हम बदलें तो दुनिया बदले

विरोधियों की उपेक्षा कीजिए

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नदी को सागर तक पहुंचने में अनेकों अवरोधों एवं रुकावटों का सामना करना पड़ता है। बड़ी-बड़ी चट्टानें उसके मार्ग में आती हैं और रुकावट डालती हैं। लेकिन इन अवरोधों से टकराकर नदी के प्रवाह में तेजी उत्तेजना पैदा होती है। यह अपने बहने के तारतम्य को नहीं तोड़ती और एक क्षण ऐसा आता है जब उन अवरोधों को अपने आप हट जाना पड़ता है नदी के मार्ग से, या उसके प्रवाह में टूट-टूट कर बह जाना पड़ता है।

मानव जीवन में भी अन्त तक अवरोधों का सामना करना पड़ता है। जितने उच्च लक्ष्य, कार्यक्रम होंगे उतने ही अनुपात में मनुष्य को विरोधों का सामना करना पड़ता है। इसलिए जीवन को संघर्षमय कहा गया है। कोई भी व्यक्ति अथवा समाज जब किसी महान् लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है तो दूसरे लोग अकारण ही विरोध करने लगते हैं, उससे मार्ग में रुकावट डालते हैं, उपहास करते हैं। प्रत्येक प्रगतिशील व्यक्ति को तो अवश्य ही अपने जीवन में इन तत्वों का सामना करना पड़ता है। किन्तु मनस्वी लोग इन विरोध, रुकावटों को ही अपनी प्रगति और सफलता की फसल के लिए खाद बना लेते हैं। कठिनाई और विरोध का अवसर आने से ही मनुष्य के पराक्रम और आत्म विश्वास का विकास होता है। विरोध उत्साहियों के उत्साह को कई गुना बढ़ा देता है। वस्तुतः विरोधी हमारी सहायता करता है क्योंकि उससे हमारे गुणों का विकास होता है। हममें उत्साह और आत्मस्फूर्ति की वृद्धि होती है।

बहुत से लोग विरोध के सामने आत्म-समर्पण कर बैठते हैं। हार मान लेते हैं और आगे बढ़ने के विचार ही छोड़ देते हैं। लेकिन यह एक मानसिक कमजोरी ही मानी जायगी। विरोध को अनुकूलता में ढाल लेना एक महत्वपूर्ण सफलता है। जो इस सीमा को पार कर लेते हैं वे जीवन में सफलता की मंजिल भी पार कर ही लेते हैं।

किसी भी शुभ कार्य को प्रारम्भ करते ही मनुष्य को दूसरे लोगों का उपहास का सामना करना पड़ता है। लोग कहने लगते हैं ‘‘अरे! यह क्या कर लेगा! बेकार दूसरों की नकल करता है। अपने पैर देखकर तो चलता नहीं’’ आदि-आदि। लोग व्यर्थ ही उसकी खिल्ली उड़ाने लगते हैं। बार-बार टोकते हैं। तरह-तरह से उपहास करते हैं। इस तरह मनुष्य को अपने कार्य के शुभारम्भ में ही भारी उपहास का सामना करना पड़ता है और बहुत से दुर्बल मन वाले लोग यहीं हारकर बैठ जाते हैं। उनका संकल्प, आकांक्षायें जन्म लेते ही मर जाती हैं।

जब कई दृढ़ संकल्प व्यक्ति इस तरह के उपहास की परवाह कर अपने प्रयत्न जारी रखते हैं तो प्रतिपक्षी लोग खुलकर विरोध करने लगते हैं, प्रगतिशील के मार्ग में रुकावटें डालते हैं विघ्न उपस्थित करते हैं। उसके आचरण, चरित्र पर आक्षेप करने लगते हैं। उसके सहयोगियों को बहकाते फुसलाते हैं। प्रत्यक्ष रूप में उल्टा-सीधा करते हैं। इस स्थिति में भी कई लोगों का धैर्य डगमगा जाता है और बहुत से लोग यहां आकर अपने पांव को पीछे हटा लेते हैं। अपने लक्ष्य और शुभ कार्य को छोड़ बैठते हैं।

