संतान के प्रति कर्तव्य

सन्तान हीनता दुर्भाग्य की बात नहीं

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संतान की इच्छा संसार में सर्वत्र देखने में आती है, उसके लिए मनुष्य तरह-तरह के प्रयत्न भी करते हैं, पर तो भी अनेक मनुष्य निस्संतान रह जाते हैं और वे अपने को अभागा समझकर बड़े दु:खी तथा संतप्त रहते हैं । यह एक बड़ी भूल है । खास कर हमारे भारतवर्ष में तो संतान न होने को इतना बड़ा दोष मान लिया है कि उससे बड़ी-बड़ी हानियाँ होती हैं । संतान प्राप्ति के लिए अनेक व्यक्ति अनुचित उपायों का भी सहारा लेते हैं और तब भी सफलता न हो तो अन्य के बालक को दत्तक लेकर मन की साध पूरी करते हैं ।

संतान से जो इच्छा किन्हीं बिरलों की ही पूर्ण होती हैं । वे गौरव की, कमाई खिलाने की, सेवा मिलने की हैं । पर आज के समय में ऐसे सपूतों के दर्शन दुर्लभ हैं । बुडढे माता-पिता को एक भार समझा जाता है, उनकी मृत्यु की प्रतीक्षा की जाती है । जबान बेटा घर का मालिक होता है । बुडढे के हाथ में कोई शक्ति नहीं रहती, वह पराश्रित हो जाता है, अपनी इच्छा पूर्ति के लिए कमाऊ बेटे के मुहँ की ओर ताकता है, उसकी टेढ़ी भवों को देखकर सहम जाता है चौपाल की चर्चा में बुडढे को ही बाप कहा जाता है, पर व्यावहारिक रूप में बेटा बाप बन जाता है और बाप को बेटे की तरह रहना पड़ता है । जवानी के नशे में अक्सर आज के बेटे बाप का अपमान तक करने में नहीं चूकते । जो बड़े मनसूबे बाप बाँधा करता था, बेटे से जिस व्यवहार की आशायें किया करता था, समय आने पर वह बालू का महल बिस्मार हुआ दिखाई देता है । किन्हीं बिरलों की ही यह इच्छा पूर्ण होती है ।

कुछ कारण ऐसे हैं जिन्हें केवल भ्रम कहा जा सकता है, जैसे यह ख्याल करना कि बेटे से हमारा नाम चलेगा । इन पंक्तियों के पाठकों से हम पूछते हैं कि आप कृपा कर अपने पूर्वजों के पीढ़ी दर पीढ़ी के हिसाब से नाम बताइये ? तीन, चार, पाँच पीढ़ी से अधिक ऊपर की पीढ़ी के पूर्वजों के नाम शायद ही किसी को याद होंगे । जब अपने ही पोते, पर पोतों को नाम नहीं याद रहा तो दुनियाँ में तो संतान द्वारा चलेगा ही कैसे ? यह दुनियाँ ब्लैक बोर्ड की तरह है जिस पर बार-बार अक्षर लिखे और मिटाये जाते हैं । खेत में बार-बार बीज बोये जाते हैंओर बार-बार फसल काटी जाती है । हर बरसात में असंख्य बूँदे पानी की बरसती हैं और अपने रास्ते चली जाती हैं ।

कौन किसे याद रखता है ? दुनियाँ की याददाश्त इतनी फालतू नहीं है कि वह गये गुजरे आदमियों को याद रखें, उनके नाम चलाये । सृष्टि के आदि से आज तक असंख्यों मनुष्य हुए और मर गये । उनकी सन्ताने मौजूद हैं पर नाम याद रखने का किसी को अवकाश नहीं । यह सब देखते हुए भी जो यह सोचते हैं कि संतान से नाम चलेगा, वह भारी भ्रम में हैं ।

इसी प्रकार यह भी भ्रम है कि मरने के बाद भी सन्तान खाना-पीना परलोक में पहुँचाया करेगी । हर आत्मा स्वतंत्र है । उसे अपने कर्म का ही फल मिलता है । बेटे की रोटी से परलोकवासी आत्मा का पेट नहीं भरता । परमात्मा इतना कंगाल नहीं है कि उसके घर में रोटी का अकाल पड़ जाय, बेटे के पिण्डोदक बिना बाप को भूखा-प्यासा रहना पड़े । सद्गति अपने कर्मो से होती है । इसके लिए बेटे का आसरा ताकना निरर्थक है । मेरे पीछे मेरा उत्तराधिकारी कौन होगा ? यह बात भी भला कोई चिन्ता करने की है । लेने के लिए तो हर कोई हाथ पसारे खड़ा है । फिर जिनके लिए छोड़ा जायगा वे उसका सदुपयोग ही करेगें इसका कोई निश्चय नहीं । हम देखते हैं कि कितने लड़के बाप के माल को लूट का माल समझकर ऐसी बेदर्दी से फूँकते हैं कि देखने वालों को तरस आता है ।

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