ऐसे अनेक व्यक्ति हैं, जिनके पास उत्तम विचारों की कमी नहीं है। उनके सामने उनकी प्राप्ति के लिए अनेक सुविधाएं भी हैं। सफलता की अनेक युक्तियां उनके पास हैं, किन्तु फिर भी वे आगे बढ़ते नहीं हैं। इनका क्या कारण है?
एक सज्जन लिखते हैं, ‘‘मेरे विचारों तथा योजनाओं की स्फूर्ति से अनेक व्यक्तियों को लाभ पहुंचा है, वे उन्नत हुए हैं। किन्तु मुझे यह लिखते हुए शोक है कि मैं अभी तक जहां का तहां पड़ा हुआ हूं। जीवन में कुछ भी प्रगति नहीं कर सका हूं।’’
इनके व्यक्तित्व की त्रुटि यह है कि ये कागजी योजनाएं तो यथेष्ट बनाते हैं। विचारों की यहां कमी नहीं है। अपने विचारों को कार्य रूप में परिणत नहीं करते। विचार जब तक निष्क्रिय है, वे कपोल कल्पना के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं। जिस तत्व की सबसे अधिक आवश्यकता है, वह कार्य को कर डालने योजनाओं पर चलने की है। बात को सोचना एक चीज है, उसको काम में लाकर वैसा ही बन जाना दूसरी चीज है। क्रियात्मक (अर्थात् प्रैक्टीकल) कार्य करने की अतीव आवश्यकता है।
सफल व्यक्तियों के जीवन का यदि आप अध्ययन करें तो आपको प्रतीत होगा कि वे काम को क्रियात्मक रूप से कर देने में अधिक विश्वास करते थे। उनके आन्तरिक जीवन तथा बाह्य क्रियात्मक जीवन में पूर्ण साम्य था। उनमें केवल अच्छे विचारों का आनन्द लेने की ही क्षमता नहीं है, वरन् काम कर लेने में अधिक विश्वास मिलता है। उनमें कार्य अधिक है। उन्हें जो विचार मिलता है, वे उसे अपने कार्य द्वारा प्रत्यक्ष कर पूर्ण बनाते हैं।
कार्य संसार की संचालिनी कन्ट्रोल करने वाली शक्ति है। जो कार्य को कर डालता है, उसके अंग प्रत्यंग, मस्तिष्क, स्मृति, अनुभव की अभिवृद्धि होती है। जो केवल सोचता भर है, वह जहां का तहां रुका रहता है।
नेपोलियन पढ़ा लिखा नहीं था। अधिक सोचता नहीं था। उसकी सफलता का रहस्य कार्य था। वह कार्य करने का प्रेमी था। ‘‘मुझे बड़ी बड़ी योजनाएं मत बताओ। जो मैं कर सकूं, वही मुझे चाहिए।’’ यही उसका उद्देश्य था।
शिवाजी की शिक्षा कितनी थी? अकबर ने कौन कौन सी डिग्री डिप्लोमा प्राप्त किये थे? महाराज रणजीत सिंह को एक नेत्र से कम दीखता था, पर अपनी अद्भुत कार्य करने की शक्ति के द्वारा उन्होंने प्रसिद्धि प्राप्त की थी।
अंग्रेजी में एक कहावत है ‘‘नर्क की सड़क उत्तम योजनाओं से परिपूर्ण है।’’ अभिप्राय यह है कि जो व्यक्ति सोचते बहुत हैं, वे उतना ही कम कार्य करते हैं। रावण के पास अमृत के घड़े रखे रहे किन्तु उस मूर्ख को उन्हें पान करने का अवकाश ही प्राप्त न हुआ। यदि वह उनका पान कर लेता, तो संभव था अमर हो जाता। वह अपने बल में विश्वास रखे निष्क्रिय जीवन व्यतीत करता रहा।
