दिव्य शक्तियों का उद्भव प्राणशक्ति से

अतीन्द्रिय सामर्थ्यों का मूल स्रोत—प्राणमय कोश

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मलाया के राजा ‘परमेसुरी अगोंग’ की पुत्री राजकुमारी शरीफा साल्वा के विवाह की तैयारियां बहुत धूम-धाम से की गईं। उत्सव बहुत शानदार मनाया जाना था। किन्तु विवाह के दिन घनघोर वर्षा आरम्भ हो गई और सर्वत्र पानी ही पानी भरा नजर आने लगा। अब उत्सव का क्या हो? निदान रहमान नामक एक तान्त्रिक महिला राजकीय सम्मान के साथ बुलाई गई और उससे वर्षा रोकने के लिए कुछ उपाय, उपचार करने के लिए कहा गया। फलतः एक आश्चर्यचकित करने वाला प्रतिफल यह देखा गया कि पानी तो उस क्षेत्र में बरसता रहा, पर समारोह के लिये जितनी जगह नियत थी उस पर एक बूंद भी पानी नहीं गिरा और उत्सव अपने निर्धारित क्रम के अनुसार ठीक तरह सम्पन्न हो गया। ठीक ऐसी ही एक और भी घटना उस देश में सन् 1964 में हुई थी। उन दिनों राष्ट्र मण्डलीय क्रिकेट दल खेलने आया था और उसे देखने के लिए भारी भीड़ उपस्थित थी। दुर्भाग्य से नियत समय पर भारी वर्षा आरम्भ हो गई। कुआलालम्पुर नगर पर घनघोर घटायें बरस रही थीं। अब खेल का क्या हो? मैदान पानी से भर जाने पर तो सूखना बहुत दिनों तक सम्भव नहीं हो सकता था। इस विपत्ति से बचने का उपाय वहां के तान्त्रिकों की सहायता लेना उचित समझा गया। अस्तु मलाया क्रिकेट ऐसोसिएशन के अध्यक्ष ने आग्रहपूर्वक रेम्वाऊ के जाने-माने तान्त्रिक को बुलाया, उसका प्रयोग भी चकित करने वाला रहा, क्रिकेट के मैदान पर एक अदृश्य छतरी तन गई और वहां एक बूंद भी न गिरी जबकि चारों ओर भयंकर वर्षा के दृश्य दिखाई देते रहे।

एक और तीसरी घटना भी अन्तर्राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनी रही है। ‘दि ईयर ऑफ दि ड्रेगन’ फिल्म की शूटिंग वहां चल रही थी, जिस दिन प्रधान शूटिंग होनी थी उसी दिन वर्षा उमड़ पड़ी, इस अवसर पर भी अब्दुल्ला बिन उमर नाम के तान्त्रिक की सहायता ली गई और शूटिंग क्षेत्र पूरे समय वर्षा से बचा रहा। ‘द रायल एस्ट्रोनामिकल सोसाइटी’ के तत्कालीन अध्यक्ष तथा अन्य प्रमुख लोगों ने श्री डेनियल डगलस होम की विलक्षण कलाबाजियों का आंखों देखा विवरण लिखा है। प्रख्यात वैज्ञानिक रेडियो मीटर के निर्माता, थीलियम व गोलियम के अन्वेषक सर विलियम क्रुक्स ने भी श्री डेनियस डगलस होम का बारीकी से अध्ययन कर उन्हें चालाकी से रहित पाया था।

इन करिशमों में हवा में ऊंचे उठ जाना, हवा में चलना और तैरना, जलते हुए अंगारे हाथ में रखना आदि हैं। सर विलियम क्रुक्स अपने समय के शीर्षस्थ रसायनशास्त्री थे। उन्होंने भली-भांति निरीक्षण कर श्री डी.डी. होम की हथेलियों की जांच की, उनमें कुछ भी लगा नहीं था। हाथ मुलायम और नाजुक थे। फिर श्री क्रुक्स के देखते-देखते श्री डी.डी. होम ने धधकती अंगीठी से सर्वाधिक लाल चसकदार कोयला उठाकर अपनी हथेली में रखा और रखे रहे। उनके हाथ में छाले, फफोले कुछ भी नहीं पड़े।

‘रिपोर्ट आफ द डायलेक्टिल सोसायटीय कमेटी आफ स्पिरिचुअलिज्म’ में लार्ड अडारे ने भी श्री होम का विवरण दिया है। आप ने बताया कि एक ‘सियान्स’ में वे आठ व्यक्तियों के साथ उपस्थित थे। श्री डी.डी. होम ने दहकते अंगारे न केवल अपनी हथेलियों पर रखे, बल्कि उन्हें अन्य व्यक्तियों के भी हाथों में रखाया। 7 ने तो तनिक भी जलन या तकलीफ के बिना उन्हें अपने हाथ में रखा। इनमें से 4 महिलायें थीं। दो अन्य व्यक्ति उसे सहन नहीं कर सके। लार्ड अडारे ने ऐसे अन्य अनेक अनुभव भी लिखे हैं जो श्री होम की अति मानसिक क्षमताओं तथा अदृश्य शक्तियों से उनके सम्बन्ध पर प्रकाश डालते हैं। इनमें अनेक व्यक्तियों की उपस्थिति में कमरे की सभी वस्तुओं का होम की इच्छा मात्र से थरथराने लगना, किसी एक पदार्थ (जैसे टेबल या कुर्सी आदि) का हवा में 4-6 फुट ऊपर उठ जाना और होम की इच्छित समय तक वहां उनका लटके रहना, टेबल के उलटने-पलटने के बाद भी उस पर सामान्य रीति से रखा संगमरमर का पत्थर और कागज पेंसिल का यथावत् बने रहना आदि हैं।

