निःशंक हमने दिया जलाया (kavita)

July 1967

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निःशंक हमने दिया जलाया

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ओ आंधियों तुम न सनसनाओ,

निःशंक हमने दिया जलाया,

प्रभंजनों की चुनौतियों पर।

पवन झकोरों के पालने में, खिलाई नव ज्योति की कलायें,

प्रकाश पल पल प्रखर हुआ है, घिरी हैं जब-जब तिमिर घटायें,

ओ बिजलियों तुम न तमतमाओ,

खुली डाल पर नीड़-बनाया,

अनल-घनों की चुनौतियों पर।

अपार विष हम पचा चुके हैं, धरा को उससे बचा चुके हैं,

हमारे कुरुक्षेत्र को पता है प्रलय स्वयंवर रचा चुके हैं,

कुवृत्तियों तुम न कुनमुनाओ,

अनय का हमने नशा उतारा,

अधम-जनों की चुनौतियों पर।

दुशासनों के पते नहीं हैं, मिटा असुरता का दर्प सारा,

मिला धूल क्रूरता कंस की मनुष्यता को सदा उबारा,

ओ विषधरो! तुम न फनफनाओ,

कन्हैया को नाचना सिखाया,

उठे फनों की चुनौतियों पर।

हमारा पथ लो प्रकाश का है, ध्येय तिमर के विनाश का है,

सभी का मंगल लिए हृदय में, हमारा हर पग विकास का है,

हमें न रण दुन्दुभी सुनाओ,

नये सृजन का बिगुल बजाया,

प्रलय-क्षणों की चुनौतियों पर।

ओ आंधियों तुम न सनसनाओ,

निःशंक हमने दिया जलाया,

प्रभंजनों की चुनौतियों पर।

-लाखनसिंह भदौरिया “ शैलेन्द्र

*समाप्त*


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