीनी के बर्तन में डालिए और उन पर दो कप पानी डालकर ढक दीजिए और पानी को छानकर पीजिए। यह पानी भी बहुत गुणकारी है। भीगे हुए गेहूं दलिये आदि के काम में लाये जा सकते हैं।

इस प्रकार खाद्य पदार्थों को यथा सम्भव उनके प्राकृतिक रूप में लिया जाए। उन्हें कम से कम भूना या पकाया जाए और उनके उपयोगी अंश को नष्ट न किया जाय। इतनी साधारण-सी सावधानी बरतने पर गरीबी जैसा उपलब्ध आहार भी अपनी पोषक विशेषता बनाये रह सकता है।
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