सर विलियम क्रुक्स ने भी एक सुन्दर हाथ के सहसा प्रकट होने, होम के बटन में लगे फूल की पत्ती को उस हाथ द्वारा तोड़े जाने किसी वस्तु के हिलने, उसके इर्द-गिर्द चमकीले बादल बनने और फिर उस बादल को स्पष्ट हाथ में परिवर्तित होने तथा उस हाथ को स्पर्श करने पर कभी बेहद दर्द, कभी उष्ण और शीतल लगने आदि के विवरण लिखे हैं।

अमरीका के एक मनोविज्ञानशास्त्री डा. राल्फ एलेक्जेण्डर ने पराशक्ति जागृत करके बादलों को इच्छानुसार हटाने और पैदा कर देने का प्रयोग किया है। वे बहुत वर्षों से मन को एकाग्र कर उसकी शक्ति से बादलों को प्रभावित करने का प्रयोग कर रहे थे। 1951 में उन्होंने मेक्सिको सिटी में 12 मिनट के भीतर आकाश में कुछ बरसाती बादल जमा कर दिये। उस अवसर पर कई स्थानों के वैज्ञानिक और अन्य विद्वान् वहां इकट्ठे थे। पर डा. एलेक्जेण्डर की शक्ति के सम्बन्ध में उनमें मतभेद बना रहा तो भी सबने यह स्वीकार किया कि जब आकाश में एक भी बादल न था, तब दस-बारह मिनट में बादल पैदा हो जाना और थोड़ी बूंदा-बांदी भी हो जाना आश्चर्य की बात अवश्य है। इसलिये डा. एलेक्जेण्डर ने फिर ऐसा प्रयोग करने का निश्चय किया, जिसमें किसी प्रकार का सन्देह न रहे। उन्होंने कहा कि ‘वे आकाश में मौजूद बादलों में से जिसको दर्शक कहेंगे, उसी को अपनी इच्छा-शक्ति से हटाकर दिखा देंगे।’ इसके लिये ओण्टेरियो ओरीलियो नामक स्थान में 12 सितम्बर 1954 को एक प्रदर्शन किया गया। उसमें लगभग 50 वैज्ञानिक, पत्रकार तथा नगर के बड़े अधिकारी इस चमत्कार को देखने के लिये इकट्ठे हुये। नगर का मेयर (नगरपालिकाध्यक्ष) भी विशेष रूप से बुलाया गया, जिससे इस प्रयोग की सफलता में किसी को सन्देह न हो। यह भी व्यवस्था की गई कि जब बादलों को गायब किया जाय तो कई बहुत तेज कैमरे उनका चित्र उतारते रहें। इसकी आवश्यकता इसलिये बड़ी कि कुछ लोगों का ख्याल था कि डा. एलेक्जेण्डर दर्शकों पर ‘सामूहिक हिप्नोटिज्म’ का प्रयोग करके ऐसा दृश्य दिखा देते हैं, वास्तव में बादल हटता नहीं। इससे मनुष्य का मन भ्रम में पड़ सकता है, पर तब ऑटोमेटिक कैमरा उस दृश्य का चित्र उतार लेगा, तो सन्देह की गुंजाइश ही नहीं रहेगी। कैमरे के चित्र में तो वही बात आयेगी, जो उसके सामने होगी। आगे की घटना के विषय में एक स्थानीय समाचार-पत्र ‘दी डेली पैकेट एण्ड टाइम्स’ ने जो विवरण प्रकाशित किया वह इस प्रकार है—

‘जब लोग इकट्ठे हो गये, तो डा. एलेक्जेण्डर ने उनसे कहा कि वे स्वयं एक बादल चुन लें, जिसको गायब कराना चाहते हों। क्षितिज के पास बहुत से बादल थे। उनके बीच-बीच में आसमान भी झलक रहा था। उनमें बादलों की एक पतली-सी पट्टी काफी घनी और अपनी जगह पर स्थिर थी। उसी को प्रयोग का लक्ष्य बनाया गया। कैमरे ने उसकी कई तस्वीरें उतार लीं।’

‘डा. एलेक्जेण्डर ने थोड़ी देर प्राणायाम किया, भौंहें सिकोड़ी (त्राटक की क्रिया की) और टकटकी लगाकर बादलों की उसी पट्टी की ओर देखने लगे। अकस्मात् उन बादलों में एक विचित्र परिवर्तन दिखाई पड़ने लगा। बादलों की वह पट्टी चौड़ी होने लगी और फिर धीरे-धीरे पतली होने लगी। कैमरे चालू थे और हर सैकिण्ड में एक तस्वीर उतारे जा रहे थे। मिनट पर मिनट बीतते गये, पट्टी और पतली पड़ने लगी, उनका घनत्व भी कम होने लगा। धीरे-धीरे ऐसा लगने लगा मानो कोई रुई को धुन-धुन कर अलग कर रहा है। आठ मिनट के भीतर सब लोगों ने देखा कि वह पट्टी आसमान से बिल्कुल गायब हो गई है, जबकि आस-पास के बादल जहां के तहां स्थिर रहे।’

‘लोगों की आंखें आश्चर्य से फटी जा रही थीं। पर डा. एलेक्जेण्डर स्वयं अभी सन्तुष्ट नहीं थे। हो सकता है, कुछ लोग यह समझें कि यह सिर्फ दैवयोग की बात है। बादल तो बनते-बिगड़ते ही रहते हैं। उन्होंने लोगों से फिर किसी दूसरे बादल का चुनाव करने को कहा और फिर कैमरे उस नये बादल पर केन्द्रित कर दिये गये। उस दिन तीन बार यही प्रयोग हुआ और तीनों बार डॉक्टर एलेक्जेण्डर ने सफलतापूर्वक बादलों को गायब कर दिया। जब कैमरे की फिल्में साफ की गईं और फोटो निकाले गये तो देखा कि हर बार बादलों का गायब होना उनमें पूरी तरह उतर आया है तब वहां के प्रमुख अखबार ने इस समाचार को ‘क्लाउड डेस्ट्रायड बाई डॉक्टर’ (बादल—डॉक्टर द्वारा नष्ट किये गये) का बहुत बड़ा हैडिंग देकर प्रकाशित किया।

