अक्षुण्ण स्वास्थ्य प्राप्ति हेतु एक शाश्वत राजमार्ग

समझदारी का सदुपयोग यह है कि उसके सहारे सीधा रास्ता तलाश किया जाय और ऊंचा उठने, आगे बढ़ने में उपलब्ध शक्तियों को नियोजित किया जाय। उसके विपरीत यदि समझदारी कुचक्र रचने लगे, विनाश पर उतरे, उलटे रास्ते चले तो उससे हानि ही हानि है। इससे तो वे नासमझ अच्छे जो कछुए की तरह धीमी चाल चलते, लक्ष्य का ध्यान रखते और उछलने वाले खरगोश से आगे निकलकर बाजी जीतते हैं।

मनुष्य की तुलना में इस दृष्टि से पशु अधिक समझदार हैं जिन्होंने प्रकृति मर्यादाओं को अपनाये रखा है और मनुष्य के नागपाश तथा प्रकृति प्रकोप का सामना करते हुए भी अपना अस्तित्व बनाये रखा है। जो इन साधन रहित परिस्थितियों में भी मात्र अपनी काया, प्रकृति प्रेरणा और कठोर श्रम करने पर सम्भव हो सकने वाली निर्वाह व्यवस्था भर से काम चलाते और सुख-चैन की जिन्दगी जीते हैं।

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