ऐसे भी मनस्वी होते हैं जो इस तरह के विरोधों की परवाह कर एकाग्रता के साथ लक्ष्य की ओर बढ़ते रहते हैं और उनके अथक परिश्रम और लगन के कारण जब सफलता के आसार दीखने लगते हैं तो वे ही विरोधी, आलोचक अपनी सहानुभूति दिखलाने लगते हैं यहां तक कि वे लोग उनके साथ ही मिलते हैं। अधिकांश विरोधी-विरोध करना छोड़ देते हैं।

शुभ कार्यों में लगने वाले, उन्नति और विकास की ओर बढ़ने वालों के समक्ष एक ही मार्ग है दृढ़ता के साथ अपने लक्ष्य की ओर निरन्तर गतिशील रहना। एक बार शुभ लक्ष्य और उत्कृष्ट मार्ग का चुनाव कर फिर उस ओर निरन्तर आगे बढ़ते रहना कर्मवीर के लिए आवश्यक है। मार्ग में क्या-क्या मिलता है, किन अवरोधों का सामना करना पड़ता है, क्याक्या गुजरता है, इसकी परवाह किए बिना, उपहास, विरोध, आक्षेपों को सहन करते हुये जो अन्त तक लगा रहता है वह अपने लक्ष्य में सफलता भी मिले तो अपने सदुद्देश्य-लक्ष्य के लिये मर मिटना या असफल होना भी श्रेयस्कर है। तथ्य का प्रतिपादन करते हुए गीताकार ने कहा है

‘‘हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्ग

जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्

तस्मादुतिष्ठ कौन्तेय

युद्धाय कृत निश्चयः ।।’’

‘‘या तो मर कर स्वर्ग को प्राप्त होगा अथवा जीतकर पृथ्वी को भोगेगा, उससे हे अर्जुन! कृत-निश्चय होकर युद्ध के लिए तैयार हो।’’

निश्चय ही जीवन संग्राम में किसी विरोध उपहास या मोह से ग्रस्त होकर विरत हो जाना मनस्वी लोगों के लिये जीवित ही मृत्यु प्राप्त करने के समान है। उनके लिये एक ही रास्ता है अपने पथ पर आगे बढ़ते रहना। इससे परिणाम में प्राप्त होने वाली असफलता का ही दूसरा स्वरूप है। उससे मिलने वाला आत्म-सन्तोष सफलता से कम नहीं होता।

विरोध और विघ्नों से निपटने का दूसरा मार्ग है उनकी उपेक्षा करना। समाज में संकीर्ण प्रकृति के लोग, परम्परा के अन्धानुयायी, कूप मण्डूक लोगों की कमी नहीं होती। इन्हीं का वर्ग बड़ा होता है। यही कारण है कि सदा से नवीन पथ को खोज निकालने वाले, प्रगति और विकास के उपासकों को इन बहुसंख्यक लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा है। ऐसे लोग व्यर्थ ही ईर्ष्या द्वेष या अपने स्वार्थों से प्रेरित होकर सज्जनों के मार्ग में रोड़े अटकाते हैं, उन्हें भला-बुरा कहते हैं। मजाक उड़ाते हैं। किन्तु इसका एक ही समाधान है कि इस प्रकार के बुरे लोगों की प्रवृत्तियों को उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाय। उन्हें अपनी नीचता को प्रकट करने दीजिये लेकिन आप अपनी सज्जनता और शालीनता छोड़े। अपने मार्ग पर चलते रहें। वे लोग अपने आप ही थक कर बैठ जायेंगे। ऐसे लोगों से उलझने में आपकी शक्ति व्यर्थ ही नष्ट होगी।

वस्तुतः इस तरह के विरोधी बहुत ही छोटी बुद्धि के निम्नस्तर के लोग होते हैं जो अकारण ही जलते भुनते रहते हैं। बुद्धिमान मनुष्य को सदा ही उनके आचरण और हाव भावों की उपेक्षा ही करनी चाहिये।


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