अमरीका में इस विद्या को ‘साइकोकिनासिस’ अथवा पी.के. कहते हैं और इसका अभ्यास करने वालों का दावा है कि कुछ समय पश्चात् वे इसके द्वारा बदलो को ही नहीं अन्य अनेक पदार्थों को भी इधर-उधर कर सकेंगे।

इंग्लैंड के अति चमत्कारी जादूगर राबर्ट हडची की सौवीं वर्ष गांठ मनाई गई। अपने समय का वह अद्भुत व्यक्ति था। उसके जीवनकाल में इंग्लैंड के प्रसिद्ध दैनिक पत्र ‘डेली मिरर’ ने उसकी चमत्कारी शक्ति पर कई प्रकार के लांछन लगाये थे और आशंका प्रकट की थी। राबर्ट ने उन्हें चुनौती दी फलस्वरूप परीक्षण के समय उसने यह करतब सबके सामने दिखाया कि पूरी सावधानी और मजबूती के साथ हथकड़ी बेड़ियों में जकड़ा गया पर वह दो मिनट में ही उन्हें कच्चे धागे की तरह तोड़कर फेंकने में सफल हो गया। कमरे में बन्द करके बाहर से ताला लगा देने पर भी वह सबके सामने बाहर निकल आया। सुरंगों में बन्द करके बाहर से छेद पूरी तरह बन्द कर दिये जाने पर भी वह बाहर निकला, तब भी उसने उस अवरोध को तोड़कर सबके सामने उपस्थित होने में सफलता पाई। यह सब कैसे सम्भव हो सका उसका रहस्योद्घाटन उसकी शताब्दी के अवसर पर उस वसीयत द्वारा होगा जो उसने इसी अवसर पर सर्वसाधारण की जानकारी के लिए लिखकर अपने जीवनकाल में ही रखदी थी।

‘वाराणसी की गलियों में एक दिगम्बर योगी घूमता रहता है। गृहस्थ लोग उसके नग्न वेश पर आपत्ति करते हैं फिर भी पुलिस उसे पकड़ती नहीं’, वाराणसी पुलिस की इस तरह की तीव्र आलोचनायें हो रही थीं आखिर वारंट निकालकर उस नंगे घूमने वाले साधु को जेल में बन्द करने का आदेश दिया गया।पुलिस के आठ-दस जवानों ने पता लगाया, मालूम हुआ वह योगी इस समय मणिकर्णिका घाट पर बैठा हुआ है। जेष्ठ की चिलचिलाती दोपहरी जब कि घर से बाहर निकलना भी कठिन होता है एक योगी को मणिकर्णिका घाट के एक जलते तवे की भांति गर्म पत्थर पर बैठे देख पुलिस पहले तो सकपकायी पर आखिर पकड़ना तो था ही वे आगे बढ़े। योगी पुलिस वालों को देखकर ऐसे मुस्करा रहा था मानो वह उनकी सारी चाल समझ रहा हो। साथ ही वह कुछ इस प्रकार निश्चिन्त बैठे हुए थे मानो वह वाराणसी के ब्रह्मा हों किसी से भी उन्हें भय न हो। मामूली कानूनी अधिकार पाकर पुलिस का दरोगा जब किसी से नहीं डरता तो अनेक सिद्धियों सामर्थ्यों का स्वामी योगी भला किसी से भय क्यों खाने लगा तो भी उन्हें बालकों जैसी क्रीड़ा का आनन्द लेने का मन तो करता ही है यों कहिये आनन्द की प्राप्ति जीवन का लक्ष्य है बाल सुलभ सरलता और क्रीड़ा द्वारा ऐसे ही आनन्द के लिए ‘श्री तैलंगस्वामी’ नामक यह योगी भी इच्छुक रहे हों तो क्या आश्चर्य?

पुलिस मुश्किल से दो गज पर थी कि तैलंग स्वामी उठ खड़े हुए और वहां से गंगाजी की तरफ भागे। पुलिस वालों ने पीछा किया। स्वामीजी गंगाजी में कूद गये। पुलिस के जवान बेचारे वर्दी भीगने के डर से कूदे तो नहीं, हां चारों तरफ से घेरा डाल दिया। कभी तो निकलेगा साधु का बच्चा— लेकिन एक घन्टा, दो घन्टा, तीन घन्टा—सूर्य भगवान् सिर के ऊपर थे अब अस्ताचलगामी हो चले किन्तु स्वामीजी प्रकट न हुए। कहते हैं उन्होंने जल के अन्दर ही समाधि ले ली। उसके लिए उन्होंने एक बहुत बड़ी शिला पानी के अन्दर फेंक रखी थी और यह जनश्रुति थी कि तैलंग स्वामी पानी में डुबकी लगा लेने के बाद उसी शिला पर घन्टों समाधि लगाये जल के भीतर ही बैठे रहते हैं। उनको किसी ने कुछ खाते नहीं देखा तथापि उनकी आयु 300 वर्ष की बताई जाती है। वाराणसी में घर-घर तैलंग स्वामी की अद्भुत कहानियां आज भी प्रचलित हैं। निराहार रहने पर भी प्रति वर्ष उनका वजन एक पौंड बढ़ जाता था। 300 पौंड वजन था उनका जिस समय पुलिस उन्हें पकड़ने गई। इतना स्थूल शरीर होने पर भी पुलिस उन्हें पकड़ न सकी। आखिर जब रात हो चली तो सिपाहियों ने सोचा डूब गया शायद इसलिये वे दूसरा प्रबन्ध करने थाने लौट गये इस बीच अन्य लोग बराबर खड़े तमाशा देखते रहे पर तैलंग स्वामी पानी के बाहर नहीं निकले।

