संतान के प्रति कर्तव्य

बच्चों के स्वास्थ्य की समस्याएँ

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च्चों की उन्नति का रहस्य उत्तम स्वास्थ्य ही है । उत्तम स्वास्थ्य की नींव बचपन से ही रखी जाती है । स्वास्थ्य से हमारा अभिप्राय यह है कि बच्चे की पाचन क्रिया दुरुस्त हो तथा मलोत्सर्ग की प्रणलियाँ अच्छी तरह निज कार्य करती रहें । उनके शरीर में स्फूर्ति रहे, कार्य में मन लगे, उनके हृदय में आशा, उत्साह तथा मुख पर मधुर मुस्कान रहे, आत्मा स्वच्छंद हो, मस्तिष्क तथा ज्ञानेन्द्रियाँ पवित्र और विकसित रहें ।

स्वास्थ्य का सर्वप्रथम नियम है कि बच्चों को जल्दी सोने तथा जल्दी जागने की आदत डाली जाए । यह कठिन है किन्तु धीरे-धीरे अभ्यास से यह आ सकती है । भारत जैसे देश का प्रात:कालीन समय बौद्धिक विकास, मौलिक अध्ययन एवं चिन्तन मनन के लिए बहुत उत्तम है।

दाँतों की सफाई दूसरा प्रधान कार्य है । टूथ पाउडर या दाँतुन की धीरे-धीरे आदत डालनी चाहिए । तत्पश्चात तेल की मालिश के साथ स्नान करना चाहिए । शरीर त्वचा का रंग साफ हो जाता है तथा शारीरिक शक्ति की वृद्धि होती है । नास्ते में दूध मीठे फल आदि उत्तम हैं । यथा सम्भव भोजन पौष्टिक दिया जाए, चाय की आदत न डाली जाय । बचपन में ही सिगरेट की गन्दी आदत पड़ती है जिसकी ओर से सावधान रहें । शरीर ओर मस्तिष्क की पूर्ण स्वच्छता, रहने के स्थान और उसके इर्द-गिर्द के वायु मण्डल की स्वच्छता, सुखाद्य और पौष्टिक भोजन, फल, हरी तरकारियाँ स्वास्थ्य बनाने में सहायक होते हैं ।

व्यायाम की आदत प्रारम्भ से ही डालनी चाहिए अन्यथा बच्चों में आलस्य, मोटापन, निकम्मापन, झींकना, दु:खी रहना इत्यादि दुर्गुण आ जाते हैं । व्यायाम के अनेक उपाय हो सकते हैं । जैसे-खेल-कूद, भागना, तैरना, पेड़ों पर चढ़ना कुस्ती, अंग्रेजी डम्बल या भारतीय यौगिक व्यायाम । उन्हें गहरी साँस लेना सिखलाइये । वे नित्य समय पर स्नान करें, मालिश किया करें । ऐसा प्रयत्न करें कि व्यायाम उनके लिए बोझ न बन जाय वरन वे उसे मनोयोग पूर्वक करें । श्वाँस सम्बन्धी कसरतें अति उत्तम होती हैं । बलपूर्वक, श्वाँस-प्रश्वाँस की क्रिया की अपेक्षा तेज चलने, धीरे-धीरे दौडने से ह्रदय और फेंफड़ों को बहुत लाभ पहुँचता है ।

बच्चों को समय-समय पर नये-नये स्थान, बाग, सरिता के तट पर या स्वथ्य स्थानों पर टहलने के लिए ले जाया कीजिए । शुद्ध वायु में रखने से उनकी बाढ़ ठीक रहेगी । स्फूर्ति से टहलना चाहिए । छुटिट्यों में घर से बाहर ले जाने से बच्चों की परिस्थिति एवं वातावरण में परिवर्तन हो जाता है ।

यदि किसी व्यायामशाला में जाने की सुविधा हो तो मालिश करना आसानी से आ सकता है । मालिश एक उत्तम व्यायाम है । त्वचा की क्रिया को ठीक रखने के लिए शुष्क घर्षण या स्नान के समय गीले वस्त्र से बदन रगडना त्वचा को स्वथ्य रखता है । सुविधानुसार मालिश कराते रहें ।

बच्चे स्वभावत: कुछ न कुछ करते रहते हैं । वे निश्चेष्ट नहीं बैठ सकते । इसलिए आपकी चतुरता और कला इस बात में है कि उनके लिए कुछ ऐसे मनोंरजन कार्य खोज निकालें, जिसमें उनकी शक्तियाँ लग सकें और कुछ उपयोगी कार्य भी हो सके । वे कार्य के भूत होते हैं । उनकी इस उत्पादक शक्ति को कार्य में लाने में ही भलाई है । अधिक कार्य करने से उनकी गुप्त उत्पादक शक्तियों का विकास होता है
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