हेमलेट नामक राजकुमार की कठिनाई का वृत्तांत प्रत्येक व्यक्ति ने सुना है। ‘‘करूं या न करूं?’’ इसी दुविधा में वह सदैव फंसा रहा। एक पग भी आगे न बढ़ सका। उसका अधिक सोचना, योजनाएं बनाना व्यर्थ रहा। यही उसकी असफलता का एक बड़ा कारण बना। जो हेमलेट की समस्या थी, वही आज के अनेक व्यक्तियों की है। क्या लाभ है उस विचार से जिस पर काम न किया जाय? यह वैसा ही है, जैसा एक बीज, जो बंजर भूमि पर पड़ गया हो और अंकुरित न हो सका हो। यह वह पुष्प है, जो फड़ कर फल का उत्पादन नहीं करता। व्यर्थ ही खिल कर अपनी पंखुरियां इधर उधर छितरा देता है।
कार्य न करने वाला व्यक्ति एक प्रकार का शेखचिल्ली है। शेखचिल्ली कहता बहुत है, बड़ी बड़ी योजनाएं बनाता है, बढ़ बढ़ कर बातें करता है शब्दों के माया जाल की उसके पास न्यूनता नहीं होती। जिस कार्य में वह पीछे रहता है, वह उसका कार्य न करने की आदत है। कहेगा मन भर, और कार्य न करेगा रत्ती भर भी। बातें सम्पूर्ण दिन करा लीजिए किन्तु कार्य के नाम पर कुछ नहीं करेगा। जो व्यक्ति शेखचिल्ली टाइप के हैं, वे जहां के तहां हैं, निष्क्रिय, बेकार, कोरे बातूनी, जबानी जमा खर्च करने वाले। ऐसे व्यक्ति महान कार्य कदापि नहीं कर सकते।
आवश्यकता इस बात की है कि हम जो कुछ सोचें विचारें, या योजनाएं विनिर्मित करें, वे इस कार्य को निरुपन के दृष्टिकोण से करें। योजनाएं निर्माण करने से पूर्व सोचिए। ‘मैं जो बातें सोच रहा हूं, क्या में उनको कर सकूंगा? उनमें तथा मेरी शक्तियों में कितना अनुपात है? मैं अपनी सामर्थ्य के बाहर की बात तो नहीं सोच रहा हूं? कहीं मैं अपनी सामर्थ्य से दूर की योजना में तो नहीं फंस गया हूं? जो कार्य मैं, हाथ में लेकर चल रहा हूं, उसे करने के निमित्त मेरे पास क्या साधन हैं? मेरे पास कितना धन है? कितने मित्र बन्धु-बांधव इत्यादि हैं? मेरी आर्थिक, शारीरिक, धार्मिक, सामाजिक स्थिति कैसी है? इन प्रश्नों का पर्याप्त विचार करने के पश्चात् ही किसी बड़े कार्य में हाथ डालें।
किसी भी कार्य की पूर्ण सफलता के लिए इन नियमों को स्मरण रखिये—(1) जिस सफलता की हम आशा करते हैं, वह पहले हमारे मस्तिष्क में आनी चाहिए। जिस रूप में जो चीज आप प्राप्त करना चाहते हैं, वह वैसी ही स्पष्ट रूप में आपके मन क्षेत्र में स्पष्ट होनी चाहिए।
(2) आपकी जितनी मानसिक शारीरिक या क्रियात्मक शक्तियां हैं, उन्हें सम्मिलित रूप में कार्य करने दीजिए।
(3) जब तक आप अपनी समूची शक्तियों को उद्देश्य पर केन्द्रित नहीं करेंगे, तब तक आप अपनी शक्तियों से अधिकतम लाभ नहीं प्राप्त कर सकेंगे। मनुष्य में इधर उधर बहक जाने की आदत है। मन की यह भ्रान्ति ‘भंवरावृत्ति’ हमारी एक बड़ी कमजोरी है। इस पर विजय प्राप्त करने की असीम आवश्यकता है।
(4) मानसिक दृष्टि से सचेष्ट और जागृत व्यक्ति के साथ उसकी इन्द्रियां विशेषता दृष्टि और श्रवणेंद्रियां विशेष रूप से नियंत्रित होनी चाहिए।
(5) हमारी शक्तियों को संचालित करने वाली संकल्प शक्ति का विकास एवं संचालन मानसिक ट्रेनिंग में प्रथम वस्तु होनी चाहिये। संकल्प शक्ति ही वास्तविक मनुष्य है।
(6) इच्छानुसार एकाग्रता का संचालन करना सृजनात्मक शक्ति का प्रथम नियम है।
(7) यदि जाग्रत मन का उचित शिक्षण हो जाय, तो धीरे धीरे आन्तरिक मन भी उसी के अनुसार परिवर्तित हो जाता है।