प्रातःकाल पुलिस फिर वहां पहुंची। स्वामीजी इस तरह मुस्करा रहे थे मानो उनके जीवन में सिवाय मुस्कान और आनन्द के और कुछ हो ही नहीं, शक्ति तो आखिर शक्ति ही है संसार में उसी का ही तो आनन्द है। योग द्वारा सम्पादित शक्तियों का स्वामीजी रसास्वादन कर रहे हो तो आश्चर्य क्या। इस बार भी जैसे ही पुलिस पास पहुंची तैलंग स्वामी फिर गंगाजी की ओर भागे और उस पार जा रही नाव के मल्लाह को पुकारते हुए पानी में कूद पड़े। लोगों को आशा थी कि स्वामीजी कल की तरह आज भी पानी के अन्दर छुपेंगे और जिस प्रकार मेढ़क मिट्टी के अन्दर और उत्तराखण्ड के रीछ बर्फ के नीचे दबे बिना श्वांस के वर्षों पड़े रहते हैं उसी प्रकार स्वामीजी भी पानी के अन्दर समाधि ले लेंगे किन्तु यह क्या जिस प्रकार से वायुयान दोनों पंखों की मदद से इतने सारे भार को हवा में सन्तुलित कर तैरता चला जाता है उसी प्रकार तैलंग स्वामी पानी में इस तरह दौड़ते हुए भागे माने वह जमीन पर दौड़ रहे हों। नाव उस पार पहुंच नहीं पाई, स्वामीजी पहुंच गये। पुलिस खड़ी देखती रह गई।

स्वामीजी ने सोचा होगा कि पुलिस बहुत परेशान हो गई तब तो वह एक दिन पुनः मणिकर्णिका घाट पर प्रकट हुए और अपने आप को पुलिस के हवाले कर दिया। हनुमानजी ने मेघनाद के सारे अस्त्र काट डाले किन्तु जब उसने ब्रह्म-पाश फेंका तो वे प्रसन्नतापूर्वक बंध गये। लगता है श्री तैलंग स्वामीजी भी सामाजिक नियमोपनियमों की अवहेलना नहीं करना चाहते थे पर यह प्रदर्शित करना आवश्यक भी था कि योग और अध्यात्म की शक्ति भौतिक शक्ति से बहुत चढ़ बढ़कर है तभी तो वे दो बार पुलिस को छकाने के बाद इस प्रकार चुपचाप ऐसे बैठे रहे मानो उनको कुछ पता भी न हो। हथकड़ी डाल कर पुलिस तैलंग स्वामी को पकड़कर ले गई और हवालात में बन्द कर दिया। इन्सपेक्टर रात गहरी नींद सोया क्योंकि उसे स्वामीजी की गिरफ्तारी मार्के की सफलता लग रही थी।

प्रस्तुत घटना ‘मिस्ट्रीज आफ इण्डिया एण्ड इट्स योगीज’ नामक लुई न कार्टा लिखित पुस्तक से उद्धृत की जा रही है। कार्टा नामक फ्रांसीसी पर्यटक ने भारतवर्ष में ऐसी विलक्षण बातों की सारे देश में घूम-घूमकर खोज की। प्रसिद्ध योगी स्वामी योगानन्द ने भी उक्त घटना का वर्णन अपनी पुस्तक ‘ओटो बाई ग्राफी आफ योगी’ के 31वें परिच्छेद में किया है।

प्रातःकाल ठण्डी हवा बह रही थी। थानेदार साहब हवालात की तरफ आगे बढ़े तो शरीर पसीने में डूब गया—जब उन्होंने योगी तैलंग को हवालात की छत पर मजे से टहलते और वायु सेवन करते देखा। हवालात के दरवाजे बन्द थे, ताला भी लग रहा था। फिर यह योगी छत पर कैसे पहुंच गया? अवश्य ही सन्तरी की बदमाशी होगी। उन बेचारे सन्तरियों ने बहुतेरा कहा कि हवालात का दरवाजा एक भी क्षण को खुला नहीं फिर पता नहीं साधु महोदय छत पर कैसे पहुंच गये। वे इसे योग की महिमा मान रहे थे पर इन्सपेक्टर उसके लिए बिलकुल तैयार नहीं था। आखिर योगी को फिर हवालात में बन्द कर दिया गया। रात दरवाजे में लगे ताले को सील किया गया। चारों तरफ पहरा लगा और ताली लेकर थानेदार थाने में ही सोया। सवेरे बड़ी जल्दी कैदी की हालत देखने उठे तो फिर शरीर में काटो तो खून नहीं। सील बन्द ताला बा-कायदा बंद। सन्तरी पहरा भी दे रहे जस पर भी तैलंग स्वामी छत पर बैठे प्राणायाम का अभ्यास कर रहे। थानेदार की आंखें खुली की खुली रह गईं उसने तैलंग स्वामी को आखिर छोड़ ही दिया।

