पिछले लेखों में संसार के कितने ही प्रसिद्ध भविष्य-वक्ताओं और राजनीतिज्ञों के जो मत दिये गये हैं, उनमें कुछ अन्तर देख कर शायद पाठकों के मन में एक शंका उत्पन्न हो जाये। क्योंकि इसमें युद्ध का होना बतलाया है किसी ने सन् 70 में किसी ने 75-76 में। ऐसी दशा में एक सामान्य पाठक के मन में जिज्ञासा होती है- “यदि विश्व-युद्ध का ठीक समय बतला दिया जाता तो बड़ा अच्छा होता।”
इस अंक में हमने जितनी भविष्य-वाणियों को प्रकाशित किया है वे ज्योतिषियों की नहीं हैं, जो बाजार में बैठ कर भावी घटनाओं का ठीक घण्टा-मिनट तक बतलाया करते हैं! वे या तो आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त सन्तों की हैं अथवा राजनीति विज्ञान के ज्ञाताओं की। अध्यात्मज्ञानी सूक्ष्म जगत में होने वाले परिवर्तनों का निरीक्षण करके आगामी घटनाओं के स्वरूप का निर्णय करते हैं और राजनीतिज्ञ वर्तमान में होने वाली घटनाओं और विभिन्न श्रेणियों के व्यक्तियों के मनोभावों के आधार पर भावी परिवर्तनों की रूपरेखा का अनुमान लगाते हैं। इन दोनों में से कोई ज्योतिषियों की तरह भावी घटनाओं की तिथि ‘घण्टा’ मिनट बतलाने का दावा नहीं करता और न उसका कोई महत्व समझता है। उनका लक्ष्य तो मानव जाति की प्रगति पर विचार करना और उसका मार्गदर्शन करना ही होता है। जिस प्रकार हमारे यहाँ के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने दैवी परिवर्तनों का वर्णन करते हुये दिव्य-वर्ष की कल्पना की है अर्थात् मनुष्यों के एक वर्ष को देवताओं का एक दिन बतलाया है, उसी प्रकार मानव-इतिहास के ज्ञाता शताब्दियों का वर्णन करते हैं। राजनीतिज्ञ भी दशाब्दियों से कम की बात प्रायः नहीं करते। कारण यही है कि सामूहिक कार्यों की तुलना व्यक्तिगत कार्यों से नहीं की जा सकती।
कोई ज्योतिषी एक व्यक्ति के सम्बन्ध में भावी घटना का ठीक समय बताने में सफल हो सकता है, पर सामूहिक कार्यों में, जहाँ निरन्तर विभिन्न प्रवृत्तियों के व्यक्तियों के कार्यों का घात-प्रतिघात होता है, ऐसा नियत समय का निर्देशन करना असंगत होता है। सामुदायिक घटनाओं का स्वरूप और क्षेत्र विशाल होता है और उनके लिये विस्तृत काल विभाग की ही गणना की जाती है। यही कारण है कि प्राचीन सन्तों ने मानव जाति को चेतावनी देते हुये बीसवीं सदी का ही उल्लेख किया है। आज हम प्रत्यक्ष इतिहास के रूप में तीन विश्व युद्धों का वर्णन-पृथक पृथक करते हैं पर उनकी सूक्ष्म दृष्टि में वे तीनों एक ही थे। आज भी हम जब अन्तःदृष्टि से विचार करते हैं तो हमें वे तीनों स्पष्टतः एक ही शृंखला की तीन कड़ियाँ प्रतीत होते हैं।
इस प्रकार के व्यापक दृष्टिकोण से जब हम आजकल की और निकट भविष्य की घटनाओं पर विचार करते हैं और उनका सूक्ष्म जगत में गतिशील शक्तियों से सामंजस्य करते हैं तो इसी निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि अब मनुष्य जाति के इतिहास में एक बहुत बड़े परिवर्तन का समय बिल्कुल समीप आ गया है - मानवता एक नई सीढ़ी पर चरण रखने ही वाली है। पिछले पचास-साठ वर्षों से संसार के सभी देशों में जो जागरण, संघर्ष, क्राँति की लहर फैल रही है, वह इसी परिवर्तन का बाह्य लक्षण है। अब यह संघर्ष अपनी चरम सीमा पर पहुँच चुका है और इसका अन्तिम निर्णय शीघ्र ही होना अनिवार्य है।
