इन सब बातों का सारांश यही है कि चाहे आप संतानोत्पत्ति के लिए प्रयत्न करें या न करें, पर यदि संतान होती है, तो उसे आदर्श बनाना आपका कर्तव्य है । कुत्ते, बिल्लियों की तरह बहुत से बच्चे पैदा करके उनको इधर-उधर मारे-मारे फिरने के लिए छोड़ देना कोई प्रशंसा की बात नहीं है । ऐसी संतान से हमारा और पूर्वजों का उद्धार तो क्या उल्टा वे हमको नर्क में ढकेलने का कारण बनेंगे । इसी बात को समझकर आजकल अनेक विव्दानों ने तो 'संतान निग्रह' का एक आन्दोलन ही चला दिया है जिसका आशय यही है कि मनुष्य को उतनी ही संतानें उत्पन्न करनी चाहिए, जिनका पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा वह भली प्रकार कर सकता है । हम समझते हैं, कि कोई भी विचारवान व्यक्ति इस बात से इन्कार नहीं कर सकता कि अगर हम संतान के प्रति अपना कर्तव्य निबाहने में असमर्थ हैं तो इससे अच्छा यही है कि उसे उत्पन्न ही न किया जाय । संसार में जन्म लेने वाला प्रत्येक अबोध शिशु परमात्मा की एक पवित्र धरोहर है, जिसकी उचित प्रकार से रक्षा और विकास करके ही ह्म उत्तरदायित्व से मुक्त हो सकते हैं ।