श्री तैलंग स्वामी के बारे में कहा जाता है कि जिस प्रकार जलते हुए तेज कड़ाहे में खौल रहे तेल में पानी के छींटे डाले जायें तो तेल की ऊष्मा उसे भाप बनाकर पलक मारते दूर उड़ा देती है उसी प्रकार विष खाते समय एक तक बार आंखें जैसी झपकतीं पर न जाने कैसी आग उनके भीतर थी कि विष का प्रभाव कुछ ही देर में पता नहीं चलता कहां चला गया। एक बार एक आदमी को शैतानी सूझी चूने के पानी को ले जा कर स्वामीजी के सम्मुख रख दिया और कहा महात्मन! आपके लिए बढ़िया दूध लाया हूं स्वामीजी उठाकर पी गये उस चूने के पानी को, और अभी कुछ ही क्षण हुए थे कि कराहने और चिल्लाने लगा वह आदमी जिसने चूने का पानी पिलाया था। स्वामीजी के पैरों में गिरा, क्षमा याचना की तब कहीं पेट की जलन समाप्त हुई। उन्होंने कहा भाई मेरा कसूर नहीं यह तो न्यूटन का नियम है कि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया अवश्य है। उसकी दशा उल्टी और ठीक क्रिया की ताकत जितनी होती है।

मनुष्य शरीर एक यन्त्र, प्राण उसकी ऊर्जा, ईंधन उसकी शक्ति, मन इंजन और ड्राइवर चाहे जिस प्रकार के अद्भुत कार्य लिए जा सकते हैं इस शरीर से भौतिक विज्ञान से भी अद्भुत पर यह सब शक्तियां और सामर्थ्य योगविद्या, योगसाधना में सन्निहित हैं जिन्हें अधिकारी पात्र ही पाते और आनन्दलाभ प्राप्त करते हैं।

अंग्रेजी भाषा की वैज्ञानिक पत्रिकायें ‘नेचर’ और ‘न्यू साइन्टिस्ट’ विश्व विख्यात हैं। उनका सम्पादन और प्रकाशन विश्व के मूर्धन्य वैज्ञानिकों द्वारा होता है और उसमें प्रकाशित विवरणों को खोज युक्त एवं तथ्यपूर्ण माना जाता है। इन्हीं पत्रिकाओं में ‘यूरीगेलर’ के शरीर में पाई गई अतीन्द्रिय शक्ति के प्रामाणिक विवरण विस्तारपूर्वक छपे हैं।

यूरीगेलर अभी मात्र 30 वर्ष का है। उसका जन्म 20 दिसम्बर 1946 में तेलअबीब में हुआ। उसकी माता जर्मन से थीं। जब वह युवक साइप्रस में पढ़ता था तभी उसने अपने में कुछ विचित्रताएं पाईं और उन्हें बिना किसी संकोच या छिपाव के अपने परिचितों को बताया दिखाया। जब वह घड़ियों के निकट जाता तो सुइयां अकारण ही अपना स्थान छोड़कर आगे-पीछे हिलने लगतीं। स्कूल के छात्रों के सामने उसने अपनी दृष्टि मात्र से धातुओं की बनी चीजों को मोड़कर ही नहीं तोड़कर भी दिखाया।

उसने खुले मैदान में बिना किसी पर्दे या जादुई लाग लपेट के—हर प्रकार के सन्देहों का निवारण का अवसर देते हुए अनेक प्रदर्शन किये हैं। किसी को किसी चालाकी की आशंका हो तो वह यह अवसर देता है कि तथ्य को किसी भी कसौटी पर जांच लिया जाय। उसे जादूगरों जैसे करिश्मे दिखाने का न तो अभ्यास है न अनुभव। ‘सम्मोहन’ कला उसे नहीं आती। जो भी वह करता है स्पष्टतः प्रत्यक्ष होता है। स्टैनफोर्ड रिसर्च इन्स्टीट्यूट द्वारा आयोजित परीक्षण गोष्ठियों में मूर्धन्य वैज्ञानिकों के सम्मुख वह अपनी कड़ी परीक्षा में पूर्णतया सफल होता रहा है। जर्मनी और इंग्लैंड के प्रतिष्ठित पत्रकारों के सम्मुख उसने अपनी विशेषता प्रदर्शित की है और टेलीविजन पर उसके प्रदर्शनों को दिखाया गया है।

यूरीगेलर दूर तक अपनी चेतना को फेंक सकता है। वहां की स्थिति जान सकता है। इतना ही नहीं प्रमाण स्वरूप वहां की वस्तुओं को भी लाकर दिखा सकता है। उससे जब ब्राजील जाने और वहां की कोई वस्तु लाने के लिए कहा गया तो उसने वैसा ही किया और वहां का विवरण सुनाने के साथ-साथ ब्राजील में चलने वाले नोटों का एक बण्डल भी सामने लाकर रख दिया।

फिलाइलफिया के दो वैज्ञानिकों के एक कक्ष में गैलर को मुलाकात देनी थी। उन प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के नाम हैं—आर्थर यंग और टेडबास्टिन। इन दोनों के सम्मुख भेंट देकर जब वे जीने से उतर कर नीचे की मंजिल में आये तो ऊपर के कमरे में रखी भारी मूर्ति भी नीचे उतर आई और उसके कन्धे पर बैठ गई। सन् 1971 में वे ओसीनिंग न्यूयार्क निवासी एक सज्जन पुहरिख के साथ सिनाई रेगिस्तान की सैर पर गये थे। उन सज्जन के मूवी कैमरे का खोल अमेरिका ही रह गया था। फलतः फोटो खींचते समय लेंस के इर्द-गिर्द धूल जमती और कठिनाई उत्पन्न होती थी। गैलर ने ढक्कन रखे होने का स्थान पूछा और देखते-देखते अमेरिका से कैमरे का खोल वहीं मंगा दिया।

पूछने पर गैलर ने बताया है कि यह क्षमता उन्हें बिना किसी प्रयास के अनायास ही मिली है। इन प्रदर्शनों में उन्हें तन्त्र-मन्त्र आदि कुछ नहीं करना पड़ता। अदृश्य दर्शन के समय वे अपनी दृष्टि सीमित रखने के लिए एक साधारण-सा पर्दा खड़ा कर लेते हैं और उसी पर उतरते चित्रों को टेलीविजन की तरह देखते रहते हैं।