दूरदर्शी भविष्यवेत्ता कीरो ने सन् 1925 में इस संघर्ष युग का अन्त सन् 1980 से पहले बतलाया था। अमरीका की वर्तमान सन्त महिला जीन डिक्सन भी 1980 तक विश्व युद्ध हो जाना और उसके बाद नये युग की स्थापना का कार्यारम्भ होना निश्चित बतला रही हैं। चीन के कर्ता-धर्ता ‘माओ’ ने सन् 65 में कहा था कि “दस-पन्द्रह वर्ष के भीतर विश्व युद्ध होना अटल है।” चीन के पड़ोसी फिलीपाइन के प्रेसीडेन्ट मार्कास ने इसी 8 मई को स्पष्ट कहा है कि हमें दस वर्ष के भीतर चीन के आक्रमण का पूरी तरह से भय है।
वर्षों से समाचार पत्रों के लेखक आगामी महायुद्ध के दो मुख्य योद्धा अमरीका और रूस को बतलाते आये हैं और यह बात अभी तक सही है। पर विश्व के रंग मंच पर एक नई शक्ति- चीन का प्रवेश हुआ है और इसमें सन्देह नहीं कि इससे राजनीतिक क्षेत्र के पुराने अनुमान बदल जायेंगे। अमरीका और रूस के शासकों का एक स्थान पर बैठ कर सलाह करना इसी का प्रतीक है। अमरीका चीन से कहाँ तक भयभीत हो रहा है यह नीचे लिखे ताजा समाचार से प्रकट होता है-
“वाशिंगटन, 22 जून। चीन के आणविक विकास के सम्बन्ध में सही भविष्य-वाणी करने में ख्याति प्राप्त अमरीकी वैज्ञानिक श्री राल्फ ई॰ लेघ ने कहा है कि 1970 तक चीन 100 उद्जन बम अथवा उद्जन प्रक्षेपणास्त्र बना लेने में सफल हो जायगा।” एक अन्य अमरीकी अधिकारी ने यह भी कहा है कि चीनी प्रक्षेपणास्त्र बहुत जोरदार बनाया गया है जो अन्य महाद्वीपों तक जा सकता है।
हमारे देश की अधिकाँश जनता चीन को अब भी पुराना ‘अफीमची चीन’ समझे बैठी है और उसकी हँसी उड़ाया करती है। पर उनको समझ लेना चाहिए कि वर्तमान ‘कम्यूनिस्ट चीन’ कुछ और ही बला है और कुछ वर्षों में वही काम कर दिखायेगा जो दूसरे महायुद्ध में हिटलर ने किया था। इस समय भी वह अपने आस-पास के सभी देशों से किसी न किसी प्रकार का विवाद खड़ा कर रहा है। भारत से तो वह सशस्त्र युद्ध ही कर चुका है, रूस से भी सीमा विवाद शुरू कर दिया है। इण्डोनेशिया के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप के कारण वहाँ हजारों चीन-पक्षपाती मारे जा चुके हैं। अब बर्मा में भी उसके प्रचार कार्य के फलस्वरूप भयंकर उपद्रव शुरू हो गया है। नेपाल से समाचार आया है। कि चीनी दूतावास वहाँ भी प्रचार करने लगा है जिससे सरकार असन्तुष्ट है। अभी भारतीय संसद में चीन पर आरोप लगाया गया है कि वह भारत के बंगाल और आसाम प्राँत में घुसपैठ करके स्वतंत्र कम्यूनिस्ट शासन स्थापित करने का षडयन्त्र कर रहा है। चाऊ-एन-लाई इसी समय भी अमरीका से युद्ध होने की बात खुल्लमखुल्ला कह रहे हैं। ऐसी परिस्थिति में संसार की शाँति किसी भी दिन भंग हो जाय इसमें कोई आश्चर्य नहीं।
“वर्तमान घटनाओं से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं विश्वयुद्ध का दो-चार साल में ही हो जाना असम्भव नहीं है। यदि युद्ध को टालने वाली शक्तियों ने अधिक जोर लगाया तो कुछ ही दिन बचाव हो सकता है, तो भी अधिक से अधिक दस वर्ष के भीतर उसका हो जाना अनिवार्य है।”
पर आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखने वाले व्यक्तियों के लिये इन घटनाओं का आशय कुछ और ही प्रतीत होता है। वे न किसी खास दल की हार-जीत को बड़ी बात समझते हैं, न उनको सौ-दो सौ करोड़ व्यक्तियों के मरने की चिन्ता होती है। वे इस प्रकार के दैवी विधान को सदैव कल्याण कारी मानते हैं। आत्मा के अमरत्व में उनका विश्वास होता है अतः वे मरने-जीने का भी शोक या हर्ष नहीं करते। इसलिये वे होनहार की तरफ से निश्चिन्त रह कर अपने कर्तव्य-कर्म पर दृढ़ रहना ही सर्वोच्च धर्म मानते हैं। युग-निर्माण-योजना के अनुयायियों के लिये हम यही मार्गदर्शन करते हैं।