वह मेज पर रखे हुए धातुओं के बने मोटे उपकरणों को दृष्टि मात्र से मोड़ देने या तोड़ देने की विद्या में विशेष रूप से निष्णात् है। ऐसे प्रदर्शन वह घण्टों करता रह सकता है। सन् 1969 में उसने आंखों से मजबूत पट्टी बंधवा कर और ऊपर से सील कराकर इसराइल की सड़कों पर मोटर चलाई थी।

उसकी अदृश्य दर्शन की शक्ति भी अद्भुत है। उसकी माता को जुए का चस्का था। जब वह घर लौटती तो गैलर अपने आप ही बता देता कि वह कितना पैसा जीती या हारी है।

इसकी अतीन्द्रिय विशेषताओं का परीक्षण वैज्ञानिकों और अन्वेषकों की मण्डलियों के समक्ष कितनी ही बार हुआ है और वह निर्भ्रान्त सिद्ध हुआ है।

25 मार्च सन् 1909 की घटना है। मनोविज्ञान शास्त्र के पितामह फ्रायड से मिलने के लिए उनके समकालीन मनःशास्त्री जुंग गये। चर्चा का विषय परा मानसिक शक्ति का प्रभाव था। फ्रायड इस तरह की किसी विशेष मानसिक क्षमता पर विश्वास नहीं करते थे। जुंग ने क्षमता के पक्ष समर्थन में अपनी क्षमता का एक विशेष प्रदर्शन किया। फ्रायड के कमरे में रखी वस्तुएं इस तरह थर-थर्राने लगीं मानो कोई तूफान उनकी उठक-पटक कर रहा हो। पुस्तकों की अलमारी में पटाखा फूटने जैसा धमाका हुआ। इससे फ्रायड चकित रह गये और उन्होंने अपनी असहमति का तुरन्त परित्याग कर दिया।

उपरोक्त घना का उल्लेख डा. नन्डोर फोदोर ने अपने ग्रन्थ ‘बिटविन टू वर्ल्डस’ पुस्तक में किया है।

यह घटनायें ऐसी हैं जिन्हें थोड़े व्यक्तियों ने प्रत्यक्षतः देखा होगा अधिसंख्य वर्ग के लिये यह परीकथाओं जैसा विवरण किंवदन्ती या श्रद्धाभूत चमत्कार ही हो सकता है। कुछ लोग ऐसे भी हो सकते, जो इन बातों को निराधार और अवैज्ञानिक कहकर नकार दें यह तभी होगा जब ऐसे व्यक्तियों को इस तरह की अतीन्द्रिय घटनाओं की आधार भूत सत्यता की विज्ञान की जानकारी न हो। वास्तव में प्राण विद्या और उससे बनने वाले सूक्ष्म शरीर की जिसे तनिक भी जानकारी होगी वह इस तरह की सामर्थ्यों को कभी भी न तो अन्धश्रद्धा कहेगा न अवैज्ञानिक, इन अतीन्द्रिय चमत्कारों की आधार-भूत शक्ति इतनी समर्थ है कि उसकी तुलना में यह चमत्कार कुछ भी नहीं।

अन्तर्निहित प्रकाश और उसकी अपार शक्ति

आतिशी शीशे के द्वारा प्रकाश किरणें एक स्थान पर इकट्ठी कर दी जायें, तो उससे आग उत्पन्न हो उठती है—प्रकाश में अग्नि समाहित है ऊर्जा है, विद्युत है—इन शक्तियों की महत्ता हर कोई जानता है। किरणों की ही जादूगरी है कि शरीर जैसे जटिल यन्त्र के भीतरी कल पुर्जों की खराबी ज्ञात कर ली जाती है। एक्स-किरणों से आज सभी कोई परिचित है।

1964 में पहली बार अमेरिकी वैज्ञानिक डा. चार्ल्स टाउन ने यह सिद्ध कर दिया—प्रकाश इससे भी अद्भुत और चमत्कारिक तत्व है। अल्म्यूनियम के ऑक्साइड लाल (एक प्रकार का रत्न) जिसमें हलकी सी मात्रा क्रोमियम की भी विद्यमान रहती है इस लाल द्वारा साधारण सी किरणों को जब उन्होंने ‘‘लेजर किरणों’’ में परिवर्तित किया, तो उनकी अपार शक्ति प्रकट हो गई। उद्देश्यहीन विचारों और शेख चिल्ली की कल्पनाओं से जिस तरह कोई उल्लेखनीय काम नहीं हो पाते उसी प्रकार छितरे हुये प्रकाश कण भी अशक्त और निष्प्रयोजन ही मारे-मारे फिरते हैं चार्ल्स टाउन ने इन्हें संसक्त कर दिया तो उनकी शक्ति अपरिचित हो उठी। आज यही संसक्त लेजर किरणें संसार के आठवें आश्चर्य के रूप में गिनी जाती हैं। उसके लिये चार्ल्स टाउन को ‘‘नोबुल पुरस्कार’’ से भी अलंकृत किया गया। यद्यपि इन किरणों को 1960 में थ्यूडार साइमन वैज्ञानिक ने भी खोज लिया। सम्भव है उपयोग की प्रक्रिया न बता पाने के कारण नोबुल पुरस्कार उसे न दिया गया हो।

लेजर किरणों की शक्तिमत्ता के बारे में कहीं किसी में दो राये नहीं। अमरीका ने एक ऐसा यन्त्र बनाया है जो एक ही लेजर किरण से 50 करोड़ वाट क्षमता की विद्युत शक्ति उत्पन्न करता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि यह किरण अत्यन्त बारीक और पतली होती है फैली हुई, किरणों को नियमित करने और उन्हें एक स्थान पर अनुशासित करने में एक ऐसे शीशे के लेन्स का उपयोग किया जाता है जिसका व्यास एक सेन्टीमीटर के हजारवें भाग जितना छोटा है। यदि इससे भी सूक्ष्म किया जाये तो इनकी शक्ति और भी भयंकर हो सकती है।

इस शक्ति का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस कार्बन को पिघलाकर भाप बनाने में घण्टों लगते हैं लेजर किरणें उसे सेकिण्ड के दस लाखवें हिस्से जितने कल्पनातीत समय में ही वाष्पीभूत कर देती हैं—यह छू-मन्तर की तरह है और यह सोचने को विवश करता है कि भारतीय योगी ही नहीं अन्य देशों के सिद्ध महापुरुष भी पल में किसी को अच्छा कर देते हैं, मारण मोहन उच्चाटन और दूर श्रवण, दूर दर्शन आदि आश्चर्यजनक शक्तियों से ओत-प्रोत होते उसमें क्या मानवीय चेतना इस प्रकाश तत्व का ही तो उपयोग नहीं करती?

हीरा अत्यन्त कठोर धातु है उसे काटना और छेदना कठिन काम है—लेजर किरणें हीरे को—1/50000 सेकिण्ड में छेद सकती हैं अर्थात् यदि 50000 हीरे एक पंक्ति में रख दिये जायें और उनके एक छोर से लेजर किरण प्रवेश करा दी जाये तो वह एक सेकिण्ड में ही 50000 हीरों को छेद कर रख देगी। सौ इंच व्यास की मोटी लकड़ी को आरा कई घण्टों में काटेगा लेजर उसे कुल 1/7 सेकिण्ड में काट देगा।

प्रकाश की इस संगठित अनुशासिक शक्ति का लाभ आंखों के ऐसे आपरेशन में भी मिला जिनमें अस्त्र-शस्त्र तो छुये भी नहीं जा सकते। इस विधि द्वारा प्रकाश की किरणें ही आंख में प्रविष्ट करादी जाती हैं और वह सूक्ष्म से सूक्ष्म आपरेशन कर देती हैं। कहते हैं महाभारत काल में ऐसे आयुध थे जो यन्त्र शक्ति द्वारा चलाये जाते थे और वे इच्छानुसार काम करते थे जबकि उनका कोई स्थूल रूप सामने नहीं आया करता था—नारायण अस्त्र, पाशुपत अस्त्र, चक्र-सुदर्शन, वरुणास्त्र आदि इसी कोटि के थे। अब तक महाभारत कालीन इन शक्तियों के सिद्धान्तों को सम्भव है अतिशयोक्ति माना जाता रहा है पर लेजर गनों ने अब यह बात सिद्ध कर दी कि ऐसे यन्त्र और ऐसी सिद्धियां मात्र कल्पना नहीं तथ्यपूर्ण होनी चाहिये। कहते हैं ब्रह्म अस्त्र जो उसे शीश झुका देता था उसे नहीं मारता था इस प्रकार का यन्त्र कल्पनातीत सा लगता है पर लेजर किरणों में ऐसी भी विशेषता होती है इनसे बनी बन्दूक किसी भी रंग के गुब्बारे और पदार्थ को तोड़कर नष्ट कर देती है पर लाल रंग की यह किरणें लाल रंग से माह करती हैं उस पर वे आक्रमण नहीं करतीं शान्त और निष्प्रहार रह जाती हैं।

महाभारत युद्ध के महान् समीक्षाकार संजय के बारे में कहा जाता है कि उनने योग-दृष्टि पाई थी—उनका तृतीय नेत्र जागृत था—आज्ञाचक्र नामक भृकुटि मध्य की ग्रन्थि में—भारतीय तत्वदर्शियों का कहना है कि—मन को एकाग्र कर उसे विद्युत चुम्बकीय तरंगों के रूप में फैलाकर कहीं भी भेजकर किसी भी दिशा में वस्तुओं का ज्ञान, मौसम की पूर्व जानकारी, दूर श्रवण और ऐसे ही अन्य अनेक चमत्कारिक काम किये जा सकते हैं—उक्त धारणा की पुष्टि 21 जुलाई 1969 के दिन तब हो गई जब अमरीका का प्रथम समानव चन्द्रयान चन्द्रमा की धरती पर उतरा और उसके चालक कमाण्डर नील आर्मस्ट्रांग ने चन्द्रमा की धरती पर उतर कर एक लेजर यन्त्र वहां स्थापित किया। इस यन्त्र की सहायता से एक किरण को तार की तरह का माध्यम बनाकर एक सिरे से दूसरे सिरे तक बात-चीत की जा सकती है मौसम का पूर्वाभास किया जा सकता है, ग्रह-नक्षत्रों की दूरी नापी जाती है दूर के दृश्य उतारे जा सकते हैं। और अब उसका चिकित्सा जगत् में इस प्रकार उपयोग भी हो सकता है जिसे बिल्कुल मन्त्र चिकित्सा का रूप दिया जा सके।

लेजर किरणों ने प्रकाश की शक्ति का अणुबम से भी शक्तिशाली स्वरूप ला दिया है और अनुमान किया जाता है कि कुछ दिन में प्रकाश—विज्ञान आज की सारी—उद्योग पद्धति के ढंग और ढांचे को, सामाजिक रहन-सहन और संस्कृति को एकदम परिवर्तित कर दे तो कुछ आश्चर्य नहीं। प्रकाश का उपयोग लोगों के मन की बातों को जानने जैसी गूढ़ बातों तक में हो सकता है।

निघन्टु (5/6) में द्यु-स्थानीय 31 देवताओं का वर्णन आता है यह समस्त देव शक्तियां एक ही चेतन सत्ता के विभाग कही गई हैं। प्रकाश वस्तुतः मूल चेतना का ही एक रूप है उसके अनेक रूप अभी भी अविज्ञात हैं जिस दिन उसकी सम्पूर्ण जानकारी मिल जायेगी विश्व के किसी भी भाग में रहने वाले प्राणी के लिये समूची सृष्टि एक ऐसे गांव की तरह हो जायेगी जिसमें गिने चुने मकान हों और चिर परिचित थोड़े से ग्रामवासी निवास करते हों।

मनुष्य शरीर में भी एक ऐसी ही सत्ता विद्यमान है जिसे ‘‘प्राण’’ कहते हैं। शरीरगत ऊष्मा, चुम्बकत्व, तेजोवलय, मोहकता, आदि उसी के प्रकट गुण हैं, अप्रकट रूप में इन प्राणमय स्फुल्लिंग से बने सूक्ष्म शरीर में लेजर किरणों की तरह की ऐसी अनेक अद्भुत सामर्थ्यं भरी हैं जिन्हें पाकर मनुष्य जागृत देवता और सजीव परमेश्वर ही सिद्ध हो सकता है। पिछले पृष्ठों पर दी गई चमत्कारिक घटनायें इस शक्ति का प्रताप हैं चाहें वह साधना द्वारा विकसित हों या देवी अनुग्रह से प्राप्त।

योग विज्ञान में प्राण साधना द्वारा मिलने वाली अणिमा (शरीर को भार रहित कर लेना), गरिमा (भारी भरकम वजन बढ़ा लेना), लघिमा (छोटा हो जाना), प्राप्त्य (कठिन वस्तुओं की सरलता से प्राप्ति), प्राकाम्य (इच्छा पूर्ति), ईशत्व (सर्वज्ञता), वशित्व (सभी को वशवर्ती कर लेना)—आठ सिद्धियों का विस्तृत वर्णन मिलता है।

पाश्चात्य मनोवैज्ञानिकों ने जो अतीन्द्रिय क्षमताएं खोजी हैं वे उन्हें चार वर्गों में विभक्त करते हैं—(1) क्लेयर वायेन्स (परोक्ष दर्शन) अर्थात् वस्तुओं या घटनाओं की वह जानकारी जो ज्ञान प्राप्ति के सामान्य आधारों के बिना ही उपलब्ध हो जायें। (2) प्रीकाग्नीशन (भविष्य ज्ञान) बिना किसी मान्य आधार के भविष्य की घटनाओं का ज्ञान। (3) रेट्रोकाग्नीशन (भूतकालिक ज्ञान) बिना किन्हीं मान्य-साधनों से अविज्ञात भूतकालीन घटनाओं की जानकारी। (4) टेलीपैथी (विचार-सम्प्रेषण) बिना किसी आधार या यन्त्र के अपने विचार दूसरों के पास पहुंचाना तथा दूसरों के विचार ग्रहण करना। इस वर्गीकरण को और भी अधिक विस्तृत किया जाय तो उन्हें 11 प्रकार की गतिविधियों में बांटा जा सकता है।

चमत्कारी अनुभव निम्न वर्गों में विभक्त किया जा सकता है—

(1) बिना किन्हीं ज्ञातव्य साधनों के सुदूर स्थानों में घटित घटनाओं की जानकारी मिलना।
(2) एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति की मनःस्थिति तथा परिस्थिति का ज्ञान होना।
(3) भविष्य में घटित घटनाओं का बहुत समय पहले पूर्वाभास।
(4) मृतात्माओं के क्रिया-कलाप जिससे उनके अस्तित्व का प्रत्यक्ष परिचय मिलता हो।
(5) पुनर्जन्म की वह घटनायें जो किन्हीं बच्चों, किशोरों या व्यक्तियों द्वारा बिना सिखाये-समझाये बताई जाती हों और उनका उपलब्ध तथ्यों से मेल खाता हो।
(6) किसी व्यक्ति द्वारा अनायास ही अपना ज्ञान तथा अनुभव इस प्रकार व्यक्त करना जो उसके अपने व्यक्तित्व और क्षमता से भिन्न और उच्च श्रेणी का हो।
(7) शरीरों में अनायास ही उभरने वाली ऐसी शक्ति जो सम्पर्क में आने वालों को प्रभावित करती हो।
(8) ऐसा प्रचण्ड मनोबल जो असाधारण दुस्साहस के कार्य विनोद की साधारण स्थिति में कर गुजरे और अपनी तत्परता से अद्भुत पराक्रम कर दिखाये।
(9) अदृश्य आत्माओं के सम्पर्क से असाधारण सहयोग सहायता प्राप्त करना।
(10) शाप और वरदान जिससे दीर्घकाल तक व्यक्तियों व वस्तुओं पर प्रभाव बना रहता है।
(11) परकाया प्रवेश या एक आत्मा में अन्य आत्मा का सामयिक प्रवेश सिद्ध होता है।

इन समस्त सिद्धियों का आधार प्राण साधना है जिसके आधार पर प्राणमय कोश या प्राणमय शरीर का विकास, नियन्त्रण और उपयोग किया जाता है। यह तथ्य अब तक भले ही श्रद्धाभूत रहे हों किन्तु अब विज्ञान उन तथ्यों को स्वीकारने और उनका विवेचन भी करने लगा है। प्राण एक ऐसी शक्ति जिसका पूरी तरह उद्भव किया जा सके तो मनुष्य उन दिव्य शक्तियों का स्वामी बन सकता है जो सामान्य व्यक्ति के लिये महान चमत्कार जैसी लगती हैं।
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